Shree Krishna के जीवन से जुडी कुछ रोचक जानकारियां
Shree Krishna का जीवन बहुत ही चुनौती पूर्ण रहा है। लेकिन उन्होंने हर चुनौती का सामना बहुत ही निर्भीकता, बुद्धिमानी और विवेक से किया था। उनके जीवन के इतने पहलू है कि उनमें से हम यदि अपने जीवन में कुछ को अपना लें, तो हमारा सम्पूर्ण जीवन परिवर्तित होना संभव है। तो आइए जानते हैं भगवान Shree Krishna(श्री कृष्ण) के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक जानकारियां–
बाल श्री कृष्णा
Shree Krishna (श्री कृष्ण) जन्म :
भगवान श्री कृष्ण का जन्म 5252 वर्ष पहले हुआ था। उनका जन्म 18 जुलाई 3228 BC के दिन, श्रावण मास में अष्टमी तिथि, रोहिणी नक्षत्र में बुधवार के दिन रात 12:00 बजे मथुरा में हुआ था।
श्री कृष्ण के पिता वासुदेव जी और माँ देवकी थीं जबकि उनका लालन-पालन बाबा नन्द और मैया यशोदा ने किया था। बलराम श्री कृष्ण के बड़े भाई और सुभद्रा बहन थीं। वासुदेव जी ने दो शादियां की थीं पहली पत्नी देवकी थीं जबकि दूसरी पत्नी रोहिणी थीं। बलराम और सुभद्रा की माता रोहिणी थीं।
श्री कृष्ण माँ यशोदा के साथ
Shree Krishna (श्री कृष्ण) की पटरानियां :
भगवान श्री कृष्ण की 8 पत्नियां अर्थात पटरानियां थीं। पहली पटरानी रुक्मिणी देवी थीं, जो लक्ष्मी देवी का अवतार मानी जाती हैं तथा सबसे प्रिय रानी थीं। यह विदर्भ के राजा भीष्मक की पुत्री थीं। दूसरी पटरानी जामवंती थीं, जो जामवंत जी की पुत्री थीं। तीसरी पटरानी सत्यभामा थीं, जो सत्राजित की पुत्री थीं। चौथी पटरानी कालिंदी थीं, जो सूर्य देव की पुत्री थीं। इन्होनें भगवान कृष्ण को पाने के लिए तप किया था।
पांचवीं पटरानी मित्रविन्दा थीं। छठी पटरानी नग्नजीति थीं। इन्हें सत्या के नाम से भी जाना जाता है। इनके पिता नग्नजित थे। सातवीं पटरानी भद्रा थीं इन्हें रोहिणी के नाम से भी जाना जाता है। यह ऋतुसुकृत की पुत्री थीं। आठवीं पटरानी लक्ष्मणा थीं।
इसके अलावा भगवान श्री कृष्ण की 16 हज़ार 100 रानियां और थीं। पुराणों के अनुसार भगवान श्री कृष्ण ने अपनी पटरानी सत्यभामा के साथ मिलकर भौमासुर राक्षस का वध किया था। यह बहुत ही दुष्ट राक्षस था। इसकी कैद से बहुत से लोगों को मुक्त कराया था। जिनमे 16 हज़ार 100 कन्याएं भी थीं। इन्होंने भगवान से कहा कि समाज अब हमें नहीं अपनाएगा अतः आप ही हमारा संरक्षण करें ।
महाभारत युद्ध काल :
महाभारत का युद्ध मृगशिरा शुक्ल एकादशी, 8 दिसंबर 3139 BC को प्रारम्भ हुआ था और 25 दिसंबर 3139 BC के दिन अंत हुआ था। इस युद्ध के समय भगवान श्री कृष्ण की आयु 56वर्ष थीं। लेकिन कुछ विद्वान 83 वर्ष भी मानते हैं।
भगवान कृष्ण और अर्जुन
Shree Krishna (श्री कृष्ण) द्वारा किए गए वध :
भगवान श्री कृष्ण ने अपने जीवन काल में 4 लोगों का वध किया है। जिनमे चाणूर एक पहलवान जिसे कंस ने मल्ल युद्ध के लिए तैयार किया था। कंस ने भगवान श्री कृष्ण और बलराम को मारने के लिए मल्ल युद्ध प्रतियोगिता का आयोजन किया। इस युद्ध में चाणूर श्री कृष्ण द्वारा मारा गया। जबकि मुष्टिक पहलवान को बलराम जी ने मारा था।
