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Karni Mata Mandir – राजस्थान का प्रसिद्ध चूहों का मंदिर


Karni Mata Mandir को राजस्थान का प्रसिद्ध चूहों का मंदिर भी कहा जाता है। यह एक सुप्रसिद्ध मंदिर है जो माता करणी को समर्पित है। यहाँ के स्थानीय लोगों में यह मंदिर उनकी कुल देवी के रूप में जाना जाता है, उनके अनुसार करणी देवी माँ जगदम्बा ( हिंगलाज माता ) का अवतार थीं। करणी जी के आशीर्वाद से ही बीकानेर और जोधपुर राज्य की स्थापना हुई थी। यही कारण है वहां के लोग माता को अपनी कुल देवी मानकर उनकी पूजा करते हैं। करणी माता के मंदिर के बारे में आइए जानते हैं कुछ रोचक तथ्य।

Karni Maata Mandir Beekaner

करणी माता मंदिर (बीकानेर)

Karni Mata Mandir कहाँ स्थित है ?

राजस्थान में करणी माता के दो मंदिर हैं — पहला बीकानेर के निकट और दूसरा उदयपुर में स्थित है।

पहला मंदिर बीकानेर जिले से 30 किमी दूर देशनोक में बीकानेर जोधपुर राज्य राजमार्ग पर स्थित है। यह बहुत प्राचीन और मनोकामना पूर्ण मंदिर है। बीकानेर का शाही परिवार इन्हें अपनी कुल देवी मानता है। मंदिर की आराध्य देवी, करणी माता को सामान्यतः डाढ़ाली डोकरी और करणीजी महाराज, काबां वाली करनला के नाम से भी जाना जाता है। 

करणी जी का मंदिर संगमरमर का बना हुआ है। मुख्य द्वार पर संगमरमर पर उकेरी गई नक्काशी देखते ही बनती है। मंदिर के दरवाजे चाँदी के बने हुए है, सोने का छत्र और चूहों ( काबा ) के प्रसाद के लिए चाँदी की बड़ी परात यहाँ मुख्य आकर्षण का केंद्र है।   

दूसरा मंदिर उदयपुर में माछला मगरा पहाड़ी पर स्थित है। यहाँ इस स्थान से आप पूरे मेवाड़ का 360 डिग्री का नज़ारा (view) देख सकते हैं।  मेवाड़ के महाराजा करण सिंह ने बीकानेर से जोत लाकर यहाँ करणी माता के मंदिर की स्थापना की थी। इस मंदिर को मंशा पूर्ण करणी माता के रूप में भी जाना जाता है। यहाँ भी भक्तों की सभी मनोकामना माता की कृपा से पूर्ण होती हैं। 

करणी माता का जीवन परिचय 

करणी देवी को सभी लोग माँ जगदम्बा का अवतार मानते हैं। इसके पीछे इतिहास में एक कहानी वर्णित है। जिसके अनुसार करणी देवी का जन्म 1387 में चारण परिवार में हुआ था। उनके बचपन का नाम रिदु बाई था। माता करणी के पिता का नाम मेहाजी जो कि कीनिया शाखा के चारण थे। जबकि माता का नाम देवल देवी था, जो जोधपुर के सुवाप नामक गाँव की थीं।

देवल देवी की पांच पुत्रियां थीं लेकिन उनके कोई पुत्र नहीं था। मेहाजी पुत्र प्राप्ति के लिए चिंतित रहने लगे। तब एक दिन उन्होंने हिंगलाज माता, जो कि बलूचिस्तान में स्थित हैं वहां जाने का निश्चय किया। तत्पश्चात माता का आशीर्वाद प्राप्त कर वह वापिस लौट आए।

