Navraatri– आदि शक्ति की उपासना का पर्व
Navraatri – आदि शक्ति की उपासना का पर्व है। इस समय देवी की पूजा का विशेष महत्व होता है। नवरात्रि का पर्व वर्ष में चार बार आता है। मुख्य रूप से चैत्र मास एवं आश्विन मास में नवरात्रि का पर्व सभी लोग हर्ष एवं उल्लास से मनाते हैं। इसके अलावा वर्ष में दो बार गुप्त नवरात्रि भी आते हैं। जो आषाढ़ एवं माघ मास में आते हैं। जगत का नियंत्रण एवं संचालन करने वाली आदि शक्ति की उपासना अवश्य करनी चाहिए। इन नौ दिनों में माँ के अलग-अलग रूपों की पूजा की जाती है।
ज्योतिषीय गणना के अनुसार अप्रैल से हिन्दू नव वर्ष विक्रम संवत 2082 का आरम्भ होगा। इस दिन सर्वार्थ अमृत सिद्ध योग बन रहा है। रविवार से नव वर्ष का आरम्भ होने से इस वर्ष के राजा सूर्य होंगे। नवग्रहों के मंत्री मंडल में वर्ष के मंत्री का पद भी सूर्य को ही प्राप्त हुआ है। नवरात्रि की शुरुआत कई शुभ योग के साथ हो रही है। इस बार सर्वार्थ सिद्धि योग, ऐंद्र योग, बुधादित्य योग, शुक्रादित्य योग और लक्ष्मीनारायण योग बन रहे हैं। ये लाभदायक और उन्नतिकारक योग हैं। मां दुर्गा की भक्तिभाव से पूजा करके आप इन योग में अपने जीवन को सुखी और समृ्द्ध बना सकते हैं।
Chaitr Navraatri 2025 कब से शुरू हैं ?
इस वर्ष 2025 में चैत्र नवरात्रि का 30 मार्च से प्रारम्भ होकर 6 अप्रैल को समापन होगा। इन नौ दिनों में देवी माँ के नौ स्वरूपों की पूजा अर्चना की जायेगी। नवरात्रि चैत्र मास के शुक्लपक्ष की प्रतिपदा से प्रारम्भ होती है। प्रथम दिन बहुत ही शुभ संयोग सर्वार्थ सिद्धि व अमृत योग बन रहा है। यही नहीं इस बार नवरात्री पर इंद्र योग और रेवती नक्षत्र भी रहेगा, जो इसे और खास बना देगा। इस योग में पूजा प्रारम्भ करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है।
इसके अलावा अन्य राज योगों का भी निर्माण हो रहा है- गजकेसरी योग, मालव्य योग, शश योग, बुधादित्य योग एवं लक्ष्मी नारायण योग। इन दिनों में कोई भी नवीन व मंगल कार्य करने से निश्चित रूप से शुभ फलों की प्राप्ति होती है।
इस बार एक तिथि का क्षय होने के कारण नवरात्रि के व्रत 9 की बजाय 8 दिनों तक रखे जाएंगे। आइए जान लेते हैं कि नवरात्रि में किस तिथि का क्षय हो रहा है।
चैत्र नवरात्रि तिथि –
- शैलपुत्री- प्रतिपदा- 30 मार्च
- ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा- द्वितीया और तृतीया तिथि का क्षय- 31 मार्च
- कूष्मांडा- चतुर्थी- 1 अप्रैल
- स्कंदमाता- पंचमी- 2 अप्रैल
- कात्यायनी- षष्ठी- 3 अप्रैल
- कालरात्रि- सप्तमी- 4 अप्रैल
- महागौरी- अष्टमी- 5 अप्रैल
- सिद्धिदात्री- नवमी- 10 अप्रैल
- नवरात्रि पारण- दशमी- 7 अप्रैल
Chaitr Navraatri-चैत्र नवरात्रि घट( कलश) स्थापन मुहूर्त :
घटस्थापना का मुहूर्त- घट स्थापन प्रतिपदा तिथि में किया जाता है।
30 मार्च को सुबह 6 बजकर 13 मिनट से लेकर सुबह 10 बजकर 22 मिनट तक रहेगा, जिसकी अवधि 4 घंटे 8 मिनट की रहेगी। अगर आप मुहूर्त में कलशस्थापना न कर पाएं तो अभिजीत मुहूर्त में भी घटस्थापना कर सकते हैं।
अभिजीत मुहूर्त दोपहर 12 बजकर 01 मिनट से लेकर 12 बजकर 50 मिनट तक रहेगा।
