Ajanta Caves- मनोहारी अजंता की गुफाओं की रोचक विशेषताएं
Ajanta Caves मनोहारी एवं विश्वप्रसिद्ध गुफाएं महाराष्ट्र राज्य के औरंगाबाद जिले में स्थित है। ये गुफाएं जलगांव – औरंगाबाद मार्ग पर, जलगांव से 59 किलोमीटर और औरंगाबाद शहर से लगभग 102 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं। भारत में सबसे ज़्यादा देखे जाने वाले पर्यटन स्थलों में से एक है अजंता की गुफाएं। आप को जान कर हैरानी होगी कि अजंता एक दो नहीं बल्कि पूरे 30 गुफाओं का समूह है। जिसे घोड़े की नाल के आकर में पहाड़ों को काट कर बनाया गया है।
अजंता की गुफाओं की एक ख़ास बात ये है, कि इन सभी में भगवान् बुद्ध के अनसुने और अपठित पहलू चित्रित हैं। जब भगवान् बुद्ध ने मोक्ष प्राप्त किया था, उससे पूर्व के सभी वाकयों का बखूबी चित्रण किया गया है। अजंता की गुफाएं श्री लंका में पायी गयी सीगीरिया गुफाओं से काफी मिलती जुलती हैं। ऐसा माना जाता है कि अजंता की गुफाएं 800 साल पुरानी हैं।
अजंता गुफाएं( बाहरी दृश्य)
अजंता का प्रभुत्व सतपुड़ा घाटी में प्रकृति के मनोरम सौंदर्य को और भी दुगुणित कर देता है। कई सर्पाकार घुमाव से यहाँ पहुँचने से पूर्व अजंता का अनुमान भी नहीं लगता। यहीं से गिरता सप्त प्रपात बाघोरा नदी का उद्गम स्थान। इस प्रपात के कारण गुफा संख्या 16 का दृश्य और भी रमणीय हो जाता है।
यूनेस्को द्वारा 1983 से विश्व विरासत स्थल घोषित किये जाने के बाद, अजंता की तस्वीरें और शिल्पकला बौद्ध धार्मिक कला के उत्कृष्ट नमूने माने गए हैं। इनका भारत की कला के विकास पर गहरा प्रभाव है।
लॉरेंस बिनयन के अनुसार अजंता की गुफाएं एशिया की कला में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं। पाश्चात्य देशों में भारतीय चित्रकला को अपना न्यायोचित स्थान दिलाने में अजंता के चित्रों का प्रमुख स्थान रहा है।
History Of Ajanta Caves (अजंता की गुफाओं का इतिहास)
अजंता गुफाओं से 11 किलोमीटर कि दूरी पर एक छोटा सा गांव है अजिंठा। इसी के कारण इन गुफाओं का नामकरण अजिंठा कि गुफाएं हुआ जिसे अंग्रेजी में “AJANTA CAVES” कहा गया। बाद में हिंदी में भी अजंता की गुफाएं नाम चलन में आ गया।
Discovery Of Ajanta Caves (अजंता गुफाओं की खोज)
इन गुफाओं की खोज काफी दिलचस्प तरीके से हुई। 19वीं शताब्दी (1819) में ब्रिटिश आर्मी अफसर अपने कुछ सैनिकों के साथ शिकार खेलने क लिए औरंगाबाद के पास के जंगलों में गया था।
वहीँ विश्राम के दौरान जब सैनिक अपने घोड़े के पैरों की नाल बदल रहे थे। तो उनको झाड़ियों, पत्तियों व पत्थरों से ढकी हुई ये गुफाएं दिखाई दीं। उन लोगों ने जब झाड़ियों एवं पत्थरों को हटाया तो उनको गुफाएं मिलीं। उन्होंने तुरंत वापस आकर सरकार को सूचित किया। तब पुरातत्व विभाग की टीम ने अजंता की गुफाएं खोज निकालीं।
Ajanta Caves , Monastic Group (अजंता का मठ जैसा समूह)
इनकी खुदाई पहली शताब्दी ईसा पूर्व और सातवीं शताब्दी के बीच दो रूपों में की गयी थी। अजंता का मठ जैसा समूह है जिसमें कई विहार (आवासीय मठ) एवं चैत्य गृह (मंदिर/ स्तूप स्मारक हाल) हैं। इनमे से 5 प्रार्थना भवन और 25 बौद्ध मठ हैं।
विहार बौद्ध मठ हैं जिनका इस्तेमाल रहने और प्रार्थना करने के लिए किया जाता था। यहाँ स्क्वायर शेप के छोटे छोटे हाल और सैल बने हुए हैं। इन सैल्स का इस्तेमाल बौद्ध भिक्षुओं द्वारा आराम करने व दूसरी गतिविधियों के लिए होता था जबकि बीच में मौजूद स्क्वायर स्पेस का इस्तेमाल प्रार्थना के लिए हुआ करता था।
चैत्य गृह का इस्तेमाल प्रार्थना के लिए होता था। इन गुफाओं के आखिर में स्तूप बने हुए हैं जो भगवान् बुद्ध का प्रतीक हैं।
इन गुफाओं का निर्माण दो चरणों में हुआ है। पहले चरण में सातवाहन और इसके बाद वाकाटक शासक वंश के राजाओं ने इनका निर्माण करवाया। पहले चरण कि अजंता गुफा का निर्माण दूसरी शताब्दी के समय हुआ था और दुसरे चरण वाली गुफाओं का निर्माण 460-480 ई में हुआ।