तत्पश्चात भगवान श्री कृष्ण ने अपने मामा कंस का वध किया था। कंस ने अनेकों बार बचपन से ही श्री कृष्ण को मारने का प्रयास किया था।
इसके अलावा शिशुपाल का वध भी श्री कृष्ण द्वारा हुआ था। शिशुपाल, श्री कृष्ण की बुआ का बेटा था। उसके 100 अपराध भगवान ने क्षमा करने का वचन अपनी बुआ को दिया था। लेकिन 101 वां पाप करने पर उसका वध कर दिया।
चौथा वध भगवान श्री कृष्ण ने दन्तवक्र का किया था। दन्तवक्र वासुदेव जी की छोटी बहन श्रुत देवी अर्थात श्री कृष्ण की छोटी बुआ का बेटा था। ऐसा पुराणों में वर्णन है कि शिशुपाल और दन्तवक्र दोनों पूर्वजन्म में भगवान विष्णु के द्वारपाल जय और विजय थे। जो श्राप के कारण पृथ्वी पर तीसरा जन्म भोग रहे थे।
जयद्रथ वध :
महाभारत युद्ध में जयद्रथ का वध 21 दिसंबर 3139 BC के दिन हुआ था। उस दिन 3-5 pm के बीच सूर्य ग्रहण पड़ा था। जो जयद्रथ की मृत्यु का कारण बना। जयद्रथ कौरवों की एकमात्र बहन दुःशला का पति था। जयद्रथ और कौरवों ने छल से अर्जुन पुत्र अभिमन्यु का वध कर दिया था। जिसके कारण अर्जुन ने संध्या होने से पूर्व जयद्रथ का वध करने की प्रतिज्ञा ली थी। श्री कृष्ण ने इस कार्य में अर्जुन की मदद की थी।
भीष्म मृत्यु :
गंगा पुत्र भीष्म की मृत्यु 2 फरवरी 3138 BC में एकादशी के दिन जब सूर्य उत्तरायण में थे इस दिन हुई थी। वह लगभग 150 वर्ष की आयु जीए थे। वह 58 दिन मृत्यु शैया पर लेटे रहे।
श्री कृष्ण, बलराम एवं सखा संग
Shree Krishna (श्री कृष्ण) ने गोकुल छोड़ा :
श्री कृष्ण भगवान गोकुल लगभग 11 वर्ष तक रहे। जब कंस के राक्षस गोकुलवासियों को सताने एवं परेशान करने लगे, तब श्री कृष्ण ने अपने कुल गुरु गर्गाचार्य से परामर्श लिया। तब गुरु जी ने बताया कि यदि वह नंदीश्वर पर्वत चले जाए तब वहां राक्षस नहीं आ सकेंगे। क्योंकि शांडलिय ऋषि के श्राप के कारण जो भी राक्षस वहां आएगा पत्थर का बन जाएगा। इस प्रकार समस्त गोकुलवासियों को लेकर नन्द बाबा और श्री कृष्ण जी वहां चले गए और नन्द ग्राम बसाया।
श्री कृष्ण की लीला स्थली वृन्दावन :
वृन्दावन श्री कृष्ण की लीला स्थली के रूप में जानी जाती है। यहाँ श्री राधा कृष्ण के बहुत से मंदिर हैं। यहाँ रंगमहल और निधि वन में ऐसी मान्यता है कि आज भी राधा रानी और श्री कृष्ण रात्रि में यहाँ आते हैं। यहाँ पर संध्या के बाद भक्तों को जाने की अनुमति नहीं है। जो भी यहाँ रात्रि में रूककर भगवान की रास लीला देखने का प्रयास करता है, वो या तो अँधा हो जाता है या फिर पागल हो जाता है। वृन्दावन में भगवान ने लगभग 10-11 वर्ष बिताए थे।
श्री राधा कृष्ण गोपियों संग
जरासंध द्वारा मथुरा पर आक्रमण :
कंस के वध के उपरांत उसका ससुर मगध सम्राट जरासंध बहुत क्रोधित हो गया। जरासंध ने यदुवंशियों का विनाश करने का प्रण कर लिया। इसके लिए उसने मथुरा पर अनेको बार आक्रमण किया और हर बार पराजित हुआ। तत्पश्चात उसने कालयवन के साथ एक बार फिर मथुरा को घेर लिया। सन्देश भेजा गया, तब श्री कृष्ण ने कालयवन से स्वयं युद्ध करने का प्रस्ताव रखा। जिसे कालयवन ने स्वीकार कर लिया।
कालयवन मृत्यु :
