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Joint Pain आयुर्वेद और योग – जोड़ों के दर्द का उपचार


जोड़ों के दर्द का उपचार प्राचीन काल से ही आयुर्वेद द्वारा किया जाता रहा है और आज भी यह उतना ही कारगर है। यदि अन्य उपचार पद्दतियों में देखे तो Joint Pain का ऐसा इलाज़ नहीं है, जो इस रोग से छुटकारा दिला सके। लेकिन आयुर्वेद द्वारा इस रोग को जड़ से भी समाप्त किया जा सकता है। तो आज हम इस पोस्ट में Joint Pain आयुर्वेद और योग द्वारा जोड़ों के दर्द का उपचार विषय पर चर्चा करेंगे।

Joint Pain and Ayurveda —

आयुर्वेद ही एक ऐसा उपचार का माध्यम है जो सबसे पहले रोग के कारण को जानकार उसका निवारण करता है अर्थात रोग के रुट लेवल(जड़ से ) से इलाज़ किया जाता है। हमारे देश में पीढ़ियों से विशेष रूप से अधिक उम्र के व्यक्ति जोड़ों के दर्द से छुटकारा पाने के लिए आयुर्वेद का लाभ लेते रहे हैं।

 

walking on wheel chair due to joint pain

जोड़ों के दर्द के कारण व्हील चेयर पर

अधिकतर लोग जोड़ों से सम्बंधित रोगों और उनके कारणों को नहीं समझ पाते हैं। अतः जब वे जोड़ों के दर्द से परेशान होते हैं, तो वे एनाल्जेसिक और सूजन हटाने वाली दवाएँ लेने लगते हैं और वर्षों तक लेते रहते हैं, इस उम्मीद में कि उनकी तकलीफ दूर हो जाएगी। परन्तु ऐसा नहीं होता है, क्योंकि यह दवाएँ स्थाई रूप से रोग को ठीक नहीं करती हैं।
प्रायः ऐसा देखा गया है कि लोग आयुर्वेदिक उपचार करवाने का निर्णय काफी समय बाद लेते हैं। लेकिन जब तक देर हो जाती है। उनके जोड़ो के दर्द की समस्या बहुत बढ़ चुकी होती है। यदि रोग के शुरूआती लक्षण दिखाई देने पर ही, आयुर्वेदिक उपचार करा लिया जाए, तो बहुत बेहतर परिणाम पा सकते हैं और जोड़ो के दर्द की समस्या से हमेशा के लिए छुटकारा पाया जा सकता है।

Symptoms Of Joint Pain (जोड़ों के दर्द के लक्ष्ण) 

जोड़ो के दर्द में निम्नलिखित लक्ष्ण देखे जाते हैं।
1. जोड़ों में अकड़न व दर्द महसूस होना।
2. आपके घुटने में सूजन, गर्मी व लालिमा दिखे, साथ में बुखार होना।
3. चलने फिरने में दिक्कत होना।
4. कार्टिलेज की हानि होने पर, चलते समय हड्डियों के आपस में रगड़ने से तीव्र दर्द का होना।
5. जोड़ों की कोमलता व उनके आकार में विकृति होना।

Causes Of Joint Pain (जोड़ों में दर्द के कारण) 

swelling in Joint Pain

जोड़ों में दर्द व सूजन

जोड़ों में दर्द और सूजन उस समय होती है, जब जोड़ों के सामान्य रूप से काम करने या फिर संरचना में कोई गड़बड़ी पैदा हो जाए। जोड़ों का दर्द अनेक परिस्थितियों और कारणों से हो सकता है। इसके मुख्य कारण हैं —
1. सूजन
2. संक्रमण यानि इन्फेक्शन (ओस्टीओमाइलाइटिस )
3. चोट लगना
4. एलर्जी और जोड़ों का सामान्य रूप से घिसना।
5. रह्यूमेटाइड अर्थराइटिस
6. गाउट
7. ऑस्टिओ अर्थराइटिस
8. वायरल अर्थराइटिस
9. रह्यूमेटिक लाइम डिजीज
10. बर्साइटिस (जोड़ों में स्थित तरल युक्त थैली की सूजन)
11. मोटापा, जोड़ों में दर्द के कुछ मेडिकल कारण हैं।