पहले चरण में 9, 10, 12, 13 और 15A की गुफाओं का निर्माण हुआ। दूसरे चरण में शेष 20 गुफाओं का निर्माण किया गया।
Painting Method And Architecture Of Ajanta Caves (अजंता की चित्रण विधि और वास्तुकला)
वास्तुकला :
पहाड़ियों की चट्टानों को खोद कर उन्ही में छत, स्तम्भ, विशाल सभाभवन, विशाल द्वार, विशाल दीवारें, अगणित मूर्तियां बनायीं गयी हैं जो अजंता को विश्व भर में अपना स्थान देते हैं।
कुछ अधूरी गुफाओं से पता चलता है कि इसकी कटाई छत व ऊपरी भाग से होती थी और धीरे धीरे नीचे की ओर काटते हुए चले जाते थे। यह कार्य करते समय सबसे महत्वपूर्ण वस्तु रहती थी जैसे स्तम्भों व अन्य आकारों के लिए प्रस्तर खंड छोड़ना, फिर इन गुफाओं में स्तम्भ, मूर्तियां तथा सभागार उकेर कर (तराश कर) निकाले जाते थे।
अजंता की गुफाओं की दीवारों और छत पर भगवान् बुद्ध के जीवन और शिक्षाओं को नक्काशी और चित्रों द्वारा बताया गया है।
चित्रण विधि :
अजंता में “फ्रेस्को” तथा “टेम्परा” दोनों ही विधियों से चित्र बनाये गए हैं। चित्र बनाने से पूर्व दीवार को भली भाँती रगड़ कर साफ़ किया जाता था तथा फिर उस पर लेप चढ़ाया जाता था।
फ्रेस्को अजंता
चित्रण हेतु पत्थर कि खुरदुरी दीवारों पर खड़िया, गोबर, स्थानीय मिटटी व पत्थर के छोटे छोटे कणों को अलसी के पानी में कई दिनों तक भिगोकर चट्टानों पर उनका लगभग एक इंच का मोटा प्लास्टर कर समतल दीवार तैयार की जाती थी। कभी-कभी छत के प्लास्टर में धान का भूसा भी मिलाया जाता था। उन सभी प्लास्टरों पर एक पतली सी परत सफेदे की चढ़ाई जाती थी। जो अक्सर चूना या स्थानीय खड़िया हुआ करती थी। फिर उसे ओपनी से घुटाई कर चित्रण योग्य धरातल तैयार किया जाता था।
चित्रण में प्राकृतिक रंगों का प्रयोग :
ई वी हेवेल का मत है कि अजंता के चित्रों में अत्यधिक प्रकाश दिखाने के लिए सामान्यतः टेम्परा रंग से चित्रण किया जाता था। स्थानीय खनिज व वानस्पतिक रंग इन चित्रों के काम में लिए गए हैं। प्रायः अपारदर्शी सफ़ेद , लाल, विभिन्न ताल लिए हुए हलके व गहरे रंग जो चूने के क्षारात्मक प्रभाव से भी सुरक्षित रह सके हैं।
प्राकृतिक रंगों का इस्तेमाल :
रामरज का पीला रंग, लाल रंग के लिए गेरू और हिरौंजी, काले रंग के लिए काजल, लालिमा के लिए भूरा, लौह (अयस्क) से प्राप्त खनिज रंग है। हरा रंग एक स्थानीय खनिज से बना है जो संगसब्ज़ टेरावर्ट ग्रीन है, नीला रंग फारस से आयात किया हुआ लेपिस लाजुली है। शायद इसीलिए अधिकाँश चित्रों में लाल रंग की प्रचुरता है जबकि नीला रंग अनुपस्थित है।
रंग लगाने के बाद काले व लाल मिला भूरे रंग से आकार की सीमा रेखाएं बना दी जाती थीं। आवश्यकतानुसार छाया-प्रकाश व कहीं-कहीं विरोधी रंगों के प्रयोग द्वारा आकृतियों को निश्चित रूप दिया जाता था।
चित्रों की चमक :
अजंता की प्रसिद्ध गुफाओं के चित्रों की चमक हज़ार वर्ष बीतने के बाद भी आधुनिक समय के विद्वानों के लिए आश्चर्य का विषय है। चावल के मांड, गोंद व अन्य कुछ पत्तियों या वस्तुओं का सम्मिश्रण कर आविष्कृत किये गए रंगों से बनाये गए इन चित्रों का रंग हल्का नहीं हुआ, खराब नहीं हुआ, चमक यथावत बनी रही। कहीं कुछ सुधारने के लिए आधुनिक रंग लगाने का प्रयत्न हुआ तो वह असफल रहा।
चित्रण तकनीक :
ब्रिटिश संशोधक मि ग्रिफिथ कहते हैं “अजंता में जिन चितेरों ने चित्रकारी की है, वे सृजन के शिखर पुरुष थे”। अजंता में दीवारों पर जो लंबरूप (खड़ी) लाइनें कूची से सहज ही खीचीं गई हैं, वे अचंभित करती हैं। परन्तु जब छत की सतह पर सँवारी क्षितिज के सामानांतर लकीरें, उनमे संगत घुमाव मेहराब की शक्ल में एकरूपता के दर्शन होते हैं। इससे सृजन की हज़ारों जटिलताओं पर ध्यान जाता है, तब लगता है कि वास्तव में यह विस्मयकारी आश्चर्य और कोई चमत्कार है।
