Vrindavan -श्री कृष्ण के मंदिरों की नगरी/City Of Temples
हिन्दुओं के लिए Vrindavan विशेष धार्मिक और आस्था का प्रतीक है। हमारे ग्रंथों के अनुसार श्री कृष्ण का बचपन यहीं गुजरा था। यह स्थान श्री कृष्ण की बाल लीलाओं का साक्षी है। यहाँ बहुत से श्रद्धालु भगवान श्री कृष्ण व राधा रानी जी के दर्शन करने भारी मात्रा में रोज़ पहुँचते हैं।Vrindavan को यदि श्री कृष्ण के मंदिरों की नगरी/ City Of Temples कहें तो यह गलत नहीं होगा। तो आइए चलते हैं वृन्दावन श्री कृष्ण के मंदिरों की एक झलक लेने।
Vrindavan Temples :
श्री कृष्ण भगवान के यहाँ अनेक भव्य मंदिर हैं, जिनकी कला एवं भव्यता अपने आप में एक उत्कृष्ट नमूना है। आज भी वृन्दावन में जाकर ऐसा महसूस होता है, कि श्री कृष्ण व राधा रानी जी यहाँ के कण कण में बसे हैं। यहाँ आकर असीम शांति व सुख की अनुभूति होती है। जिसको जाकर ही महसूस किया जा सकता है।
1. Vrindavan –श्री बाँके बिहारी मंदिर :

श्री बाँके बिहारी मंदिर
वृन्दावन जाने वाले श्रद्धालु बाँके बिहारी जी का दर्शन न करें ऐसा संभव ही नहीं है। बाँके बिहारी जी का मंदिर हिन्दु धर्म के लोगों के लिए विशेष महत्व रखता है। वृन्दावन में सात प्रमुख ठाकुर जी के मंदिर हैं, उनमे से बाँके बिहारी जी का मंदिर एक प्रमुख मंदिर है।
कहते हैं यहाँ स्थापित बाँके बिहारी जी की मूर्ति बनाई नहीं गयी थी। बल्कि ये स्वामी हरिदास जी, जो कि श्री कृष्ण के अनन्य भक्त थे उनके अनुरोध पर ही प्रकट हुई थी। ऐसा कहा जाता है कि यह मूर्ति किसी धातु की नहीं बल्कि लकड़ी की है।
बाँके बिहारी जी की मूर्ति का स्वरुप
भगवान श्री कृष्ण और राधा रानी का एक रूप है श्री बाँके बिहारी जी। बाँके का अर्थ है तीन ओर से झुका जबकि बिहारी का अर्थ है आनंद लेने वाला। श्री बाँके बिहारी जी की मूर्ति हाथों में बाँसुरी पकड़े हुए, खड़ी अवस्था में टाँगों को मोड़कर विराजमान है। जो श्रद्धालुओं का मन मोह लेती है।
ऐसा कहा जाता है कि जो भी भक्त इनकी मूर्ति को आँखों में आँख डालकर निहारता है, भगवान उस भक्त पर कृपा करने से खुद को रोक नहीं पाते हैं।
प्रचलित कथा
इनको प्रेमपूर्वक निहारने के पीछे एक कथा भी प्रचलित है। माना जाता है कि एक बार एक भक्त बाँके बिहारी के दर्शन करने वृन्दावन आए। वह बाँके बिहारी जी की मूर्ति को एक टक नज़रें मिलाकर देखते रहे। तत्पश्चात वहाँ से वह भक्त चले गए।
जब कुछ समय पश्चात पुजारी ने आकर देखा, तो भगवान की मूर्ति अपने स्थान से गायब थी। प्रभु अपने भक्त के प्रेम में अधीन होकर उनके साथ चल दिए। जब बहुत विनती व प्रार्थना की गई तब प्रभु अपने स्थान पर पुनः विराजमान हुए।
तब से इस बात का विशेष ध्यान रखा जाता है कि कोई भक्त एकटक प्रभु के दर्शन न कर सके। इसके लिए थोड़ी थोड़ी देर में पर्दा डाला जाता है। जो भी भक्त श्रद्धा व प्रेम से इस मंदिर में आते हैं, उन्हें असीम सुख व शांति की प्राप्ति होती है और उनकी सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती है।
दर्शन का समय : सुबह 7 : 45 से 12 : 00 बजे तक, शाम 5 : 30 से 9 : 30 बजे तक ।
2. Vrindavan-प्रेम मंदिर :
प्रेम मंदिरVrindavan-प्रेम मंदिर की भव्यता
