Chamunda Devi Mandir हिमाचल का, 51 शक्तिपीठों में से एक
हिमाचल प्रदेश जिसे देव भूमि भी कहा जाता है। यह अपनी नैसर्गिक सुंदरता के लिए विश्व प्रसिद्ध है, परन्तु इसके साथ यहाँ अनेक देवी देवताओं के प्राचीन मंदिर भी हैं। इन प्रसिद्ध मंदिरों का अपना पौराणिक महत्व भी है। बहुत से मंदिर तो अपने चमत्कारिक प्रभाव के कारण विश्व प्रसिद्ध है। यहाँ भक्तों की भीड़ लगी रहती है जो अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए यहाँ दर्शन के लिए आते हैं। आज हम इस लेख में हिमाचल का Chamunda Devi Mandir, जो कि 51 शक्तिपीठों में से एक है उसके बारे में बात करेंगे। यह मंदिर संहार की देवी काली माता को समर्पित है।
Chamunda Devi Mandir – भौगोलिक स्थिति :
यह मंदिर हिमाचल प्रदेश के चम्बा जिले में जंगलों के बीच बानेर नदी के तट पर स्थित है। समुद्र तल से चामुंडा देवी मंदिर की ऊंचाई 1000 मीटर है। धर्मशाला से मात्र 15 किमी की दूरी तय करके आप यहाँ पहुँच सकते हैं। चामुंडा देवी मंदिर दर्शन के लिए या तो आपको 400 सीढ़ियों को चढ़ना होगा या फिर चम्बा से 3 किमी लम्बी सड़क के द्वारा आसानी से पहुँच सकते हैं।
Chamunda Devi Mandir – निर्माण :
यह मंदिर लगभग 700 साल पुराना है। इसका निर्माण 1762 में राजा उमेद सिंह ने करवाया था। यह मंदिर लकड़ी का बना हुआ है इसे चामुंडा नंदिकेश्वर धाम भी कहते हैं। यह शिव और शक्ति का घर है जहाँ हनुमान जी एवं भैरव जी भी विराजमान हैं। यह देवी के रक्षक के रूप में द्वार पर खड़े रहते हैं।
चामुंडा देवी
Chamunda Devi Mandir – शक्तिपीठ क्यों हैं ?
चामुंडा देवी मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है। धार्मिक एवं प्राचीन ग्रंथों के अनुसार जहाँ-जहाँ देवी के अंग गिरे थे वहां शक्तिपीठ स्थापित हो गए। इस सम्बन्ध में एक प्राचीन कथा है–
पौराणिक कथा :
भगवान शिव और देवी सती के विवाह के उपरांत एक बार देवी सती के पिता राजा दक्ष ने यज्ञ का आयोजन किया। जिसमे समस्त देवी देवताओं को बुलाया गया था। लेकिन भगवान शिव और देवी सती को नहीं बुलाया क्योंकि राजा दक्ष भगवान शिव को पसंद नहीं करते थे।
जब यह समाचार देवी सती को पता चला तो वह बिना निमंत्रण के यज्ञ स्थल पर पहुँच गयीं। भगवान शिव ने बहुत मना किया परन्तु वह नहीं मानी। यज्ञ स्थल पर पहुँच कर देवी सती ने देखा कि सभी देवी देवताओं के आसन हैं, लेकिन भगवान शिव का कोई आसन नहीं था।
भगवान शिव का आसन न देखकर और उनका अपमान होता देख तब देवी सती क्रोधित हों गयीं और यज्ञ अग्नि में कूद गईं। जब यह बात भगवान शिव को ज्ञात हुई तो वह यज्ञ स्थल पर प्रकट हो गए। तब क्रोधित भगवान शिव ने देवी सती के शरीर को हवन कुंड से निकाला और राजा दक्ष का सर त्रिशूल से अलग कर दिया।
इसके उपरान्त देवी सती के शरीर को लेकर चले गए। क्रोधित शिव जी को मनाने का साहस किसी देवी देवता में नहीं था। समस्त सृष्टि में अव्यवस्था फैल गई।
भगवान शिव के क्रोध को देखकर उन्हें इस स्थिति से बाहर निकालने के लिए भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से देवी सती के शरीर को 51 भागों मैं बाँट दिया।
जिस स्थान पर देवी के अंग गिरे वह शक्ति पीठ बन गया। चामुंडा देवी मंदिर में माता सती के चरण गिरे थे।
चामुंडा देवी की उत्पत्ति कैसे हुई ?