आयुर्वेद के अनुसार जोड़ों में दर्द का कारण

आयुर्वेद में जोड़ों को संधि कहा जाता है और जोड़ अस्थि व मज्जा धातु से मिलकर बनते हैं। जोड़ों को बांधकर रखने वाले लिगामेंट रक्त धातु से बने होते हैं, जो पित्त दोष के अधीन होते हैं। श्लेषक कफ, जोड़ों को चिकनापन प्रदान करता है, जबकि जोड़ों की गति के लिए वात का महत्व है। इन सभी दोषों के गुण एक दूसरे के लगभग विपरीत हैं।
जोड़ों में इन सभी दोषों का बहुत जटिल संतुलन होता है और जरा भी असंतुलित होने पर जोड़ों की संरचना व कार्यप्रणाली प्रभावित हो सकती है।
जोड़ों के कुशलता से काम करते रहने के लिए वात का मुक्त प्रवाह होना अनिवार्य है। यदि इसके मार्ग में कोई रुकावट आती है, तो जोड़ों के सही तरीके से काम करने पर प्रतिकूल असर पड़ता है, और यह दर्द पैदा कर सकता है।
आयुर्वेद के अनुसार खाए गए भोजन को जठराग्नि पचाती है। जब जठराग्नि मंद पड़ जाती है, तो पाचन गड़बड़ा जाता है।खराब पाचन के कारण शरीर में आम एकत्रित होता है, जो कि एक विषाक्त पदार्थ होता है। जब यह आम जोड़ो मैं इकठ्ठा होने लगता है, तो वात के मार्ग को अवरुद्ध करता है, जिसके कारण जोड़ों का दर्द पैदा होता है।

Ayurvedic Treatment For Joint Pain(जोड़ों के दर्द में आयुर्वेदिक उपचार)

जोड़ों के दर्द में आयुर्वेदिक उपचार, समग्र रूप से रोग की जड़ पर काम करता है। इस उपचार में विभिन्न नियमों के अनुसार काम किया जाता है। इनमे से कुछ इस प्रकार हैं —

1. दीपन –

दवाओं और उपवास की मदद से जठराग्नि प्रदीप्त करना। जब शरीर में विषाक्त तत्व जमा हो जाने के कारण व्यक्ति की भूख कम हो जाती है, तो जठराग्नि प्रदीप्त करने के लिए इस नियम का प्रयोग किया जाता है।

2. पाचन –

दवाओं, जड़ी-बूटियों, पाचक पदार्थों और व्यायाम की मदद से विषाक्त तत्वों को पचाना।जोड़ों और शरीर में विषाक्त तत्वों का जमा हो जाना अक्सर जोड़ों के दर्द का मुख्य कारण होता है, इसलिए पाचन नियम से इन तत्वों को पचाने और शरीर से बाहर निकालने में मदद मिलती है। अमृता, निर्गुण्डी और शुण्ठी जैसी औषधियाँ शरीर के आम को पचाने में बहुत सहायक होती हैं।

3. स्नेहन – 

तेल मालिश, ऑयल बाथ या स्निग्ध भोजन में घी का सेवन करना, बढ़े हुए वात को कम करने के लिए बहुत लाभदायक होता है।तेल, घी और वसा जैसे तैलीय पदार्थों का सेवन जोड़ों के दर्द में बहुत प्रभावी है।

4. पंचकर्म पद्धति –

इसके अलावा जोड़ों के दर्द में पंचकर्म पद्धति जैसे स्वेदन, विरेचन, बस्ती और लेपन की सलाह भी दी जाती है।
आयुर्वेद के नियमों का उचित प्रयोग करने, सही भोजन और जीवनशैली रखने से जोड़ो के दर्द से छुटकारा पाना संभव है। जोड़ो के दर्द को रोकने, सही देखभाल और उपचार के लिए आयुर्वेद सर्वश्रेष्ठ है।

जोड़ों के दर्द में उपयोगी टेस्ट  —  

यदि आपको जोड़ों के दर्द की समस्या है, तो कुछ टेस्टों द्वारा उनका परिक्षण किया जाता है। जो भी लक्षण मरीज के अंदर दिखते हैं उसके आधार पर डॉक्टर टेस्ट करवाते हैं।
1.सी बी सी (CBC)
2. रहूमेटॉइड फैक्टर टेस्ट
3. जॉइंट एक्स रे
4. एरिथ्रोसाइट सेडीमेंटशन टेस्ट (ESR)
5. C- रिएक्टिव प्रोटीन टेस्ट
6. अन्य ब्लड टेस्ट

ज्यूवेनाइल रूमेटाइड आर्थराइटस (जे आर ए )

Joint Pain (JAR)