अजंता के चित्रों को तीन श्रेणी में विभाजित किया गया है।
१। अलंकारिक चित्र :
इनमे विविध आलेखन हैं जैसे विभिन्न फूल पत्तियां, पुष्पों की बेलें, कमलदल, लताएं, वृक्ष, पशु पक्षी, अलौकिक पशु, राक्षस, किन्नर, नाग, गरुण, यक्ष, गन्धर्व, अप्सराएं आदि।
२। रूप वैदिक :
बुद्ध के विभिन्न स्वरुप पद्मपाणि, वज्रपाणि, बोधिसत्व, अलोकितेश्वर, बुद्ध के विभिन्न घटना चित्र जिन में माया देवी का स्वप्न, महाभिनिष्क्रमण, जीवन के चार सत्य, संबोधि निर्वाण और बुध के जीवन की अलौकिक घटनाएं, विवाह, गृहत्याग आदि।
३। जातक कथाएं :
जिन्हें भगवान बुद्ध के जीवन से सम्बन्ध सर्वविदित घटनाओं का तथा रूप में निरूपण किया गया है जैसे ब्राह्मण जातक, छः दन्त जातक, वेस्सन्तर जातक, हस्ती जातक, महाकपि जातक, मुखपङ्ख रु रु जातक, आदि कई जातक कथाओं का चित्रण हुआ है।
Detailed Description Of Caves (गुफाओं का विस्तृत वर्णन)
गुफा संख्या 1:
यह एक विहार गुफा है। जो कि 64 खम्भों की सहायता से 64 फुट गहरी है। इन खम्भों पर सुन्दर नक्काशी की गई है। गर्भगृह में 20 फुट चौड़े चबूतरे पर भगवान बुद्ध की “धर्मचक्रप्रवर्तक” मुद्रा में एक विशाल प्रतिमा बनी है। जब इनके चेहरे पर बायीं ओर, दायीं ओर तथा सामने से प्रकाश डाला जाता है तो ये क्रमशः उद्दात, ध्यान और शान्ति के भाव प्रकट करते हैं। इनके चारों ओर सृष्टि के तमाम जीवों को संयोजित किया गया है।
गुफा संख्या 1 की छत का दृश्य
यहाँ के प्रमुख चित्रों में “पद्मपाणि अवलोकितेश्वर”, “मारविजय”, “नागराज की सभा”, ” वज्रपाणी”, “शिबीजातक “, “श्रावस्ती का चमत्कार”, “महाजन का वैराग्य”, “नृत्यवादन”, “चम्पेय जातक”, “बैलों की लड़ाई” तथा कई अलंकरण जिनमें कमल पुष्प, हंस, किन्नर युगल आदि अलंकरण की दृष्टि से बनाये गए हैं।
पद्मपाणि अवलोकितेश्वर :
पद्मपाणि, अजंता
इस चित्र में घुटने के नीचे का भाग चित्रित नहीं है। एक उच्च स्तरीय शास्त्रीय शैली का ये चित्र कुछ ही रेखाओं द्वारा कन्धों और बाहुओं के मनोहारी चित्रण से परिपूर्ण है। चित्रकार का तूलिका पर अधिकार है, उसने केवल एक ही रेखा से दोनों भौहें बना दी हैं। गले में मोतियों की माला और सिर पर मुकुट गुप्तकालीन बारीकी से अलंकृत है। धार्मिक और कलात्मक दृष्टि से यह अजंता का एक उत्तम चित्र है।
मारविजय :
कहा जाता ही कि भगवान बुद्ध को जब ज्ञान प्राप्त होने वाला था तब उनकी परीक्षा के रूप में अनेक कष्ट और प्रलोभनों ने उन्हें आ घेरा। इन सभी को मार (कामदेव) की सेना कहा गया है। तपस्या कालीन बुद्ध पर एक भयानक आकृति तलवार चला रही है। पृष्ठभूमि में बोधिवृक्ष चित्रित है। यह एक आध्यात्मिक चित्र है।
श्रावस्ती का चमत्कार :
इसमें बोधिसत्व ने स्वयं को आचार्यों की पंक्ति में सिद्ध करने के लिए श्रावस्ती के राजा प्रसेनजीत की उपस्थिति में कई चमत्कार दिखाए। जिसमे से एक चमत्कार में उन्होंने अपने को अगणित बुद्ध रूपों में प्रकट किया था।
चम्पेय जातक :
एक भित्ति पर चम्पेय जातक कथा का चित्रण है। अपनी पूर्वजन्म की इच्छा के कारण बोधिसत्व नागलोक में राजा चम्पेय (नागराज) के रूप में जन्मे।
वज्रपाणि :
पद्मपाणि के पास ही एक महिला की आकृति है। दाहिनी ओर की दीवार पर वज्रपाणि और काली राजकुमारी के चित्र हैं। जिसके शरीर पर आभूषण हैं, लेकिन नग्न है जैसे अपने पति की प्रतीक्षा कर रही हो।
शिबी जातक :
असेंबली हाल में बाईं ओर शिबी जातक कहानी दर्शायी गयी है जिसमें राजा शिबी को एक बाज के चुंगल से कबूतर को बचाते हुए दिखाया गया है।
भारतीय राजाओं को उपहार भेंट करते हुए विदेशी देशों के गणमान्य व्यक्तियों को दिखाते हुए एक अदालत का दृश्य भी है।
फिर बुद्ध की माता मायावती का स्नान करते हुए का चित्र है।