देवल देवी ने पुनः गर्भ धारण किया लेकिन 20 महीनो के उपरांत भी कोई संतान नहीं हुई तब मेहाजी बहुत अधिक चिंता ग्रस्त रहने लगे। फिर एक रात माता हिंगलाज ने स्वप्न में देवल देवी को दर्शन दिए और धैर्य रखने के लिए कहाँ कि मैं तुम्हारी कोख से जन्म लूंगी। तब 21 माह के गर्भ के बाद करणी माता का जन्म हुआ।

करणी माता का विवाह —

बचपन से ही करणी माता खेल-खेल में चमत्कार दिखाने लगी थी। 27 वर्ष की उम्र में उनका विवाह रोहड़िया वंश के केलूजी के पुत्र देपा जी और साटीका के जागीरदार के साथ हुआ था। इसलिए इनके वंशज देपावत कहलाते हैं।   

हालांकि विवाह के उपरांत करणी माता ने अपने पति देपा जी को अपने विषय में बताया और यह स्पष्ट किया कि उन्होंने यह विवाह अपने माता पिता की आज्ञा हेतु किया है लेकिन वह वैवाहिक सम्बन्ध नहीं रख पाएंगी। तत्पश्चात उन्होंने अपना दिव्य रूप दिखाया, तब देपा जी नतमस्तक हुए। फिर माता करणी ने अपनी छोटी बहन गुलाब बाई के साथ देपा जी का विवाह करा दिया ताकि वह दोनों सुखी वैवाहिक जीवन व्यतीत कर सकें। माता करणी स्वयं ब्रह्मचर्य का पालन करने लगीं। 

बाद में गुलाब बाई को पुत्र की प्राप्ति हुई जिसका नाम लाखन था। माता करणी उसे अपना ही पुत्र समझती थीं। इस सन्दर्भ में एक कथा भी  प्रचलित है कि एक बार लाखन अपने मित्रों के साथ कार्तिक मेले में अपने दोस्तों के साथ घूमने गया। वहां लाखन कपिल सरोवर में डूब गया जिससे उसकी मृत्यु हो गयी। गुलाब बाई अपने बेटे लाखन की मृत्यु देखकर रोने लगी,  तब माता करणी ने लाखन के शव को उठाया और एक कमरे में अपने को बंद कर लिया। कुछ समय बाद जब वह बाहर आई तो लाखन जीवित था।

Karni Mata Mandir

करणी माता मंदिर

Karni Mata Mandir को चूहों का मंदिर क्यों कहते हैं ?

ऐसी मान्यता है कि माता करणी ने मृत्यु के देवता से लड़ाई करी और कहा कि मृत्यु के बाद मेरे वंशज तुम्हारे पास नहीं आएंगे। वह सभी काबा अर्थात चूहें बन जाएंगे और मरने के उपरांत काबा पुनः मानव बन जाएंगे। यही कारण है कि माता करणी के मंदिर में बहुत से काबा (चूहे)  मौजूद होते हैं।   