दुर्गा सप्तशती एवं मार्कण्डेय पुराण के अनुसार देवताओं और दानवों में सैकड़ों वर्षों तक युद्ध चला। युद्ध में देवता हार गए। तब दानवों का राजा महिषासुर स्वर्ग के सिंहासन पर बैठ गया और देवताओं को स्वर्ग से जाना पड़ा।
दानवों के अत्याचारों से पीड़ित सभी देवता भगवान विष्णु के पास गए। भगवान विष्णु ने सभी देवताओं से कहा कि आपको देवी की स्तुति करनी चाहिए वही इन दानवों का अंत कर सकती हैं।
इस संकट से उबारने के लिए सभी देवताओं की शक्तियाँ एक जगह प्रकट हो गईं और एक तेज़ पुंज के रूप में बदल गईं। बाद में यही तेज़ पुंज एक सुन्दर स्त्री के रूप में प्रकट हो गया।
महिषासुर संहार :
सभी देवताओं ने देवी को अपनी-अपनी तरफ से अस्त्र-शस्त्र एवं अन्य उपहार भेंट स्वरुप दिए। देवी ने भी प्रसन्न होकर देवताओं के सभी कष्टों का अंत करने का वचन वरदान स्वरुप दिया। इसके उपरांत देवी ने महिषासुर दैत्य का अंत कर दिया।
चण्ड-मुण्ड संहार :
फिर जब धरती एवं स्वर्ग पर शुम्भ निशुम्भ दैत्यों का अत्याचार बढ़ गया और वह तीनों लोकों का राजा बन बैठा। उन्होनें देवताओं एवं मनुष्यों पर अत्याचार प्रारम्भ कर दिया। देवताओं ने देवी की अराधना की और उनकी रक्षा की वचन का स्मरण कराया।
इसके उपरांत देवी प्रसन्न होकर प्रकट हुई और आशीर्वाद दिया। फिर देवी एक पर्वत पर जाकर बैठ गईं और अपनी कांति से तीनों लोकों को प्रकाशित करने लगीं। जब शुम्भ-निशुम्भ के दोनों दूत चण्ड-मुण्ड ने देवी को देखा तो उनकी सुंदरता एवं तेज़ देखकर अचंभित रह गए।
यह समाचार उन्होनें शुम्भ-निशुम्भ को दिया। चण्ड-मुण्ड ने देवी की सुंदरता का वर्णन शुम्भ-निशुम्भ के आगे किया और कहा कि आपके पास त्रिलोकी की समस्त शक्तियां एवं अनमोल रत्न सभी हैं। फिर इस देवी को भी आपके पास होना चाहिए।
यह सुनकर शुम्भ- निशुम्भ ने चण्ड-मुण्ड को अपना दूत बनाकर देवी के पास भेजा। कहा कि तुम अपनी मर्जी से शुम्भ या निशुम्भ किसी के साथ भी विवाह कर सकती हो। यदि तुमने यह बात नहीं मानी तो हम तुम्हें बलपूर्वक केश पकड़कर शुम्भ-निशुम्भ के पास ले चलेंगे।
इस बात को सुनकर देवी ने कहा कि मुझे पता है शुम्भ और निशुम्भ दोनों बहुत बलशाली और त्रिलोकी के राजा हैं। लेकिन मैं अज्ञानता वश यह प्रतिज्ञा कर बैठी हूँ कि जो भी मुझे युद्ध में हराएगा मैं उसी के साथ विवाह करुँगी।
काली माता का प्राकट्य :
जब यह बात शुम्भ-निशुम्भ को ज्ञात हुई तो उसने चण्ड-मुण्ड को सेना के साथ युद्ध में देवी को जीतकर लाने को कहा। तत्पश्चात भगवती देवी ने अपने शरीर से काली देवी को प्रकट किया। देवी ने काली जी से कहा कि चण्ड-मुण्ड एवं उसकी सेना का संहार करो।
काली अपने विकराल रूप में असुरों का भक्षण करती हुई युद्ध भूमि में विचरण करने लगीं। उन्होंने समस्त सेना का अंत क्षण भर में कर दिया। तत्पश्चात चण्ड-मुण्ड दोनों दैत्यों का संहार करके उनके सर काट कर भगवती देवी को भेंट स्वरुप दिए।
