Govardhan Parvat-कलयुग के अंत तक क्या धरती में समा जाएगा
Govardhan Parvat, जिसे गोवर्धन हिल व गिरिराज पर्वत के नाम से भी जाना जाता है। यह पर्वत भगवान कृष्ण के भक्तों के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है। यह पवित्र पर्वत प्राचीन पौराणिक कथाओं, आध्यात्मिक महत्व और प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर है। भारत के उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले में स्थित, गोवर्धन पर्वत भगवान कृष्ण की कई दिव्य लीलाओं से जुड़े होने के कारण पूजनीय है। इस लेख में समृद्ध इतिहास, सांस्कृतिक महत्व और पहाड़ के आकार में धीरे-धीरे कमी की संबंधित घटना, जिसके कारण ऐसा कहा जा रहा है कि कलयुग के अंत तक यह क्या धरती में समा जाएगा ?
गोवर्धन पर्वत
Govardhan Parvat कहाँ स्थित है ?
गोवर्धन पर्वत मथुरा शहर से लगभग 22 किलोमीटर और वृन्दावन से लगभग 16 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह क्षेत्र, जिसे सामूहिक रूप से ब्रज के नाम से जाना जाता है। यह स्थान भगवान कृष्ण की क्रीड़ास्थली के रूप में माना जाता है। गोवर्धन पर्वत स्वयं लगभग 8 किलोमीटर की दूरी तक फैला हुआ है और लगभग 100 फीट ऊंचा है।
Govardhan Parvat – महत्त्व
गोवर्धन पर्वत की कहानी मुख्य रूप से भागवत पुराण और विष्णु पुराण में वर्णित है।
कृष्ण भक्तों के लिए गोवर्धन पर्वत अत्यधिक धार्मिक महत्व रखता है। यह भगवान कृष्ण के बचपन से जुड़ा हुआ है। भगवान कृष्ण ने सभी ब्रजवासियों से गोवर्धन की पूजा करने के लिए कहा, जबकि पहले ब्रजवासी इन्द्र के प्रकोप से डरकर उसकी पूजा करते थे। तब भगवान ने समझाया कि आप सभी को गोवर्धन की पूजा करनी चाहिए क्योंकि वह ही आपको अन्न प्रदान करते हैं।
तब भगवान कृष्ण के कहने पर सभी ब्रजवासी गोवर्धन पर्वत की पूजा करने लगे। इस पर इंद्रदेव क्रोधित हो गए। उन्होंने तेज बारिश कर दी जो बहुत दिनों तक चलती रही। पूरे ब्रजमंडल में बाढ़ जैसी स्थिति बन गयी। तब भगवान कृष्ण ने ब्रज के निवासियों को देवताओं के राजा इंद्र के प्रकोप से बचाने के लिए अपनी छोटी उंगली पर पहाड़ को उठा लिया था।
ग्रामीणों और उनके मवेशियों की रक्षा के लिए, कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को उठाया, जिससे उन्हें सात दिनों और रातों के लिए आश्रय मिला। इस चमत्कारी घटना ने न केवल कृष्ण की दिव्य शक्ति को प्रदर्शित किया, बल्कि सर्वोच्च देवता के समक्ष प्रकृति पूजा और विनम्रता के महत्व पर भी जोर दिया।
सभी ब्रजवासियों को इसी पर्वत के नीचे भगवान ने संरक्षण प्रदान किया और इन्द्र का अहंकार तोड़ा। तब से सभी गोवर्धन की पूजा करने लगे और यह पूजा आज भी पूरी श्रद्धा से की जाती है।
गोवर्धन पूजा
गोवर्धन पूजा –
गोवर्धन पूजा को अन्न कूट भी कहते हैं। यह त्यौहार प्रतिवर्ष दिवाली के बाद, कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को मनाया जाता है। यह मुख्य्तः अक्टूबर या नवंबर महीने में आता है। इस दिन प्रातः काल स्नान आदि से निवृत होकर गाय के गोबर से गिरिराज गोवर्धन पर्वत की आकृति बनाई जाती है। फिर इस पर पेड़ पौधों व ग्वाल बालों की आकृतियां बनाते हैं और मध्य में श्री कृष्ण की मूर्ति स्थापित की जाती है।