कुछ जानवरों को अखाड़े में लड़ते हुए भी दिखाया गया है जिसमें दो बैलों का युद्ध अद्वितीय है।
अन्य गुफाओं की भांति इस गुफा की छत पर बड़े ही सुन्दर अलंकरण हैं। जिनमें लताएं, पुष्प, पशु पक्षी आदि विभिन्न आयतकारों में चित्रित हैं। इन डिज़ाइनों को आज भी साड़ियों, शालों व अन्य वस्त्रों पर कॉपी किया जाता है।
इसके अलावा रानी अरुंधति का झूले पर बैठे हुए चित्रित दृश्य भी है।
यहाँ एक सांड की शानदार पेंटिंग है जिसको किसी भी ओर से देखने पर दर्शकों को वो अपने को गुस्से में घूरता हुआ नज़र आता है।
गुफा संख्या 2 :
गुफा 2 पहली गुफा से काफी मिलती जुलती है। इस गुफा के दरवाज़े, छत और मंदिर की नक्काशी भी आश्चर्यजनक है। यहाँ दीवारों पर बुद्ध के 100 चित्र बने हुए हैं।
गुफा संख्या 2 के मुख्य चित्रों में “मायादेवी का स्वप्न”, “बुद्ध जन्म”, “महाहंस जातक”, “श्रावस्ती का चमत्कार”, “पूर्णावादन जातक”, “विदुर पंडित जातक”, “रु रु जातक”, “सर्वनाश”, “प्राणों की भिक्षा”, “पूजार्थिनी स्त्रियां”, “सुनहरे मृग का उपदेश” आदि प्रसिद्द हैं।
अजंता गुफा संख्या 2
महाहंस जातक :
इनमे हंस के रूप में बोधिसत्व बनारस के राजा रानी को धर्म का उपदेश दे रहे हैं। बोधिसत्व हंस को बनारस की रानी खेमा ने पकड़ कर मंगवाया था।
माया देवी का स्वप्न :
बुद्ध के जन्म के चित्रों के नीचे माया देवी का शयन कक्ष है जहाँ श्वेत हाथी को माया देवी ने अपने गर्भ में प्रवेश करते हुए देखा था। इस चित्र में कलाकार ने सफ़ेद गोलाकार को प्रताप पुंज के रूप में स्वप्न की कथा का निरूपण किया है।
ऊपरी भाग में माया देवी अपने पति को स्वप्न की जानकारी दे रही हैं। अग्र भाग में दो ब्राह्मण ज्योत्षी मानो स्वप्न का विश्लेषण कर रहे हैं। उनके चारों ओर दास दासी खड़े हैं जिनके अंगभंगिमाएँ भी कुछ निर्णायक पहलु को दिखाते हैं।
गर्दन झुकी हुई, अँगुलियों से गिनती में मग्न, ऊपरी भाग स्तम्भ से सटा है। अनुमान है कि यह चित्र बुद्ध की विमाता महा प्रजावती का है जो गणना लगा रही हैं कि बुद्ध जन्म में कितने दिन शेष रह गए हैं।
बुद्ध जन्म :
अगले दृश्य में साल वृक्ष की डाल पकड़े माया देवी खड़ी हैं। 3 नेत्र वाले इंद्र ने नवजात शिशु को ग्रहण कर रखा है। उपवन के बाहर की ओर भिखारियों की भीड़ लगी है, जो बुद्ध जन्म पर भीख लेने को आतुर है।
इस गुफा में तुषित स्वर्ग में बुद्ध को सिंघासन पर बैठे भव्य रूप में चित्रित किया गया है। बुद्ध का एक हाथ धर्म चक्र मुद्रा में है और प्रभामंडल से मुखाकृति को देवतरूप में दर्शाया गया है। सिंहासन के दोनों ओर सुन्दर आलेखन है। पास में खड़ी देवताओं की आकृतियां बुद्ध को बड़े सम्मान से देख रही हैं।
सर्वनाश :
इस चित्र में एक वृद्ध भिक्षु का बायां हाथ ठोड़ी से टिका चिंता की मुद्रा में लगा है। दायां हाथ इस प्रकार घूमा हुआ है मानो सब कुछ नष्ट हो गया हो। आँखों और मुख मुद्रा से भी यही प्रकट हो रहा है।
इस गुफा में दाहिनी दीवार पर पूर्णक और इन्द्ररवती की प्रेम कथा भी चित्रित है। उद्यान में झूले में झूलती हुई रानी इन्द्ररवती के शरीर का कौमार्य और लावण्य अति सुन्दर है। आँखों का स्वप्निल भाव बखूबी से चित्रित किया गया है।
इन्द्ररवती ने रस्सी को बड़े ही स्वाभाविकता से पकड़ रखा है। रस्सी की गोलाई झूले में गति का आभास कराती है। सम्पूर्ण चित्र प्रणय भाव लिए हुए है।
दूसरे चित्र में लट्ठे के सहारे खड़ी इन्द्ररवती अपने प्रेमी पूर्णक से लज्जा पूर्वक बातचीत करती दिखाई गई है।
गुफा संख्या 3 :
अपूर्ण अजंता गुफा
यह गुफा अपूर्ण है।
गुफा संख्या 4 :
यह सबसे बड़ी गुफा है जिसमे 28 स्तम्भ हैं। अजंता की गुफा 4 और 17 बिलकुल एक सामान हैं। इन दोनों ही गुफाओं में बने चित्र अधूरे हैं। इनके दरवाज़े पर सामान्य द्वारपाल हैं और कुछ जोड़ों को प्यार करते हुए दिखाया गया है।