प्रेम मंदिर वृन्दावन में स्थित है। वृन्दावन आकर लोग बाँके बिहारी जी का दर्शन अवश्य करते हैं लेकिन वह प्रेम मंदिर भी जाना नहीं भूलते क्योंकि यह मंदिर बहुत विशाल व भव्य बना हुआ है। यह लगभग 54 एकड़ में बना हुआ है।
इसकी ऊँचाई 125 फुट, लम्बाई 122 फुट और 115 फुट चौड़ा है। मंदिर का निर्माण जगद्गुरु कृपालु महाराज द्वारा कराया गया। बाहर से यह मंदिर जितना सुन्दर लगता है, उतना ही अंदर से भी भव्य बना हुआ है।
मंदिर का निर्माण
यह मंदिर इटालियन करारा संगमरमर से बनाया गया है। इसे राजस्थान और उत्तर प्रदेश के 1000 शिल्पकारों ने राजस्थानी शैली में बनाया है और लगभग 11 वर्ष लगे हैं पूरा होने में। इस मंदिर में श्री कृष्ण और राधा रानी की मूर्ति के अलावा सिया राम जी की मूर्ति भी है।
मंदिर के परिसर में चारों ओर हरियाली, सुन्दर बगीचे, फव्वारे और मंदिर के अंदर श्री राधा कृष्ण की मनोहर झाँकियाँ व विभिन्न प्रकार की कृष्ण लीलाएँ जैसे– श्री गोवर्धन धारण लीला, कालिया नाग दमन लीला, झूलन लीला आदि बड़ी मनोहारी लगती है।
मंदिर पर रंग-बिरंगी रोशनी
इसके अलावा मंदिर की बाहरी दीवारों पर मथुरा एवं द्वारका की लीलाएँ क्रमबद्ध रूप से बनायीं गई हैं। जिसे बनाने में 150 करोड़ की लागत आई थी। पूरे मंदिर में 94 कलामंडित स्तंभ हैं। यहाँ उपस्थित गर्भ गृह की दीवार की मोटाई 8 फुट है।
रात के समय इस मंदिर की भव्यता देखते ही बनती है। चारों तरफ से लाइटिंग (कई रंगों की) बदलती रहती है जिससे पूरा वातावरण कृषणमयी हो जाता है। इसके साथ आधे घंटे का म्यूजिकल फाउंटेन शो भी होता है।
दर्शन का समय : सुबह 8 : 30 से 12 : 00 बजे तक, शाम 4 : 30 से 8 : 30 बजे तक।
3. Vrindavan-इस्कॉन मंदिर :

इस्कॉन मंदिर
Vrindavan-इस्कॉन मंदिर की भव्यता
इस्कॉन मंदिर वृन्दावन में स्थित है। इसे कृष्ण बलराम मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। यह बहुत ही भव्य व सुन्दर मंदिर है। यहाँ प्रतिदिन बड़ी संख्या में श्रद्धालु दर्शन के लिए आते रहते हैं।
इसकी स्थापना स्वामी प्रभुपाद ने सन 1975 में वृन्दावन में की थी। कुछ ही वर्षो में यह मंदिर प्रसिद्ध हो गया। इसकी भव्यता व सुंदरता पर्यटकों व श्रद्धालुओं का मन मोह लेती है।
प्रचलित कथा
सन 1977 में स्वामी जी की मृत्यु हो गई। मंदिर परिसर में उनका स्मारक बनाया गया है। ऐसा माना जाता है कि आज जिस जगह पर यह मंदिर है वहाँ आज से 500 वर्ष पहले श्री कृष्ण और बलराम अपनी गायों को चराने आते थे, खेला करते थे और गोपियों के साथ लीला करते थे। इसलिए इस स्थान का महत्व और अधिक बढ़ जाता है। क्योंकि यह स्थान श्री कृष्ण व बलराम की कहानियों से जुड़ा हुआ है।
मंदिर का निर्माण
इस्कॉन मंदिर का निर्माण सफ़ेद संगमरमर के पत्थरों से किया गया है। मंदिर की दीवारों पर खूबसूरत नक्काशी और पेंटिंग की गई है। यह दीवारें श्री कृष्ण की शिक्षा और उनके जीवन से जुडी घटनाओं का सुन्दर वर्णन करती हैं।
इस्कॉन मंदिर में कृष्ण जन्माष्टमी का त्यौहार बड़ी धूम धाम से मनाया जाता है। मंदिर के परिसर के भीतर भगवत गीता के पाठ का सुबह शाम आयोजन किया जाता है। यहाँ का वातावरण इतना शांतिप्रिय है कि इधर आकर हर कोई आध्यात्म और भक्ति से जुड़ जाता है। शाम की श्री कृष्ण आरती बहुत प्रसिद्ध है।