कालयवन, यवन( अरब के पास ) का सम्राट था। यह ऋषि शेशिरायण और अप्सरा रम्भा का पुत्र था। उसे कालजंग( मलीच देश का राजा) ने ऋषि से गोद लिया था। कालयवन को भगवान शिव का वरदान प्राप्त था कि उसे कोई भी अस्त्र-शस्त्र से तथा चंद्रवंशी एवं सूर्यवंशी कोई भी नहीं मार सकेगा। यह बात श्री कृष्ण जानते थे। अतः वह कालयवन के साथ द्वन्द युद्ध करते करते भाग गए और एक गुफा में छिप गए। वहाँ मान्धाता के पुत्र राजा मुचुकंद सो रहे थे। उन्हें श्री कृष्ण समझकर कालयवन ने लात मारी, जिससे वह जाग गए जैसे ही उन्होंने कालयवन को देखा वह भस्म हो गया। राजा मुचुकंद को इंद्र द्वारा वरदान प्राप्त था, कि जो भी उन्हें सोते हुए उठाएगा वह भस्म हो जाएगा।
जरासंध के क्रोध का पारा चढ़ गया। विदेशी भी श्री कृष्ण के शत्रु बन गए। तब श्री कृष्ण ने अपने कुल के सभी यादवों, नाना उग्रसेन, बलराम सहित अनेक लोगों के साथ द्वारिका के लिए प्रस्थान किया जहाँ उनके पूर्वज रहते थे।
जरासंध वध :
बाद में जब युधिष्ठिर को चक्रवर्ती सम्राट बनाने के लिए राजसूय यज्ञ करना था। तब जरासंध सबसे बड़ा अवरोध था। अतः श्री कृष्ण की सहायता से जरासंध को युद्ध के लिए भीम द्वारा ललकारने पर उसे मारने की युक्ति बताई। जिसके फलस्वरूप वह मारा गया।
यदुवंशियों का नाश :
महाभारत का युद्ध समाप्त होने के बाद कृष्ण की द्वारिका और यदुवंशियों का प्रभाव फैलता जा रहा था। लेकिन गांधारी ने भगवान श्री कृष्ण को श्राप दिया था कि जिस प्रकार मेरे कुल का नाश हुआ है। समस्त यदुवंशियों का भी नाश हो जाएगा। इस प्रकार यदुवंशी आपस में ही बैर करने लगे। एक दिन वह सोमनाथ मंदिर के पास के क्षेत्र में समुद्र तट के किनारे एकत्रित हुए। उनमे आपस में विवाद हो गया जिसकी वजह से वह एक दूसरे को मारने लगे। कुछ समय उपरांत वह सभी मृत्यु को प्राप्त हुए।
बलराम जी द्वारा देह परित्याग :
इस प्रकार यदुवंशियों का विनाश देखकर बलराम जी ने भी समुद्र के तट पर अपनी देह का परित्याग कर दिया। बलराम जी शेष नाग के अवतार थे अतः उनके शरीर से शेष नाग निकलकर क्षीर सागर में चले गए।
श्री कृष्ण द्वारा देह परित्याग :
यह सब देखकर भगवान श्री कृष्ण ने भी देह परित्याग करने का निर्णय लिया। उन्होनें अपने सारथी द्वारा शेष द्वारकावासियों को यह सन्देश भिजवाया कि आप सभी अर्जुन के साथ चले जाना क्योंकि द्वारका पानी में डूब जायेगी।
एक दिन श्री कृष्ण पेड़ के नीचे योग में लीन होकर बैठे थे। दूर से जरा नामक शिकारी ने उनके पैर को हिरण की आँख समझकर तीर चला दिया। बाद में उसे बहुत प्रायश्चित हुआ। लेकिन भगवान ने समझाया कि यह सब विधि का विधान है। इस प्रकार श्री कृष्ण इस संसार से चले गए।
निष्कर्ष —
श्री कृष्ण का जीवन बहुत कठिनाइयों और चुनौतियों से भरा था। लेकिन उन्होनें इन सभी का डट कर सामना किया और धर्म, कर्तव्य, सत्य आपस में प्रेम करना सिखाया है। उनके जीवन से हमें बहुत बड़ी सीख मिलती है। वास्तव में जो भी उनके मार्ग का अनुसरण करता है वह इस मृत्युलोक को आसानी से पार कर लेता है और सद्गति पाता है।
जय श्री राधे ! जय श्री कृष्णा !
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