इसके अंदर आठ आशंकाओं (डर) के खिलाफ एक गढ़ के रूप में बुद्ध की एक बड़ी आकृति है।
गुफा संख्या 5 :
ये गुफा भी अपूर्ण है। इनमे बुद्ध की कुछ तस्वीरें बनी हैं।
गुफा संख्या 6 :
यह गुफा महायान काल को दर्शाती है। इस गुफा में 2 स्तर हैं। असेंबली हॉल में पद्मासन मुद्रा में बुद्ध की एक छवि है। जिसके आस पास कई जोड़े उड़ रहे हैं।
दूसरे स्तर में स्तम्भों के साथ एक असेंबली हॉल है। दरवाज़े के पैनल पर मगरमच्छ के सिर और एक मेहराब बनाने वाले फूलों की माला है। यह गुफा अन्य गुफाओं की अपेक्षा ज़्यादा अच्छी है और अष्टकोण आकार में बनी हुई है। इसमें एक भिक्षु को कमल के फूल के साथ दर्शाया गया है।
गुफा संख्या 7 :
इस गुफा में बुद्ध की 6 कलाकृतियां हैं और दरवाज़े पर द्वार रक्षक बने हैं।
गुफा संख्या 8 :
इस गुफा में देखने योग्य कुछ भी नहीं है। इसलिए पर्यटन विभाग ने इसमें पावर हाउस स्थापित किया हुआ है।
गुफा संख्या 9 :
यह एक चैत्य गुफा या मंदिर है, जिसमे 22 स्तम्भ हैं। इस गुफा में घुसते ही आप को एक बड़ा हॉल मिलेगा। जिसमे आगे जाने पर एक विशाल घोड़े के नाल वाली विंडो मिलेगी। ये गुफा 3 भागों में विभक्त है। पिछ्ला भाग अंडाकार है जहाँ एक स्तूप भी है। स्तूप का आकार भी अर्धवृत्ताकार है।
अजंता गुफा संख्या 9
इस गुफा का एक प्रसिद्द चित्र स्तूप पूजा का है। चित्र में लगभग 16 व्यक्तियों का समूह स्तूप की ओर जाते हुए दर्शाया गया है। अर्धवृत्ताकार स्तूप, तोरण द्वार, शहनाई, झाड़, मृदंग व अन्य वाद्ययंत्रवादक चित्रित हैं।
एक अन्य चित्र नाग पुरुष का है। पर्वत कंदरा पर दो नागपुरुष वृक्ष की छाँव में बैठे हैं। नागराज को पूजा में आए लोगों की बातें सुनते दर्शाया गया है।
गुफा संख्या 10 :
शैली और वास्तुकला में यह गुफा पिछली गुफा 9 से बहुत मिलती जुलती है। यह भी एक चैत्य गुफा है, जो कि 95 फुट गहरी है और छत्तीस फुट ऊँची है। ये भी पीछे से घोड़े के नाल की तरह है और इसके अंदर भी स्तूप है। इस गुफा की प्रमुख चित्रकारी इस प्रकार है।
छः दंतजातक :
छह दन्त हस्ति ( जिसके 6 दांत हैं ) परिवार कमलताल में क्रीड़ा करते हुए दिखाया गया है। हस्तीराज अपनी रानियों को सूंड से कमल पुष्प दे रहा है। कहीं पर हस्ति स्वयं को अजगर से बचाते हुए चित्रित किया गया है।
कथानक यह है कि एक बार बोधिसत्व का जन्म हाथी के रूप में हुआ था। तब उनका शरीर श्वेत रंग का था, मुख व पैर लाल रंग के थे और उनके छः दांत थे। इन विभूतियों के फलस्वरूप वो हाथियों के राजा हो गए।
छः दंतजातक बोधिवृक्ष की पूजा के लिए जाता राजा का जलूस है और सामजातक का है। बायीं भित्ति पर चित्रित जलूस में एक सुंदरी नागराज के ऊपर छत्र लिए चल रही है। राजा के साथ और भी कई नारियां चल रही हैं। आगे चल कर स्तूप पूजा दिखाई गई है।
एक दूसरे स्थान पर जलूस को तोरण द्वार के नीचे से जाता हुआ दिखाया गया है। चित्र में भीड़-भाड़ का अच्छा आभास होता है।
छह दंतक 10 वीं गुफा के चित्रण में हाथियों का चित्रण अजंता के चित्रकारों का प्रिय विषय रहा है। क्योंकि यहाँ 2 बार और गुफा संख्या 17 में भी यह विषय चित्रित हुआ है। चित्रकारों ने घने जंगल में हाथियों की विभिन्न मुद्राओं में जलक्रीड़ा अंकित की है।
यहाँ चित्रित वन में कई प्रकार के वृक्ष चित्रित किये गए हैं जैसे-बरगद, गूलर, आम इत्यादि।
गुफा संख्या 11 :
बुद्धा स्तूप गुफा 11
यह गुफा हीनयान से महायान काल के परिवर्तन को दर्शाती हुई नज़र आती है। इसमें एक बड़े हॉल में बुद्ध स्तूप बना हुआ है।
गुफा संख्या 12 से 15 :
ये गुफाएं अपूर्ण हैं और इनमे देखने लायक कुछ ख़ास नहीं है।
गुफा संख्या 16 :
यह गुफा सभी गुफाओं के मध्य में स्थित है। यहाँ से सप्त प्रपात भी दिखाई देता है, जो बाघोरा नदी का उद्गम स्थल है।
प्रवेश द्वार पर दोनों ओर हाथी उत्कीर्ण हैं। फिर बायीं ओर सीढ़ियां चढ़कर सामने दीवार पर नागराज की सिंहासनारूढ़ प्रतिमा है।