हाथी पर सवार होकर आएंगी मां दुर्गा-
इस बार मां दुर्गा हाथी पर सवार होकर आएंगी। माता का हाथी पर सवार होकर आना शुभ माना जाता है। हाथी को शांति और शुभता का प्रतीक माना जाता है। मां का हाथी पर आना खुशहाली और धन-धान्य में बढ़ोतरी का संकेत समझा जाता है।
Navraatri-नवरात्रि का पर्व सेहत की दृष्टि से :
आयुर्वेद के अनुसार जब मौसम बदलता है या ऋतु संधियों में स्वास्थ्य बिगड़ने की बहुत सम्भावना रहती है। अतः इस समय पंचकर्म करने का विधान है। इससे शरीर शुद्ध होता है और रोग की सम्भावना बहुत कम हो जाती है। ऐसा कहा जाता है कि इस समय फल-फूल खाकर, नियम संयम पूर्वक रहने से जो रोग दवाओं द्वारा ठीक नहीं हो पा रहे हैं, वह भी व्रत करने से ठीक हो जाते हैं।
ऐसे में यदि इस समय आदि शक्ति दुर्गा देवी माँ की उपासना की जाए तो तन और मन दोनों ही शुद्ध हो जाते हैं। प्रायः इस ऋतु परिवर्तन के समय प्राणियों में बड़े-बड़े रोग जन्म लेते हैं। अतः चैत्र व आश्विन के पवित्र महीनों में श्रद्धा पूर्वक देवी की उपासना करने से, भगवती की कृपा प्राप्त होती है। देवी हमारी रक्षा करती हैं।
Navraatri-नवरात्रि की महिमा वेदों में भी :
नवरात्रि में आदि शक्ति की उपासना का महत्व वेदों में भी वर्णित है। अर्थवेद में वर्णन मिलता है कि देवी दुर्गा में समस्त देवी देवताओं की शक्ति का समावेश है। अतः यदि हम माँ दुर्गा की अराधना करते हैं तो सभी देवी देवताओं की पूजा का फल प्राप्त हो जाता है।
दुर्गा सप्तशती में भी यही वर्णित है कि सभी देवताओं के तेज से ही भगवती का प्रादुर्भाव हुआ है। इन्हीं माँ भगवती के नौ स्वरुप हैं– शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी चंद्रघंटा, कूष्माण्डा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री। नवरात्रि में देवी के नौ स्वरूपों की पूजा क्रमशः नौ दिनों में होती है।

दुर्गा देवी
नवरात्रि में नौ रूपों की पूजा :
नवरात्रि के दिनों में माँ के नौ रूपों की पूजा श्रद्धा भाव से करनी चाहिए क्योंकि यह बहुत फलदायी होती है। ऐसी मान्यता है कि इस समय भगवती दुर्गा माँ पृथ्वी पर विचरण करती हैं।
प्रथम दिन कलश स्थापना की जाती है। मिटटी के पात्र में जौं बोये जाते हैं। मान्यता अनुसार जौं किस प्रकार से नौ दिनों में उगे हैं अर्थात कितने हरे-भरे एवं लम्बे घने हुए हैं उसको देखते हुए आर्थिक स्थिति कैसी रहेगी आगे इसका पता चलता है। बहुत से भक्त अखंड ज्योत भी जलाते हैं। जो दिन रात लगातार नौ दिनों तक जलती रहती है।
प्रथम दिन-माँ शैलपुत्री की पूजा :
प्रतिपदा के दिन कलश स्थापना के बाद माँ शैलपुत्री की पूजा की जाती है। पर्वतराज हिमालय की पुत्री होने के कारण ये शैलपुत्री कहलाती हैं। इनकी आराधना से मनवांछित फल की प्राप्ति होती है। इस दिन पीले वस्त्र धारण करना चाहिए।
क्या अर्पित करें :
माता शैलपुत्री को लाल फूल, नारियल, सिन्दूर एवं श्रृंगार सामग्री आदि अर्पित करनी चाहिए। इसके साथ माता के चरणों में शुद्ध घी अर्पित करना चाहिए। इससे आरोग्य एवं स्वस्थ्य शरीर की प्राप्ति का आशीर्वाद मिलता है।
दूसरा दिन-माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा :
नवरात्रि के दूसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है। इनकी उपासना से हमें तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार, संयम की वृद्धि होती है। माता अपने भक्तों के कष्टों को दूर कर उनकी सभी कामनाओं को पूरा करती हैं। इस दिन हरे वस्त्र धारण करने चाहिए।
क्या अर्पित करें :
माँ ब्रह्मचारिणी को गुड़हल व कमल का फूल अत्यंत प्रिय है। इसके अलावा सफ़ेद पुष्प, सफ़ेद रंग के व्यंजन एवं नारियल भी माँ को अर्पित किया जाता है। इस दिन माता को शक्कर का भी भोग लगाया जाता है। माता के आशीर्वाद से आयु में वृद्धि होती है।
तीसरा दिन-माँ चंद्र घंटा की पूजा :
नवरात्रि के तीसरे दिन माँ चंद्र घंटा के रूप की पूजा होती है। माँ चंद्र घंटा को आध्यात्मिक एवं आत्मिक शक्तियों की देवी कहा जाता है। इनके आशीर्वाद से जीवन की सभी बाधाएं एवं संकट दूर हो जाते हैं। जिस स्थान पर देवी की अर्चना की जाती है वहां का वातावरण शुद्ध हो जाते है। इस दिन सलेटी ( ग्रे ) रंग के वस्त्र पहनने चाहिए।
क्या अर्पित करें :
इस दिन माँ चंद्रघंटा को दूध या दूध से बनी मिठाई अथवा खीर भी भोग के रूप में अर्पित करते हैं। इस दिन खीर बनाकर ब्राह्मण को दान देना चाहिए। ऐसा करने से दुखों का अंत होता है और आनंद की प्राप्ति होती है।
चौथा दिन- माँ कूष्माण्डा की पूजा :
नवरात्रि के चौथे दिन माँ कूष्माण्डा की पूजा की जाती है। माता के इस रूप की पूजा जो भी भक्त श्रद्धा एवं विश्वास के साथ करते हैं, उनके सभी रोग, कष्ट और शोक दूर हो जाते हैं। माँ की पूजा अर्चना से प्राणी सभी वायु विकार जनित दोषों से मुक्ति पाता है। इस दिन नारंगी रंग के वस्त्र पहनने चाहिए।
क्या अर्पित करें :
इस दिन माँ को माल पुए का भोग लगाकर मंदिर में ब्राह्मण को दान देना चाहिए। माता के आर्शीवाद से बुद्धि का विकास होता है तथा निर्णय लेने की शक्ति बढ़ती है।
पांचवा दिन- माँ स्कंदमाता की पूजा :
नवरात्रि के पांचवे दिन माँ स्कन्द माता की उपासना का दिन होता है। श्रद्धा भाव से पूजा एवं उपासना करने से माँ अपने भक्तों की समस्त इच्छाओं की पूर्ती करती हैं। स्कंदमाता की भक्ति से मनुष्य को सुख शांति की प्राप्ति होती है। प्राणी धन-धान्य एवं संतान सुख की प्राप्ति करता है। इस दिन सफ़ेद वस्त्र धारण करने चाहिए।
क्या अर्पित करें :
पांचवे दिन माँ स्कंदमाता को केले का भोग लगाया जाता है। माता के आशीर्वाद से शरीर स्वस्थ्य बना रहता है।
छठा दिन- माँ कात्यायनी की पूजा :
नवरात्रि के छठे दिन माँ कात्यायनी की पूजा की जाती है। माता कात्यायनी ने ही देवी अम्बा के रूप में महिषासुर का वध किया था। पूजा करने वाले भक्तों को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है। गौधुली बेला में माँ का ध्यान किया जाता है। कात्यायनी माँ को शेरवाहिनी के रूप में भी जाना जाता है। इनकी अराधना करने से भक्त कर्जमुक्त होकर संकल्प सिद्ध हो जाता है। इस दिन लाल वस्त्र धारण करने चाहिए।
क्या अर्पित करें :
माँ कात्यायनी देवी को इस दिन शहद अर्पित करना चाहिए। शहद अर्पण करने से आरोग्य एवं आकर्षण शक्ति में वृद्धि होती है।