दर्शन का समय : सुबह 4 : 30 से 1 : 00 बजे तक, शाम 4 : 30 से 8 : 30 बजे तक।
4. Vrindavan-मदन मोहन मंदिर :
मदन मोहन मंदिरमंदिर का निर्माण
मदन मोहन मंदिर वृन्दावन के सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक है। इस मंदिर को सनातन गोस्वामी जी के आशीर्वाद से श्री कृष्ण दास कपूर ने बनवाया था। यह काली घाट के पास स्थित है। इसका निर्माण सन 1580 में हुआ था। यह मंदिर 18. 288 मीटर ऊँचा है। यही नहीं यमुना से 70 फुट ऊँचा है और 70 फुट नीचे तक इसकी नीव है।
प्रचलित कथा
औरंगज़ेब के समय से ही यह मंदिर यहाँ बना हुआ है। इस मंदिर को औरंगज़ेब ने कई बार तोड़ने का प्रयास किया। उसके शासन काल में मूल मूर्ति को सुरक्षित रखने के लिए राजस्थान में स्थापित कर दिया गया जो कि एक प्रतिरूप थी।
मदन मोहन मंदिर को चटोरे मदन मोहन मंदिर के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि उन्हें हर दिन नए नए व्यंजन खाने का शौक था। इस मंदिर की यह विशेषता है कि यहाँ मंगला आरती केवल कार्तिक के महीने में ही होती है।
दर्शन का समय : सुबह 7 : 00 से 12 : 00 बजे तक, शाम 4 : 00 से 8 : 00 बजे तक।
5. Vrindavan-राधा रमन मंदिर :
राधा रमन मंदिरमंदिर का निर्माण
वृन्दावन में ठाकुरजी के 7 प्रमुख मंदिरों में से राधा रमन मंदिर एक प्रमुख मंदिर है।राधा रमन मंदिर का निर्माण सन 1542 में हुआ था। फिर बाद में 1826 में शाह बिहारी लाल जी द्वारा इसे पुनः निर्मित किया गया। यह भगवान श्री कृष्ण का मंदिर है। इस मंदिर में श्री कृष्ण जी की वास्तविक शालिग्राम प्रतिमा है।
प्रचलित कथा
ऐसा कहा जाता है कि चैतन्य महाप्रभु की प्रेरणा से गोपाल भट्ट ने अपनी शिक्षा दीक्षा समाप्त की। फिर अपने माता पिता का आशीर्वाद लेकर तीर्थाटन के लिए चल पड़े, भक्ति का प्रचार करते हुए नेपाल पहुँचे। वहाँ पर उन्होंने गंडकी नदी में स्नान किया। उस समय वहाँ पर एक घटना घटी, जैसे ही नदी में उन्होंने डुबकी लगाई 12 शालीग्राम उनके पास आ गए। फिर उन्होंने उसे जल में विसर्जित कर दिया। दुबारा डुबकी लगाने पर फिर से 12 शालीग्राम नदी के ऊपर आ गए और एक आवाज सुनाई दी कि वह उन्हें वृन्दावन धाम ले जाएँ और वही पर उनकी अराधना करें।
मंदिर की विशेषता
इन्हीं शालीग्राम से श्री राधारमण महाराज का दिव्य विग्रह प्रकट हुआ। इस मंदिर में श्री कृष्ण जन्माष्टमी दिन में मनाते हैं ऐसा कहा जाता है कि यहाँ श्री कृष्ण बाल रूप में विराजमान हैं और बालको का जन्मदिन, दिन में ही मनाया जाता है। यहाँ की अन्य विशेषता यह भी है कि ठाकुर जी की रसोई तैयार करने के लिए पिछले 477 वर्षोँ से एक भट्टी लगातार जल रही है। इसी अग्नि से ठाकुर जी का भोग व मंदिर में दीया प्रज्वलित होता है।
दर्शन का समय : सुबह 8 : 00 से 12 : 30 बजे तक, शाम 6 : 00 से 8 : 00 बजे तक।
6. Vrindavan-गोविन्द देव जी मंदिर :
गोविन्द देव जी मंदिरमंदिर का निर्माण
यह वृन्दावन में स्थित काफी प्राचीन मंदिर है। इसका निर्माण सन 1590 में, श्री रूप गोस्वामी और सनातन गुरु श्री कल्याणदास जी की देख रेख में हुआ था। श्री गोविन्द देव जी मंदिर के पूरे निर्माण का खर्च राजा श्री भगवान दास आमेर (जयपुर, राजस्थान) ने किया था।