यह विहार गुफा अजंता की सुन्दरतम गुफाओं में से है जहाँ पर सर्वाधिक चित्र हैं। इस विहार में अभी भी बुद्ध के जीवन और जातक कथाओं से सम्बंधित चित्र कुछ अच्छी स्थिति में मिलते हैं। इनमे बुद्ध के जीवन संबंधी घटनाओं में “मायादेवी का स्वप्न”, “धर्मोपदेश”, “नन्द की दीक्षा”, तथा अन्य जातकों में “हस्तिजातक”, “महाउमग्ग जातक”, “नन्द कुमार का वैराग्य” आदि आलेखन चित्रित हैं।
इस गुफा में 20 स्तम्भ हैं एवं मंडप के तीनो ओर साधुओं के निवास हेतु 14 कोटड़ियां हैं। छत की खुदाई साँची की सभ्यता रखती हुई है।
सौन्दरानन्द :
कहा जाता है कि संघ में नन्द बहुत दुखी रहता था। बुद्ध को जब पता चला कि अपनी नवविवाहित पत्नी के प्रति आसक्ति के कारण नन्द उदास रहता है, तो बुद्ध उसे स्वर्ग ले गए। वहां अप्सराओं को देखने के उपरान्त नन्द का भ्रम जाता रहा।
इसमें सबसे पहले श्वेत परिधान में भिक्षा पात्र लिए हुए बुद्ध दिखाए गए हैं। उनका सिर झुका हुआ है और आँखों से करुणा टपक रही है।
अन्य दृश्य में राहुल और यशोधरा बुद्ध के लौटने की प्रतीक्षा में हैं। मरणासन्न राजकुमारी का चित्रण भी सौन्दरानन्द कथा का एक भाग है।
मरणासन्न राजकुमारी :
इस चित्र के पहले दृश्य में दो व्यक्ति खड़े हैं। उनमे से एक के हाथ में मुकुट है, जिसकी मुद्रा शोक में लिप्त है। दूसरा व्यक्ति राजकुमारी से कुछ कह रहा है। यह चित्र मरणासन्न राजकुमारी का न होकर विरहासन्न राजकुमारी का है जो नन्द की पत्नी सुंदरी है और वह राजमुकुट नन्द का मुकुट है। जिसे देख कर सुंदरी समझ लेती है कि अब जीवन में विरह के सिवा कुछ नहीं है। इस चित्र में करुणा भाव कि श्रेष्ठता है।
अगले चित्र में एक उच्चकुलीन महिला ऊँचे सिंहासन पर सिर लटकाये, अधखुले नेत्रों और शिथिल अंगों से अधलेटी हुई अंकित है। एक दासी सहारा देकर उसे उठा रही है, दूसरी दासी अपना हाथ उसकी छाती पर रख कर मानो श्वास परिक्षण कर रही है। एक अन्य दासी पंखा डुला रही है। नीचे कुछ पारिवारिक सदस्य बैठे हैं जो राजकुमारी के जीवन के प्रति बड़ी आशंकाओं से देख रहे हैं।
यहीं एक स्त्री अपना मुँह छिपाकर रूदन कर रही है। पास ही एक सेवक और परिचारिका खड़ी है, जिसके हाथ में एक ढका हुआ पात्र है। ऐसा प्रतीत होता है, जिसमे औषधि है। दाहिने हाथ की उँगलियों से वह संकेत कर रही है, कि औषधि दो बार देनी है।
चित्र वर्णन
यह चित्र बुद्ध के भाई नन्द कि पत्नी सुंदरी का है। जिसमे नन्द बुद्ध भिक्षु बन जाने पर अपना राज मुकुट एक सेवक के साथ सुंदरी के पास इस अभिप्राय से भेजते हैं कि वह भिक्षु बन गए हैं।
मायादेवी के स्वप्न के ऊपर बुद्ध जन्म का चित्रण है। इसमें जन्म लेते ही सात पग चलने वाली कथा को सात कमल पुष्प के प्रतीक में चित्रित किया गया है।
हस्तिजातक का चित्र भी बहुत मनोहारी है। इसमें राजा द्वारा निर्वासित 700 भूखे प्यासे लोगों के शोरगुल के कारण बोधिसत्व स्वयं उनके पास आते हैं। जो कि एक बहुत शक्तिशाली हाथी थे। स्वयं को भूखों की भूख मिटाने के लिए पहाड़ी से गिराकर मार देते हैं।
इस चित्र के पहले दृश्य में बोधिसत्व सभी को नीचे जाने को कहते हैं। फिर दूसरे दृश्य में बोधिसत्व हाथी एक मृत अवस्था में हैं। दो पथिक छुरियों से हाथी के मांस को काटते हुए दिखाए गए हैं। अन्य पथिक को मांस पकाते हुए दिखाया है। आगे सभी लोगों को जाते हुए दिखाया गया है।
यहाँ उमग्गजातक में दो स्त्रियां एक बालक को अपना-अपना पुत्र होने का अधिकार एक साथ व्यक्त करती हैं। तो बुद्ध इसके समाधान हेतु जब बच्चे के दो टुकड़े कर के वह एक-एक टुकड़ा दोनों स्त्रियों को देने का प्रस्ताव करते हैं। तो असली माँ बच्चे पर से अपना अधिकार छोड़ने को तैयार हो जाती है।
गुफा संख्या 17 :