तब देवी ने प्रसन्न होकर काली जी को आशीर्वाद दिया कि तुमने चण्ड-मुण्ड का सर काटा है इसलिए विश्व में तुम्हारी ख्याति चामुंडा के नाम से फैलेगी।
Chamunda Devi Mandir का पौराणिक इतिहास :
मंदिर के इतिहास के सम्बन्ध में एक कहानी प्रचलित है। करीब 400 वर्ष पहले राजा और मंदिर के पुजारी ने जब मंदिर को किसी अन्य जगह स्थापित करने का सोचा। तब उन्होंने देवी से प्रार्थना की और अपना प्रयोजन बताया। इस पर स्वप्न में देवी ने पुजारी को दर्शन दिए और मंदिर को स्थानांतरित करने की अनुमति दे दी।
देवी ने एक निश्चित स्थान पर खुदाई करने के लिए कहा। जब उस स्थान पर खुदाई की गई तो चामुंडा देवी की स्वयंभू मूर्ती मिली। जिसे बाद में वही स्थापित करके पूजा की जाने लगी।
Chamunda Devi Mandir घूमने का सही समय क्या है ?
यदि आप चामुंडा देवी मंदिर के दर्शन की सोच रहे हैं तो यहाँ आने का सबसे अच्छा समय मार्च व अप्रैल महीनों का होता है। क्योंकि इस समय यहाँ का मौसम सुहावना रहता है। इस दौरान नवरात्री पर्व का आयोजन भी होता है, जिसके कारण श्रद्धालुओं की बहुत भीड़ रहती है।
सर्दियों में यहाँ का तापमान काफी कम हो जाता है। जिसकी वजह से बर्फ़बारी और ठण्ड बढ़ जाती है। जबकि गर्मियों में दिन के समय तेज़ गर्मी और रात ठंडी रहती है।
चामुंडा देवी मंदिर की एंट्री फीस व खुलने का समय :
मंदिर में देवी के दर्शन के लिए कोई एंट्री फीस नहीं रखी गई है। जबकि मंदिर खुलने का समय प्रातः काल 6 बजे से 12 बजे तक। फिर 1 बजे से रात 9 बजे तक है।
चामुंडा देवी मंदिर का प्राकृतिक सौंदर्य :
यहाँ का प्राकृतिक सौंदर्य अतुलनीय है। मंदिर के चारों ओर पहाड़ और हरियाली, झरने और उस पर शांत वातावरण किसी का भी मन मोह लेता है। यहाँ आकर आपको परम शांति का अहसास होगा। मंदिर परिसर में एक जल कुंड भी मिलेगा। जिसका जल शुद्ध एवं पवित्र माना जाता है।
Chamunda Devi Mandir के आस पास के पर्यटन स्थल :
चामुंडा देवी मंदिर दर्शन के उपरांत आप यहां से नज़दीक कुछ पर्यटन स्थलों को भी घूम सकते हैं। तो आइये जानते हैं —
डलहौज़ी
डलहौज़ी :
डलहौज़ी हिमाचल के सबसे लोकप्रिय जगहों में से एक है। ब्रिटिश काल से ही यह शहर अंग्रेजों की पहली पसंद रहा है। यहाँ का प्राकृतिक सौंदर्य, घाटियाँ, घास और फूलों के हरे भरे मैदान, कल कल करती हुई नदियाँ, पाइन ट्री के जंगल, झरने व प्रदूषण मुक्त वातावरण निश्चित रूप से आपका मन मोह लेंगी।
चौगान :
यह चम्बा का एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है जो कि एक मैदानी क्षेत्र है। यहाँ का प्राकृतिक सौंदर्य एवं मौसम देखने योग्य है। सर्दियों में तो यहाँ बर्फ़बारी हो जाती है। लेकिन गर्मियों में यहाँ का मौसम सुहावना रहता है।