Karni Mata Mandir  से जुड़े कुछ रोचक तथ्य –

  • यह मंदिर चूहों का मंदिर कहा जाता है यह तो आप जान ही गए होंगे। लेकिन आप यह जानकार हैरान रह जाएंगे कि यहाँ 25000 से भी ज्यादा चूहे इधर उधर मंदिर के प्रांगण में घूमते नज़र आएंगे।
  • इनकी संख्या इतनी ज्यादा होती है कि भक्तों को ज़मीन पर पैर घसीटते हुए चलना होता है। क्योंकि पैर उठाकर चलने में चूहे पैर के नीचे दब कर मर सकते हैं। यदि गलती से भी किसी भक्त द्वारा चूहा( काबा ) मर जाता है तो उसे मंदिर में सोने या चाँदी का चूहा चढ़ाना पड़ता है।
  • इस मंदिर की एक यह भी विशेषता है कि यहाँ भक्तों को चूहों द्वारा खाया हुआ प्रसाद दिया जाता है जो कि एक पवित्र प्रथा मानी जाती है। क्योंकि यह सभी काबा माता करणी के वंशज ही माने जाते हैं।
  • अकसर हम देखते हैं कि जहाँ चूहे होते हैं वहां गंदगी और प्लेग जैसे बीमारियों का खतरा बना रहता है। यदि चूहा मर जाता है तो उसकी दुर्गन्ध चारों ओर फ़ैल जाती है। परन्तु करणी माता जी के मंदिर में आज तक ऐसा कुछ भी देखने को नहीं मिला है कि कोई बीमार पड़ा हो या कोई दुर्गन्ध जैसी चीज़ का अनुभव हुआ हो।
  • वैसे इस मंदिर में काले चूहों की अधिकता है लेकिन कुछ सफ़ेद चूहे भी हैं। ऐसी मान्यता है कि जिस किसी भक्त को सफ़ेद चूहे दिख जाते हैं तो बहुत मंगलकारी होता है।
  • प्रातः काल 5 बजे की मंगला आरती में और संध्या बेला की 7 बजे की आरती में चूहों का जुलूस देखते ही बनता है जैसे सभी चूहे माता करणी जी की आरती में शामिल होने आए हैं।
  • अन्य जानवरों, चील आदि से चूहों की सुरक्षा के लिए मंदिर परिसर के खुले भाग में बारीक जाली लगायी गई है।

करणी माता मंदिर में स्थित गुफा —          

ऐसा पौराणिक कथाओं में वर्णन है कि लगभग 650 सौं वर्षों से भी पहले जिस स्थान पर माता करणी का मंदिर है, वहां एक गुफा थी जिसमे करणी माता रहती थीं। इस गुफा में अपने इष्ट देव की पूजा किया करती थीं। आपको यह जानकार आशर्य होगा कि आज भी यह गुफा मंदिर परिसर में स्थित है।    

संवत 1595 की चैत्र शुक्ल नवमी गुरुवार को श्री करणी ज्योर्तिलीन हुईं। मां के ज्योर्तिलीन होने पर करणी माता जी की इच्छा से उनकी मूर्ति की इस गुफा में स्थापना की गई। माता के निज मंदिर में लगी मूर्ति को एक अंधे भक्त खाती ने बनाया था।

Karni Mata Mandir में मेले का आयोजन —

बीकानेर करणी माता मंदिर में साल में दो बार नवरात्री के समय भव्य मेले का आयोजन किया जाता है। चैत्र और आश्विन माह में लगने वाले मेलों में बड़ी संख्या में भक्त पहुँचते हैं।

बीकानेर करणी माता मंदिर पहुँचने का मार्ग –   

हवाई मार्ग से — बीकानेर से 220 किमी जोधपुर एयरपोर्ट सबसे निकट एयरपोर्ट है। यहाँ पहुंचकर आप टैक्सी के द्वारा करणी माता मंदिर आसानी से पहुँच सकते हैं।

रेल मार्ग से — बीकानेर रेलवे स्टेशन सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन है जो मंदिर से 30 किमी की दूरी पर स्थित है। यह स्टेशन सभी बड़े शहरों से जुड़ा हुआ है। यहाँ पहुँचकर आप लोकल ट्रांसपोर्ट के जरिए मंदिर तक आसानी से पहुँच सकते हैं।     

Karni Maata Mandir -- Udaipur

करणी माता मंदिर (उदयपुर)   

Karni Mata Mandir Udaipur —

मेवाड़ के महाराणा करण सिंह ने 1620-1628 के बीच बीकनेर से जोत लाकर, करणी माता के मंदिर की स्थापना उदयपुर में की थी। इन्हें मंशापूर्ण करणी माता भी कहा जाता है। विशेष बात है कि मंदिर का स्थान पुरातन किला उदयपुर के पास शहर के बीच माछला मगरा पहाड़ी पर स्थित है।यही एक मात्र ऐसी जगह है जहां से 360° में पूरा मेवाड़ दिखाई देता है। ऐसी मान्यता है कि बीकानेर की तरह उदयपुर मंदिर में भी भक्तो की मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