यह चैत्य गुफा सबसे सुरक्षित रही है। इस गुफा का निर्माण वाकाटक वंश के राजा हरिसेन के एक श्रद्धालु मण्डलाधिपति ने करवाया था। इस गुफा में 16 की अपेक्षा अधिक महत्वपूर्ण चित्र हैं और सुरक्षित भी हैं।
हंसा जातक गुफा 17
डॉ वर्गेस ने इस गुफा के 21 सुरक्षित अच्छे दृश्यों का जिक्र किया। जिनमे: “छह दन्त जातक”, “हस्तिजातक”, “मात्र पोषक जातक”, “वयगोध मृग जातक”, “सामजातक”, “शिबीजातक”, “वैससान्तर जातक”, “महाहंस जातक”, “महिप जातक”, “सिंहल अवदान”, “मच्छ जातक”, “महासुत सोम जातक”, “आठ पापों से बचने के लिए बुद्ध का उपदेश”, “नीलगिरि प्रकरण”, “जीवन कूप मैत्रेय और मानुषी बुद्ध”, “श्रावस्ती का चमत्कार”, “बुद्ध का संघ को उपदेश” तथा “राहुल समर्पण” आदि यहाँ के प्रसिद्द चित्र हैं।
राहुल समर्पण :
ये यहाँ का एक प्रसिद्द चित्र है। बुद्धत्व कि प्राप्ति के बाद गौतम जब पहली बार कपिलवस्तु आते हैं तो भिक्षा के लिए यशोधरा के सम्मुख पहुँच जाते हैं। यशोधरा अपने पति को क्या दे जब अपना सर्वस्व पति विश्वगुरु बुद्ध स्वयं भुक्षु बनकर सामने उपस्थित हों। तब यशोधरा अपना सर्वस्व एकमात्र निधि पुत्र ‘राहुल’ बुद्ध को समर्पित कर देती है।
राहुल और यशोधरा को सामान्य मानवीय आकर और बुद्ध को वृहद् आकार में बनाकर उनके प्रभुत्व को प्रदर्शित किया गया है।
वेस्सानतर जातक :
बोधिसत्व एक बार वेस्सानतर के रूप में पैदा हुए थे। दान में उनकी बराबरी करना असंभव था। लोगों ने उनकी दानशीलता की खूब परीक्षा ली।
एक बार वेस्सानतर को ही भिक्षा में मांग लिया जाता है। वेस्सानतर अपनी पत्नी माद्री को राज्य से अपने निष्कासन का दुखद सन्देश सुना रहे हैं। चित्र में राजा आसन पर भावपूर्ण मुद्रा में बैठे हैं। सामने एक असुंदर भिक्षु भिक्षा याचना कर रहा है।
उसकी याचना से सम्पूर्ण राज परिवार आश्चर्यचकित है । राजा के पीछे बैठी स्त्रियां चिंतित हैं। राजकुमार भी तैयार हैं। वो विदा लेने को तत्पर दोनों हाथ जोड़े बैठे हैं।
अगले दृश्य में राजकुमार अपने रथ और अपने अश्व को देकर, पैदल नगर से बाहर आते चित्रित हैं।
गुफा संख्या 18 :
ये खाली है जिसमे पानी को एकत्रित करने की व्यवस्था है।
गुफा संख्या 19 :
यह एक मंदिर है जिसमें घोड़े कि नाल के आकार में भगवान बुद्ध का चित्र है। बायीं ओर नागराज अपनी पत्नी के साथ चित्रित हैं। दायीं ओर भगवान बुद्ध को अपनी पत्नी व पुत्र से उपहार लेते हुए दिखाया गया है।
अजंता गुफा 19
इसमें एक स्तूप भी है जिसमें तीन छाते बने हैं और स्तूप पर बुद्ध की तस्वीर भी तराशी गयी है।
गुफा संख्या 20 :
इसमें बुद्ध के उपदेश दर्शाये गए हैं।
गुफा संख्या 21 :
यह एक चैत्य गुफा है। इसमें बुद्ध की एक विशाल प्रतिमा है, जो कि “परिनिरुवाना” (मुक्ति) की अवस्था में है। बरामदे के पास बाईं दीवार पर बुद्ध का ध्यान भटकाने के लिए मार (कामदेव) के प्रलोभन का एक और दृश्य है। मंदिर की दीवारों पर एक अलंकृत स्तूप के साथ उत्तम नक्काशी है।
गुफा संख्या 22 :
हालाँकि यह गुफा अधूरी रह गयी है, दाहिनी ओर दीवार पर एक बहुत अच्छी पेंटिंग है जिसमें बोधि वृक्षों के नीचे मैत्रेय के साथ सात मानुषी बुद्धों के दृश्य को दर्शाया गया है।
गुफा संख्या 23 :
यह गुफा भी अधूरी है लेकिन स्तम्भों पर सजावटी डिज़ाइन कलाकारों के कौशल को प्रदर्शित करता है।
गुफा संख्या 24 :
यदि यह गुफा पूरी हो जाती तो सभी गुफाओं में सर्वश्रेष्ठ होती। यह गुफा आकार में बहुत बड़ी है और गुफा 4 के बगल में सजावट इतनी कलात्मक और भव्यता से की गई है कि अनजाने में प्रशंसा का एक शब्द निकल ही जाएगा।
गुफा संख्या 25 :
यह भी अधूरी विहार गुफा है। इसमें कोई पूजा स्थल नहीं है, न ही हॉल में कोई कक्ष है। इसमें केवल आँगन (प्रकोष्ठ) है।
गुफा संख्या 26 :
चैत्य गुफा 26
इस गुफा में बायीं ओर की दिवार पर बुद्ध के जीवन को दर्शाने वाले दो दृश्य उकेरे गए हैं।