यहाँ आपको हस्तशिल्प से सम्बंधित चीज़े मिल जाएँगी। दरअसल यहाँ बहुत सी ऐसी स्थानीय दुकान जहाँ आपको हैंडमेड वस्तुऐं और हस्त शिल्प का सामान मिल जाएगा। यहाँ आप कीमती पत्थर एवं धातु की कलाकृतियां भी खरीद सकते हैं।
प्रत्येक वर्ष मिंजर मेला भी लगता है। यह चौगान मार्केट चम्बा की सांस्कृतिक एवं स्थानीय परंपरा को दर्शाता है।
मणि महेश झील
मणि महेश झील :
इस झील को डल झील भी कहा जाता है। यह समुद्र तल से 4080 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। मानसरोवर झील के बाद इस झील को पवित्र समझा जाता है। इस झील के पास का प्राकृतिक नज़ारा अद्भुद है। यहाँ चारो ओर पहाड़ एवं हरियाली आपके मन में ताजगी भर देगी।
इसके अलावा अष्टमी के दिन यहाँ झील में जल की मात्रा बढ़ जाती है। जो बाद में पुनः कम हो जाता है। यह बात वैज्ञानिकों के लिए भी रहस्य बनी हुई है। यहाँ श्रद्धालु जन्म अष्टमी के दिन बड़ी संख्या में पहुँचते हैं और स्नान करके पवित्र मणि के दर्शन करते हैं।
ऐसा कहा जाता है कि इस स्थान पर भगवान शिव ने सदियों तक तप किया था। यहाँ के वातावरण में आपको एक अलग सी शांति मिलेगी। इस झील की यात्रा करना ट्रेकिंग प्रेमियों को पसंद आता है क्योंकि 13 किमी की यात्रा करनी पड़ती है।
लक्ष्मी नारायण मंदिर
लक्ष्मी नारायण मंदिर :
यह चम्बा शहर के प्रमुख मंदिरों में से एक है। लक्ष्मी नारायण मंदिर काफी प्राचीन मंदिर है। इस मंदिर का निर्माण राजा साहिल वर्मन ने किया था। यह मंदिर भगवान विष्णु एवं भगवान शिव को समर्पित है। यहाँ भगवान विष्णु और शिवजी की छः मूर्तियां हैं। केंद्र में स्थित भगवान विष्णु की दुर्लभ संगमरमर से बनी एक मूर्ती है।
यह मंदिर सुबह 6 बजे से 12.30 बजे तक दिन में, फिर दोपहर 2.30 बजे से रात 8.30 बजे तक खुला रहता है। यहाँ आने का सबसे उपर्युक्त समय अप्रैल से जून का है।
गर्मियों में भी यहाँ रात को काफी ठण्ड रहती है। सर्दियों में यहाँ बर्फ़बारी पड़ती है। इसके साथ यहाँ बरसात के मौसम में आने से बचना चाहिए।
चम्बा पैलेस
चम्बा पैलेस या अखंड चंडी महल :
यह पैलेस चम्बा शहर में स्थित है। यह वास्तुकला का एक उत्कृष्ट नमूना है। इसका निर्माण 18 वी शताब्दी में राजा उम्मेदसिंह के भवन के रूप में कराया गया था। इस महल को मुगलों द्वारा कई बार दुबारा बनवाया गया था।
इस महल में आपको बड़े उद्यान एवं फव्वारे भी देखने को मिल जाएंगे। आजकल इसे सरकारी कॉलेज एवं पुस्तकालय के रूप में बदल दिया गया है।
निष्कर्ष —
चामुंडा देवी मंदिर जो कि 51 शक्तिपीठों में एक है, जो भी भक्त दर्शन के लिए जाते हैं उनकी सभी मनोकामना देवी माँ की कृपा से पूर्ण होती है। दर्शनों के साथ आप अन्य पर्यटन स्थल भी देख सकते हैं। आपको यह लेख कैसा लगा कृपया कमेंट करके बताइएगा।