ज्यूवेनाइल रूमेटाइड आर्थराइटस

आजकल यह रोग बच्चों में भी देखने को मिल रहा है, जिसे ज्यूवेनाइल रूमेटाइड आर्थराइटस के नाम से जाना जाता है। यह एक ऑटो इम्यून रोग है, जो जोड़ों पर अपना प्रभाव डालती है। अन्य ऑटो इम्यून रोगों की भांति इस रोग के मूल कारण से आधुनिक विज्ञान अनभिज्ञ है।
बच्चों में यह रोग इन्फ्लुएंजा से शुरू हो सकता है, इसके अलावा अन्य लक्षण जैसे भूख की कमी और आलस्य, सुबह शरीर की जकड़न, पूरे शरीर के जोड़ों में दर्द और सूजन आदि। यदि सही समय पर इलाज़ नहीं किया जाए तो और अधिक समस्याएं हो सकती हैं जैसे की जोड़ों का नष्ट होना, मांस पेशियों की हानि, ऑस्टियोपोरोसिस और आँखों की समस्याएं आदि।
इस रोग के उपचार के लिए दर्द निवारक औषधि और स्टीरॉइड का उपयोग बच्चों के लिए हानिकारक हो सकता है। जबकि आयुर्वेद के द्वारा सुरक्षित तरीके से इलाज़ किया जाता है।
प्रायः यह रोग 12 वर्ष से कम आयु के बच्चों में अधिक पाया जाता है। इसके अलावा यह रोग लड़कों से ज्यादा लड़कियों में अधिक पाया जाता है।

जे आर ए  के कुछ मुख्य कारण हैं —

  • वात दोष में गड़बड़ी
  • बढ़ा हुआ वात आम को शरीर के विभिन्न जोड़ों में ले जाता है।
  • शरीर आम को पचाने की कोशिश करता है और बंद पड़े चैनल्स को खोलता है।
  • शरीर अग्नि तत्व को सभी चैनल्स में भेजता है, जिससे शरीर का तापमान बढ़ता है और बुखार आता है।

 जे आर ए  रोग से बचने के लिए, बच्चों के माता पिता को उनके खाने पीने व जीवनशैली में बदलाव करना होगा। जैसे कि —

  • बच्चों को ऐसे खाद्य पदार्थ नहीं देने चाहिए, जिनसे पाचन अग्नि कमज़ोर पड़ती है और शरीर में आम बनने का खतरा बढ़ जाता है। जैसे चॉकलेट, ब्रैड, मिठाई, पिज़्जा, बर्गर, आइस क्रीम, मांसाहार और जंकफूड।
  • बच्चों को सभी प्रकार की सब्ज़ियाँ, फल और सलाद आदि खिलाना चाहिए।
  • जब आप बच्चों के लिए नाश्ता, सब्ज़ी, दालें या कुछ भी बना रहे हैं, तो उसमे हल्दी, हींग, अदरक, लहसुन, सरसों के बीज, अजवाइन, जीरा और धनिया जैसे मसाले अवश्य प्रयोग में लाए।
  • बच्चों को कोशिश करें कि चक्की के आटे से बनी रोटी, देसी घी लगाकर दें।
  • इसके अलावा बच्चों को भीगे हुए बादाम व अखरोट खिलाने चाहिए।
  • सुबह के समय जोड़ों की जकड़न के लिए गुनगुने तिल के तेल से मालिश करें और तुरंत राहत के लिए बाद में गर्म कपड़े की सिकाई देनी चाहिए। दर्द निवारक दवाओं का उपयोग न करने दें।
  • जड़ी बूटियाँ जैसे गुडुची, रास्ना, शुण्ठी, गुग्गल, दशमूल, त्रिफला और त्रिकूट जैसे मिश्रणों का प्रयोग करना चाहिए, जो इस रोग में बहुत लाभ देती हैं।
  • सौंठ, अजवाइन और कुल्थी के मिश्रण को एक साथ पीसकर अपने बच्चों को नियमित रूप से दें।
  • इसके अलावा बच्चों को शारीरिक व्यायाम और गतिविधियों में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।
  • इसके साथ बच्चों को कंप्यूटर गेम्स, टी वी, मोबाइल फ़ोन, अतिनिद्रा और जंक फ़ूड का आदि होने से बचाना चाहिए।

   Right Diet And Home Remedies For Joint Pain(सही आहार एवं घरेलू उपचार)  