इसके पश्चात गिरिराज महाराज की धूप, दीप जलाकर पूजा अर्चना, कथा श्रवण की जाती है। इसके बाद फल, व अन्नकूट का भोग लगाया जाता है, जल अर्पित करें। गोवर्धन की 7 परिक्रमा लगाएं। फिर अन्नकूट का प्रसाद सभी को वितरित करें।
इस पूजा का बहुत अधिक महत्त्व है। गोवर्धन पूजा से मनुष्य को आरोग्यता प्राप्त होती है, दरिद्रता का नाश होता है, घर में सुख समृद्धि आती है। अतः हमें इस त्यौहार को हंसी ख़ुशी मानना चाहिए।
इस वर्ष 2024 में गोवर्धन पूजा 2 नवंबर को मनाई जाएगी। शुभ मुहूर्त – प्रातः 6:34 से 8:46 तक।
गोवर्धन परिक्रमा महत्त्व –
गोवर्धन पर्वत पर आने वाले तीर्थयात्री गोवर्धन परिक्रमा के पवित्र अनुष्ठान में शामिल होते हैं, जो पहाड़ी की परिक्रमा है। परिक्रमा मार्ग लगभग 21 किलोमीटर लंबा है, और भक्त अक्सर इस यात्रा को नंगे पैर करते हैं, भक्ति भजन गाते हैं और भगवान कृष्ण की स्तुति गाते हैं। ऐसा माना जाता है कि यह अनुष्ठान अत्यधिक आध्यात्मिक लाभ और आशीर्वाद लाता है।
गोवर्धन परिक्रमा का पौराणिक महत्त्व बताया जाता है। ऐसी मान्यता है कि जो भी 7 कोस अर्थात 21 किमी की यह परिक्रमा श्रद्धा व भक्ति से करता है उसकी सभी मनोकामना पूर्ण होती है, पाप नष्ट हो जाते हैं और उस पर भगवान कृष्ण व राधा रानी की कृपा सदैव बनी रहती है। तभी पूरे विश्व से कृष्ण भक्त, वल्लभ पंत (संप्रदाय), वैष्णव जन गोवर्धन की परिक्रमा करने आते हैं।
प्रत्येक माह के शुक्लपक्ष की एकादशी से, माह की पूर्णिमा तक एवं गुरु पूर्णिमा के दिन लाखों भक्तजन परिक्रमा करने के लिए आते हैं। इस समय परिक्रमा का महत्त्व और बढ़ जाता है। इसके साथ इस परिक्रमा को शरद पूर्णिमा एवं गोवर्धन पूजा के दिन भी करना शुभ माना जाता है।
भक्तों का ऐसा मानना है कि भगवान श्री कृष्ण यहाँ स्थित गोविन्द जी मंदिर में अपने शयन कक्ष में शयन करने आते हैं।
गोवर्धन मंदिर
परिक्रमा मार्ग के प्रमुख दर्शनीय स्थल –
परिक्रमा करते समय आपको मार्ग में अनेक दर्शनीय स्थल देखने को मिलेंगे जैसे – मानसी गंगा, गोविन्द कुंड, राधा कुंड, कुसुम सरोवर, मुखार्विद मंदिर, आन्यौर, जातिपुरा, दानघाटी, पूंछरी का लौठा आदि। इसके साथ आप भगवान कृष्ण के चरण चिन्हों के दर्शन जो कि गोवर्धन पर्वत पर स्थित सुरभि गाय, ऐरावत हाथी और एक शिला पर स्थित है।
परिक्रमा का प्रारम्भ –
गोवर्धन की परिक्रमा आम लोग मानसी गंगा से और वैष्णवजन जातिपुरा से प्रारम्भ करते हैं। जहाँ से परिक्रमा की शुरुआत की जाती है वही परिक्रमा की समाप्ति करनी होती है।
कभी भी आधी परिक्रमा नहीं करनी चाहिए। परिक्रमा की शुरुआत मानसी गंगा में स्नान करके, नंगे पाँव की जाती है। मन में शुद्ध आचरण के साथ ही यात्रा प्रारम्भ करनी चाहिए।
मानसी गंगा से यात्रा शुरू करते हुए, बीच में राधा कुंड होते हुए, वृन्दावन रोड से यात्रा आगे बढ़ती जाती है। यात्रा का पहला पड़ाव दानघाटी मंदिर पर पड़ता है यहाँ गिरिराज जी का दूध से अभिषेक किया जाता है।
गोवर्धन पर्वत क्या कलयुग के अंत तक धरती में समा जाएगा ?