करणी माता मंदिर उदयपुर का इतिहास —    

मेवाड़ के महाराजा करण सिंह का विवाह बीकानेर राजघराने में हुआ था। जब महाराजा करण सिंह ने करणी माता के विषय में जाना तब वह माता की पवित्र जोत उदयपुर ले आये और करणी माता के भव्य मंदिर का निर्माण कराया। इसके पीछे महाराज करण सिंह की यही सोच थी की जिस प्रकार माता बीकानेर और जोधपुर की रक्षा करती हैं उसी प्रकार उदयपुर भी सुरक्षित रहेगा। उस समय मेवाड़ पर मराठों के आक्रमण का खतरा बना रहता था। वास्तव  में करणी माता जी ने मेवाड़ की रक्षा भी की और उसका गौरव बनाए रखा। 

उदयपुर करणी माता मंदिर – सफ़ेद चूहों का दर्शन 

उदयपुर करणी माता मंदिर में भी आपको बहुत से सफ़ेद चूहे देखने को मिल जाएंगे। इन चूहों का दर्शन करना बेहद शुभ होता है। मंदिर के अंदर ही शिव मंदिर का निर्माण कराया गया है। दशहरे के दिन विशेष रूप से माता का दर्शन करना बहुत ही शुभ होता है। इस दिन माँ अपने भक्तों की सभी मनोकामना पूरी करती हैं। इस दिन माता का श्रृंगार ब्रह्म मुहूर्त में किया जाता है। 

Karni Maata Mandir Udaipur, Rope Way

करणी माता मंदिर, उदयपुर रोप वे

उदयपुर करणी माता मंदिर पहुँचने का मार्ग —

यह मंदिर शहर के बिलकुल मध्य में स्थित है। अतः आप हवाई या रेल मार्ग द्वारा आसानी से उदयपुर पहुँच सकते हैं।

हवाई मार्ग द्वारा — करणी माता मंदिर उदयपुर, मात्र 24 किमी की दूरी पर महाराणा प्रताप हवाई अड्डे से दूर है।

रेल मार्ग द्वारा — उदयपुर सिटी रेलवे स्टेशन और बस स्टैंड मंदिर से मात्र 4 किमी दूर स्थित है।

इसके उपरांत सभी भक्तजन मंदिर तक पहुँचने के लिए आसानी से ऑटो रिक्शा व तांगों द्वारा दूध तलाई झील तक जा सकते हैं। वहां से रोप वे द्वारा आसानी से मंदिर पहुँच जा सकता है।

उदयपुर में पर्यटकों के लिए घूमने की सर्वोत्तम जगह —     

मंदिर में दर्शन के उपरान्त यदि आप घूमने का शौक रखते हैं तो उसके लिए भी यह सर्वोत्तम जगह है। यहाँ से आप उदयपुर शहर का 360 डिग्री का व्यू , किला, झील, चारों ओर हरियाली का आनंद ले सकते हैं। माता के दर्शनों के साथ प्राकृतिक नज़रों का मनोरम दृश्य आपकी यात्रा को और रोमांचक बना देगा।

करणी माता के मंदिर में आने वाले श्रद्धालु अपनी मनोकामनाएँ पूरी करने की प्रार्थना करते हैं और जब उनकी मनोकामनाएँ पूरी होती हैं तो वे उसी मंदिर में फिर से आकर धन्यवाद अर्पित करते हैं। करणी माता मंदिर के आस-पास कई छोटे मंदिर भी हैं जो उनकी परिक्रमा में शामिल होते हैं और मंदिर प्रांगण में भी धार्मिक और पौराणिक कथाएँ दर्शाई जाती हैं।

करणी माता मंदिर उदयपुर के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है और यहाँ के आकर्षण और धार्मिक महत्व के कारण यहाँ हर साल ढेरों श्रद्धालु आते हैं।

 

 

    


Kavita Singh

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