  • जोड़ों के दर्द होने पर नियमित दिनचर्या का पालन करना चाहिए। समय पर सोना एवं नियमित रूप से व्यायाम करना चाहिए। हल्के व सुपाच्य आहार का प्रयोग करना चाहिए।
  • खाने में घी, दूध, ताजी रोटियाँ, आसानी से पचने वाली सब्ज़ियाँ जैसे–परवल, टिण्डा, कद्दू, तोरई, लौकी, मूंग की दाल, चुकंदर, गाजर आदि का सेवन करना चाहिए। फलों में पपीता, सेब, अंगूर, तरबूज़, खरबूजा,अंजीर, मुनक्का,किशमिश और भीगे हुए बादाम आदि का सेवन करना चाहिए। मसालों में अदरक, लहसुन, लौंग,अजवाइन,धनिया, सौठ, काली मिर्च आदि का प्रयोग करना चाहिए।
  • सप्ताह में एक बार उपवास करना भी बहुत लाभदायक होता है। ऐसा करने से शरीर में मौज़ूद आम व संधियों की सूजन में लाभ मिलता है।
  • 1 चम्मच कैस्टर ऑयल व 1 चम्मच अदरक के रस को आधे कप गुनगुने पानी में मिलाकर सोने से पहले प्रतिदिन एक से दो माह तक लेने से जोड़ों के दर्द व सूजन में बहुत लाभ मिलता है।
  • गुग्गुल एक एंटी इंफ्लामेटरी के रूप में बहुत अच्छा काम करता है। इसे 1-2 ग्राम की मात्रा में दिन में एक बार गुनगुने पानी या दूध से लेना लाभप्रद होता है। यह नसों को ताकत भी देता है।
  • पुनर्नवा शरीर की सूजन को कम करता है। 3 -5 ग्राम पुनर्नवा चूर्ण को गुनगुने पानी या दूध के साथ लेने से लाभ मिलता है।
  • मैथी, वात का शमन कर दर्द को कम करती है। 1-2 चम्मच मैथी दानों को रात में पानी में भिगोकर रख दें। अगले दिन इसको खाने में प्रयोग करें और इसके शेष पानी को भी ग्रहण करें।                                                               

  Joint Pain And Yoga ( योग द्वारा जोड़ों के दर्द का उपचार )

  •  जोड़ों का दर्द आज एक आम समस्या बन गई है। इससे बड़े-बूढ़े तो परेशान है ही, लेकिन आधुनिक जीवन शैली की वजह से कम उम्र के लोग भी इस बीमारी के शिकार होते जा रहे हैं।
  • योगाभ्यास और प्राणायाम इस विकार को दूर करने में काफी सहायक सिद्ध होते हैं। योगाभ्यास के द्वारा रक्त संचार ठीक रहता है। रक्त सभी अंगो तक सुचारु रूप से पहुँचकर हमारे शरीर में उपस्थित टॉक्सिन्स को दूर करता है। इस प्रकार हमारे अंग भलीभांति काम करने लगते हैं।
  • इस बीमारी से या अन्य कोई भी बिमारियों से बचने के लिए सभी लोगों को सूक्ष्म व्यायाम अथवा योगाभ्यास करते रहना चाहिए। कई बार इन आसनों व व्यायाम को करने से जोड़ों और मांसपेशियों में हल्का दर्द महसूस होने लगता है। इसमें घबराने की बात नहीं  है। अपनी यथा शक्ति व सामर्थ्य के अनुसार धीरे-धीरे अभ्यास करते रहना चाहिए। व्यायाम बिल्कुल न करने से अंग और अधिक    शिथिल हो जाते हैं और बीमारी बढ़ती चली जाती है।
  • सूक्ष्म व्यायाम के अतिरिक्त ताड़ासन, मकरासन, धनुरासन, भुजंगासन, सेतुबंधासन, पवनमुक्तासन, त्रिकोणासन, उत्तानासन, तिर्यक ताड़ासन, मर्कटासन, वज्रासन, नौकासन, सूर्य नमस्कार जैसे आसनों को अपनी दिनचर्या में अपनाकर हम स्वस्थ्य जीवन जी सकते हैं।
इस प्रकार यदि हम अपने जोड़ो का ध्यान रखेंगे, तो अवश्य एक आदर्श जीवन जी सकेंगे। अपने अमूल्य जीवन में, अपनों व समाज का ध्यान रखकर अनेक महत्वपूर्ण कार्य कर सकेंगे।
आपको यह लेख कैसा लगा कृपया अपनी राय अवश्य दें।
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