पहले दृश्य में महापरिनिर्वाण (मुक्ति) मुद्रा में बुद्ध की एक विशाल आकृति दिखाई गयी है। दूसरी तस्वीर में मार (कामदेव) के हमले को दिखाया गया है।
लेटे हुए बुद्धा, गुफा 26
प्रपट्टो की श्रंखला में :
1 बुद्ध एक बोध वृक्ष के नीचे बैठे हैं।
2 मार (कामदेव) अपनी राक्षस शक्ति के साथ बुद्ध की और जाते हुए।
3 मार अपने राक्षसी बल के साथ पीछे हट रहा है।
4 मार की बेटियां बुद्ध को कामुकता और कामुक मुद्राओं के साथ लुभाने की कोशिश कर रही हैं।
5 उदास व पराजित मार।
गुफा संख्या 27 :
यह गुफा बहुत छोटी है और गुफा 26 का एक हिस्सा दिखती है। यह दो मंज़िला और जर्जर स्थिति में है। ऊपरी मंज़िल का बहुत कम हिस्सा बचा है, जो एक अधूरी अवस्था में है।
गुफा संख्या 28, 29 व 30 :
ये गुफाएं अन्य गुफाओं की तुलना में चट्टान से थोड़ा ऊंची हैं और देखने में बहुत छोटी हैं। गुफा संख्या 28 में केवल खम्भों के साथ बरामदा है। जबकि गुफा संख्या 29 व 30 को अभी-अभी निकाला गया है और बिना किसी सीढ़ी के पहुंचने योग्य नहीं हैं।
Best Time To Visit (यात्रा के लिए सबसे अच्छा समय)
वैसे तो ये गुफाएं पर्यटकों के लिए पूरे साल सुबह 9.00 बजे से शाम 5.30 बजे तक खुली रहती हैं लेकिन महीने के हर सोमवार को ये बंद रहती हैं।
आप साल के किसी भी मौसम में इन गुफाओं को देखने जा सकते हैं। लेकिन अक्टूबर से फ़रवरी तक अच्छी जलवायु और ठंडा मौसम होने की वजह से यहाँ पर्यटकों की उपस्थिति पूरे साल की अपेक्षा काफी ज़्यादा होती है। मार्च से जून तक गर्मी का मौसम होता है जिसमे यहाँ दिन के समय तापमान 40 डिग्री से अधिक हो जाता है।
बाकी अपनी सुविधा और इच्छा के अनुसार साल के किसी भी मौसम में यहाँ जा सकते हैं।
Fees And Other Charges (फीस एवं अन्य शुल्क)
अजंता की गुफाओं में प्रवेश की लिए भारतियों को प्रवेश शुल्क के रूप में 40 रूपये देने होंगे। वहीँ विदेशी सैलानियों की लिए 600 रूपये लगेंगे। अगर आप कैमरा लेकर जाना चाहते हैं, तो उसके लिए अतिरिक्त शुल्क देना होगा ।
15 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के लिए यहाँ प्रवेश निःशुल्क है।
How To Go (कैसे जाएं)
अगर आप अजंता की गुफाएं देखने का मन बना चुके हैं, तो यहाँ जाने से पहले आप को ये तय करना होगा कि आप यहाँ किस माध्यम से जाना चाहते हैं।
हवाई मार्ग :
इन गुफाओं तक पहुँचने के लिए सबसे निकटतम हवाई अड्डा औरंगाबाद का है। यहाँ से आप किसी भी बस या टैक्सी की मदद से लगभग 3 घंटों में गुफाओं तक पहुँच सकते हैं। औरंगाबाद के लिए आप को मुंबई और दिल्ली जैसे प्रमुख शहरों से सीधी उड़ानें मिल जाएँगी।
रेल मार्ग :
रेल मार्ग से जाने के लिए निकटतम रेलवे स्टेशन जलगांव शहर है। इसके अलावा दूसरा विकल्प औरंगाबाद रेलवे स्टेशन है। जलगांव स्टेशन के लिए आप को भारत के सभी महत्वपूर्ण शहरों और पर्यटन स्थलों: मुंबई, नई दिल्ली, बुरहानपुर, ग्वालियर, सतना, वाराणसी, प्रयागराज, पुणे, मंगलूर, गोवा आदि से ट्रेन मिल जाएगी।
बता दें की जलगांव रेलवे स्टेशन की कनेक्टिविटी औरंगाबाद स्टेशन से ज़्यादा बेहतर है।
सड़क मार्ग :
अजंता की गुफाओं तक जाने के लिए औरंगाबाद और जलगांव दोनों शहरों से अच्छी सड़क कनेक्टिविटी है।
अगर रेल या हवाई यात्रा कर के यहाँ पहुँचते हैं तो इसके बाद आप सड़क द्वारा गुफाओं तक पहुँच सकते हैं।
अजंता की गुफाओं के चित्रों का यह वर्णन तो केवल उदाहरण है।
मैंने कोशिश की है कि मेरे इस लेख को पढ़ने के बाद आप लोग वहां पर चित्रित कलाकृत्यों को अपने मानस पटल पर जीवंत कर सकेंगे और उनकी सुंदरता का एहसास कर सकेंगे।
मेरी आप से प्रार्थना है कि अपने जीवन में एक बार समय निकालकर इस धरोहर को देखने अवश्य जाएँ।
मेरा ये विस्तृत वर्णन आप को कैसा लगा, मुझे ज़रूर बताएं।
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