सातवां दिन- माँ कालरात्रि की पूजा :
नवरात्रि के सातवें दिन माँ कालरात्रि की पूजा की जाती है। देवी का यह रूप रिद्धि-सद्धि प्रदान करने वाला है। काल का नाश करने वाली, अकाल मृत्यु हरने वाली, भूत प्रेतों से मुक्ति दिलाने वाली माँ कालरात्रि की पूजा से सभी दुःख एवं संताप दूर होते हैं। इस दिन नीले रंग के वस्त्र पहनने चाहिए।
क्या अर्पित करें :
माँ कालरात्रि को गुड़ का भोग लगाकर ब्राह्मण को दान करना चाहिए। ऐसा करने से शोक से मुक्ति मिलती है।
आठवां दिन-महागौरी की पूजा :
नवरात्रि के आठवें दिन माँ गौरी की पूजा की जाती है। माँ का यह रूप देवताओं की रक्षा के लिए प्रचलित है। जो स्त्री माता के इस रूप की पूजा करती है, वह सदैव सौभाग्यशाली रहती है। कुंवारी कन्याओं को योग्य वर तथा पुरुष को सुखमय जीवन तथा आनंद की प्राप्ति होती है। इस दिन लाल या गुलाबी रंग के वस्त्र पहनने चाहिए।
क्या अर्पित करें :
माँ गौरी को नारियल का भोग लगाएं और नारियल ही अर्पित करना चाहिए। इससे भक्त को समृद्धि एवं खुशियां मिलती हैं। संतान सम्बन्धी कष्टों से भी छुटकारा मिलता है।
नौवां दिन-सिद्धिदात्री की पूजा :
नवरात्रि के नौवे दिन माँ सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है। माँ सिद्धिदात्री सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाली हैं। नौवें दिन पूजन करने के बाद ही व्रत का परायण करना चहिए। इस दिन जामुनी (purple) रंग के वस्त्र धारण करना चाहिए।
क्या अर्पित करें :
इस दिन अनाज जैसे- गेहूं, मक्का तथा विशेष रूप से तिल का भोग लगाने से माँ प्रसन्न होती हैं। इसके बाद ब्राह्मण को दान करना चाहिए।इसके द्वारा अनहोनी मुसीबतों से छुटकारा मिलता है।

दुर्गा माँ
दुर्गा सप्तशती का पाठ :
नवरात्रि में प्रतदिन दुर्गा सप्तशती का पाठ पूरी श्रद्धा एवं विधि-विधान के साथ करने से जीवन में शांति, सुख-समृद्धि एवं सुविचारों का उदय होता है। भविष्य पुराण के अनुसार दुर्गा सप्तशती के आदि चरित्र, मध्यम चरित्र और उत्तम चरित्र के महात्म्य का श्रद्धा से पाठ करने से हमें वेदों के पढ़ने का फल मिलता है। उसके पाप नष्ट होते हैं और वह इस जन्म में समस्त सुख भोग कर अंत में परम गति को प्राप्त होता है।
कन्या पूजन :
अष्टमी या नवमी के दिन कन्या पूजन किया जाता है। इसका धार्मिक कारण यह है कि कुवांरी कन्याएं माता के समान ही पवित्र और पूजनीय होती हैं। दो वर्ष से लेकर दस वर्ष की कन्याएं साक्षात् माता का स्वरुप माना जाती है। यही कारण है कि इसी उम्र की कन्याओं के पैरों का विधिवत पूजन कर भोजन कराया जाता है।
ऐसा माना जाता है कि कन्या पूजन से देवी अत्याधिक प्रसन्न होती हैं। विधिवत श्रद्धा के साथ पूजन करने से व्यक्ति के ह्रदय का भय दूर होता है। साथ ही मार्ग में आने वाली सभी बाधाएं दूर हो जाती हैं। माँ दुर्गा का आशीर्वाद सदैव बना रहता है।
आयु अनुसार कन्या पूजन :
नवरात्रि में अष्टमी और नवमी को नौ कन्याओं की पूजा होती है।
दो वर्ष की कन्या पूजन :
दो वर्ष की कन्या कुमारी के पूजन से दुःख और दरिद्रता दूर करती हैं माँ।
तीन वर्ष की कन्या पूजन :