गोवर्धन पर्वत कलयुग के अंत तक धरती में समा जाएगा। ऐसा इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि आज से पांच हज़ार साल पहले यह पर्वत 30 हज़ार मीटर ऊँचा था जो आज घटकर लगभग 30 मीटर रह गया है। इसके पीछे कुछ पौराणिक कथाएं है जिसमे गोवर्धन पर्वत को श्राप मिला था कि तुम धीरे-धीरे धरती में समा जाओगे। तब आइए जानते हैं उस कथा के बारे में।
पौराणिक कथा –
एक बार की बात है पुलस्त्य ऋषि भ्रमण करते हुए गोवर्धन पर्वत पर पहुंचे। वहां उसकी सुंदरता देखकर वह मन्त्र मुग्ध हो गए। उन्होंने गोवर्धन पर्वत के पिता द्रोणाचल पर्वत से कहा कि वह आपके पुत्र को काशी ले जाने के लिए इच्छुक हैं। वही रहकर वह इनकी पूजा करेंगे।
यह सुनकर द्रोणाचल पर्वत चुप हो गए वह मन से तो अपने पुत्र को भेजना नहीं चाहते थे परन्तु ऋषि को इंकार नहीं कर सके। यह सब वार्ता गोवर्धन पर्वत सुन रहे थे। उन्होंने ऋषि के साथ चलने के लिए ऋषि के समक्ष एक शर्त रखी। शर्त इस प्रकार थी कि आप मार्ग में मुझे कही भी नहीं रखेंगे, यदि आपने ऐसा किया तो में वही स्थापित हो जाऊँगा।
पुलस्त्य ऋषि ने गोवर्धन पर्वत की शर्त स्वीकार ली। फिर क्या था उन्होंने अपने तपोबल से गोवर्धन को अपनी हथेली पर रखा और चल दिए काशी की ओर। चलते चलते ब्रज भूमि आ गई। गोवर्धन पर्वत का यह मन हुआ कि क्यों न मैं यहीं रह जाऊं। जब श्री कृष्ण धरती पर अवतार लेंगे तब मैं इसी ब्रजमंडल में रहकर उनकी बाल्यकाल एवं किशोर काल की लीला देख सकूंगा। फिर क्या था उन्होंने अपना भार और बड़ा लिया।
जिससे ऋषि थोड़ा दूर चलने पर थकान महसूस करने लगे। उन्होंने सोचा यही थोड़ा विश्राम कर लू फिर यात्रा करूंगा और इस प्रकार उन्होंने गोवर्धन को ब्रज में ही स्थापित कर दिया। वह भूल गए थे कि शर्त के अनुसार उन्होंने गोवर्धन को कहीं नहीं रखना है। कुछ देर बाद विश्राम के पश्चात वह गोवर्धन को उठाने का प्रयास करने लगे लेकिन गोवर्धन ने शर्त का स्मरण कराया और उठने से मना कर दिया।
तब ऋषि पुलस्त्य हठ करने लगे, लेकिन गोवर्धन पर्वत टस से मस नहीं हुए। इस पर ऋषि ने गोवर्धन पर्वत को श्राप दे डाला। तुमने मेरा मनोरथ पूर्ण नहीं होने दिया, इसलिए आज से इसी क्षण से तुम्हारा तिल-तिल करके क्षरण होता जाएगा। तुम कलयुग के अंत तक धरती में मिल जाओगे। तब से आज तक यह क्षरण जारी है गोवर्धन की ऊंचाई निरंतर घटती जा रही है।
पर्यावरण संबंधी चिंताएँ: गोवर्धन पहाड़ी का घटता आकार
अपने आध्यात्मिक महत्व के बावजूद, गोवर्धन पर्वत एक चिंताजनक पर्यावरणीय मुद्दे का सामना कर रहा है। इसका आकार धीरे-धीरे कम हो रहा है। इस घटना के लिए कई कारण जिम्मेदार हैं।
कटाव और अपक्षय(Erosion and Weathering)
सदियों से हवा और बारिश के कारण प्राकृतिक कटाव ने धीरे-धीरे पहाड़ी को नष्ट कर दिया है।
मानवीय गतिविधियाँ(Human Activities)
श्रद्धालुओं द्वारा पवित्र पत्थरों और मिट्टी की निकासी सहित, तीर्थयात्रा-संबंधी गतिविधियों ने पहाड़ी के क्षरण में योगदान दिया है। इसके अतिरिक्त, अनियमित निर्माण और पर्यटन बुनियादी ढांचे ने पर्यावरण पर और दबाव डाला है।
वनों की कटाई(Deforestation)
पहाड़ी के चारों ओर वनस्पति आवरण के नुकसान के कारण मिट्टी का कटाव बढ़ गया है।
गोवर्धन पर्वत को संरक्षित करने के लिए पर्यावरणविदों और सरकार द्वारा प्रयास किए जा रहे हैं। पहल में पुनर्वनीकरण परियोजनाएं, तीर्थयात्रा गतिविधियों को विनियमित करना और पहाड़ी के पारिस्थितिक महत्व के बारे में भक्तों के बीच जागरूकता पैदा करना शामिल है।
निष्कर्ष(Conclusion)
गोवर्धन पर्वत भगवान कृष्ण की दिव्य लीलाओं के प्रमाण के रूप में खड़ा है और उनके भक्तों के दिलों में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इसका ऐतिहासिक, पौराणिक और आध्यात्मिक महत्व इसे एक पूजनीय तीर्थ स्थल बनाता है।
हालाँकि, पहाड़ी के आकार में धीरे-धीरे कमी आने वाली पीढ़ियों के देखने के लिए, इस पवित्र स्थल को संरक्षित करने के लिए टिकाऊ प्रथाओं और पर्यावरण संरक्षण की आवश्यकता है। पारिस्थितिकी जागरूकता के साथ भक्ति को संतुलित करके, भक्त यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि गोवर्धन पर्वत अनगिनत तीर्थयात्रियों को प्रेरित और आशीर्वाद देता रहे। यह तभी संभव है जब हम सभी Govardhan Parvat के संरक्षण में सहयोग दें।
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