प्रचलित कथा
मंदिर में 7 फ्लोर थे और सबसे ऊपर एक बड़ा सा दीपक बनवाया गया था। कहा जाता है कि इस मंदिर में रोज़ाना 50 किलो देसी घी से दिए जलाये जाते थे। इसकी लौ आगरा से भी दिखाई पड़ती थी। एक बार मुग़ल शासक औरंगज़ेब की नज़र इस पर पड़ गई। उसने कहा कि जब इतनी बड़ी मस्जिद पूरे भारतवर्ष में नहीं है, तो इतना बड़ा मंदिर कैसे रह सकता है। इसी जलन में उसने मंदिर को तोड़ने का आदेश दे दिया।
इतिहासकारों के अनुसार रात में भगवान श्री कृष्ण ने मंदिर के पुजारी से कहा कि कल औरंगज़ेब यह मंदिर तोड़ने आएगा। अतः तुम मेरी मूर्ति कहीं और स्थापित कर दो। इसके उपरांत भगवान की मूर्ति राजस्थान के जयपुर जिले में दूसरे मंदिर में स्थापित कर दी गई जो आज गोविन्द वल्लभ मंदिर के नाम से मशहूर है।
मंदिर का पुनः जीर्णोधार
काफी समय तक यह मंदिर बंद पड़ा था क्योंकि यहाँ कोई मूर्ति नहीं थी। फिर मुग़ल शासन की समाप्ति के बाद इस मंदिर में मूर्तियां स्थापित की गई, तभी से फिर पूजा पाठ आरम्भ हो सका। यह मंदिर लाल पत्थर से बना हुआ है। बहुत से पर्यटक यहाँ मंदिर में आकर फोटोग्राफी भी करते हैं क्योंकि यह एक विशाल महल की तरह लगता है।
दर्शन का समय : सुबह 5 : 30 से 11 : 00 बजे तक, शाम 4 : 30 से 8 : 00 बजे तक।
7. Vrindavan-श्री गोपीनाथजी मंदिर :
मंदिर की विशेषता
श्री गोपीनाथजी मंदिर भी वृन्दावन धाम के प्राचीन मन्दिरों में से एक है। यह मंदिर मुख्य रूप से श्री राधा रानी व श्री कृष्ण को समर्पित है। इसके अलावा इस मंदिर में अनंगा मंजरी (राधा रानी की छोटी बहन), विशाखा और ललिता की भी मूर्तियाँ हैं।
मंदिर का निर्माण
यह मंदिर सन 1632 में बीकानेर के महाराज कल्याणमाल के पुत्र राय सिंह ने बनवाया था। लेकिन औरंगज़ेब के आक्रमण के बाद इस मंदिर का पुनरनिर्माण सन 1819 में हुआ था।
दर्शन का समय : सुबह 4 : 30 से 12 : 30 बजे तक, शाम 5 : 30 से 9 : 00 बजे तक।
8. Vrindavan-श्री रंगनाथ मंदिर :
श्री रंगनाथ मंदिरमंदिर की विशेषता
श्री रंगनाथ मंदिर का निर्माण सन 1851 में दक्षिण भारतीय शैली में किया गया था। यह काफी भव्य मंदिर है। मंदिर भगवान विष्णु व माता लक्ष्मी को समर्पित है। इसके अलावा इस मंदिर में श्री राम सीता व लक्ष्मण की मूर्तियाँ व उनके साथ भगवान नरसिंह, वेणुगोपाल एवं रामानुजाचार्य की मूर्तियाँ भी हैं।
मंदिर का निर्माण
यहाँ भारी मात्रा में श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं। इसका निर्माण सेठ गोविंददास और राधा कृष्ण्दास द्वारा कराया गया था। मंदिर की बाहरी दीवार की लम्बाई 773 फुट और चौड़ाई 440 फुट है। इसमें एक बाग़ और एक सुन्दर सरोवर भी संलग्न किया गया है। इस मंदिर को बनाने में 45 लाख की लागत आई थी।
दर्शन का समय : सुबह 5 : 30 से शाम 6 : 30 बजे तक।
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वैसे तो वृन्दावन को कृष्ण के मंदिरों की नगरी कहते हैं यह कोई अतिश्योक्ति नहीं है, क्योंकि यहाँ हर जगह मंदिर ही मंदिर नज़र आएँगे। पर हमने कुछ प्रमुख मंदिर ही लिए हैं। यहाँ आकर असीम सुख व शांति की प्राप्ति होती है। अतः जब भी वृन्दावन जाए तो इन मंदिरों के दर्शन करें। आपको यह लेख कैसा लगा कमेंट बॉक्स में जरूर लिखें।