तीन वर्ष की कन्या त्रिमूर्ति मानी जाती है। त्रिमूर्ति कन्या के पूजन से धन धन्य आता है और परिवार में सुख समृद्धि आती है।
चार वर्ष की कन्या पूजन :
चार वर्ष की कन्या को कल्याणी माना जाता है। इसकी पूजा से परिवार का कल्याण होता है।
पांच वर्ष की कन्या पूजन :
पांच वर्ष की कन्या रोहिणी कहलाती है। रोहिणी को पूजने से व्यक्ति रोगमुक्त हो जाता है।
छः वर्ष की कन्या पूजन :
छः वर्ष की कन्या को कालिका रूप कहा गया है। कालिका रूप से विद्या, विजय, राजयोग की प्राप्ति होती है।
सात वर्ष की कन्या पूजन :
सात वर्ष की कन्या का रूप चंडिका का है। चंडिका रूप का पूजन करने से ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है।
आठ वर्ष की कन्या पूजन :
आठ वर्ष की कन्या शाम्भवी कहलाती है। इसका पूजन करने से वाद-विवाद में विजय प्राप्त होती है।
नौं वर्ष की कन्या पूजन :
नौं वर्ष की कन्या दुर्गा कहलाती है। इसका पूजन करने से शत्रुओं का नाश होता है तथा असाध्य कार्य पूर्ण होते हैं।
दस वर्ष की कन्या पूजन :
दस वर्ष की कन्या सुभद्रा कहलाती है। सुभद्रा अपने भक्तों के सारे मनोरथ पूर्ण करती है।
कन्याओं को क्या करें भेंट :
नवरात्रि में देवी को प्रसन्न करने के लिए कन्याओं को उनके उपयोग की वस्तुऐं भेंट करनी चाहिए।
शैलपुत्री :
माता को प्रसन्न करने के लिए कन्या को कंघा, हेयर ब्रश, हेयर बैंड उपहार में दें।
ब्रह्मचारिणी :
इनकी प्रसन्नता के लिए खुशबूदार तेल की शीशी कन्याओं को दें।
चंद्रघंटा :
इनको प्रसन्न करने के लिए आइना, रोली खिलौना आदि भेंट दें।
कूष्माण्डा :
कूष्माण्डा माँ को प्रसन्न करने के लिए कन्याओं को मिठाई एवं कोल्ड क्रीम आदि भेंट करें।
स्कंदमाता :
माता को प्रसन्न करने के लिए कन्याओं को सामर्थ्य अनुसार ज्वेलरी भेंट करनी चाहिए।
कात्यायनी :
माँ कात्यायनी को प्रसन्न करने के लिए कन्याओं को फल एवं फूल भेंट करने चाहिए।
कालरात्रि :
देवी माँ को प्रसन्न करने के लिए रुमाल और खुशबूदार चीज़ें भेंट करनी चाहिए।
महागौरी :
महागौरी की प्रसन्नता के लिए पकवान, मिठाई, हलवा आदि कन्याओं को दान देना चाहिए।
सिद्धिदात्री :
देवी माँ को प्रसन्न करने के लिए कन्याओं को वस्त्र, रुपये तथा भोज्य पदार्थ भेंट में देना चाहिए।
नवरात्रि एक ऐसा समय होता है जब हम अपने अंदर सकारात्मक शक्तियों का संचार कर सकते हैं। माँ की उपासना करके अपने जीवन के उद्देश्य की पूर्ती के लिए ऊर्जा का विकास सकारात्मक रूप से कर सकते हैं। माँ की शरण में इन नौ दिनों तक रहने से असीम शांति एवं सुख की प्राप्ति होती हैं।
निष्कर्ष —
नवरात्रि में तन-मन ही नहीं, बल्कि सम्पूर्ण वातावरण सकारात्मक बन जाता है, जिससे हम ऊर्जान्वित महसूस करते हैं। इन नौ दिनों में हम प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से मानव कल्याण में रत रहते हैं, जिससे अनुष्ठान का महत्त्व और अधिक बढ़ जाता है। राक्षसों का संहार करने वाली देवी की पूजा का अर्थ है आसुरी वृत्तियों अर्थात मन से नकारात्मक भावों का उन्मूलन। यदि हम शक्ति आराधना के माध्यम से अपने अंदर की आसुरी वृत्तियों को मार पाते हैं, तो यह अनुष्ठान हमारे लिए सार्थक है।
