हमारे पौराणिक ग्रंथों जैसे- वेदों, पुराणों में वर्णित है कि कैलाश पर्वत ही वह पवित्र स्थान है जहाँ, देवो के देव महादेव निवास करते हैं। भगवान शिव अनादि काल से हैं और अनंत हैं। ऐसा कहा जाता है कि Kailash Parvat ही भगवान शिव की तपोभूमि है। यहाँ महादेव समाधी में लीन रहते हैं और समस्त ब्रह्माण्ड व सृष्टि पर नियंत्रण रखते हैं। आइए जानते हैं Kailash Parvat – मिस्ट्री से भरा अजय पर्वत है उसके बारे में।
Kailash Parvat क्यों अजय है ?
आज तक सैकड़ो पर्वतारोहियों ने इस पर चढ़ने का प्रयास किया लेकिन वह सभी असफल रहे। जबकि ऊँचाई में यह माउंट एवेरेस्ट से छोटा है। कैलाश पर्वत की ऊँचाई माउंट एवेरेस्ट से 2200 मीटर कम है। माउंट एवेरेस्ट पर पर्वतारोही सात हज़ार से भी अधिक बार चढ़ाई कर चुके है, जबकि कैलाश पर्वत अजय है।
Kailash Parvat कहाँ स्थित है ?
कैलाश पर्वत 22068 फीट ऊँचा है। यह हिमालय पर्वत के उत्तर में तिब्बत में स्थित है। तिब्बत पर चीन का कब्ज़ा है। अतः यह चीन के क्षेत्र में आता है।
कैलाश पर्वत को रहस्यों से भरा एक अजय पर्वत क्यों कहते हैं ? आज उन्हीं तथ्यों पर दृष्टि डालते हैं।
Kailash Parvat – स्वर्ग की सीढ़ी
कैलाश पर्वत एक ऐसी जगह पर स्थित है, जहाँ स्वर्ग लोक, मृत्यु लोक (पृथ्वी) और पाताल लोक( राक्षस और नाग रहते हैं) आपस में मिलते हैं। क्योकि देवता, मनुष्य, राक्षस और नाग सभी भगवान शिव के भक्त हैं। इस नाते भगवान शिव सबके आराध्य हैं। रावण ने भी कैलाश के नीचे तपस्या की थी भोलेनाथ के दर्शन के लिए।
कैलाश पर्वत की ओर रास्ता
Kailash Parvat – ज्ञान और शक्ति का धारक –
कैलाश पर्वत असीम ज्ञान और शक्ति के धारक हैं। जो चतुर्वेद और पुराणों का ज्ञाता है, वही इसी ज्ञान और शक्ति को प्राप्त कर सकते हैं। कहते है कि कैलाश पर्वत पर चारों ओर आलौकिक शक्तियों का प्रवाह होता है। इसी कारण यह अजय है क्योंकि आज तक कोई भी इस पर नहीं चढ़ पाया है और जिन लोगो ने प्रयास किया वह सभी विफल रहे। कोई परम योगी, वेद पुराण का ज्ञाता ही कैलाश पर चढ़ सकता है।
कैलाश पर्वत की विशिष्ट आकृति —
कैलाश पर्वत एक विशेष प्रकार का चौमुखी आकार का पर्वत है। कुछ वैज्ञानिक इसकी आकृति पिरामिड की तरह भी बताते हैं। इसकी चार साइड चार कीमती धातु और मणियों से बनी है। पूर्व में क्रिस्टल, पश्चिम में रूबी, उत्तर में सोना और दक्षिण में लेपिस लेजुली।
कैलाश पर्वत
कैलाश पर्वत, खोई हुई आर्य जाति —
ऐसा माना जाता है कि हड़प्पा और मोहनजोदड़ो में रहने वाली आर्य जाति विलुप्त नहीं हुई है। जब यहाँ विनाश काल शुरू हुआ तो यह आर्य जाति के लोग हिमालय की ओर चल दिए। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान हिटलर के वैज्ञानिको ने वेद पुराण पर रिसर्च करके इस नतीजे पर पहुँचे कि यह आर्य जाति कैलाश पर्वत के भीतर या कोई पास गुप्त शहर में जी रहे हैं। तिब्बत के लोग इस शहर को शंबाला और हिन्दुओं के लिए यह कपापा नाम से शहर था।
ॐ पर्वत —
आदि कैलाश के रास्ते में यह पर्वत मिलता है जो बहुत पवित्र है। क्योंकि जब बर्फ पड़ती है तो इस पर ॐ की आकृति स्पष्ट दिखाई देती है।
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| राक्षस झील |
कैलाश पर्वत, मानसरोवर और राक्षस झील —
यह दोनों एक दूसरे के बहुत करीब हैं। मानसरोवर शुद्ध मीठे पानी का बड़ा सरोवर है। यह 320 वर्ग किमी के क्षेत्र में फैला हुआ है। इसका आकार सूरज की तरह गोल है। इसे सकारात्मक ऊर्जा और देवो का प्रतीक माना जाता है। मानसरोवर झील को ही पुराणों में शीर सागर कहा गया है। यह कैलाश पर्वत से 40 किमी की दूरी पर स्थित है। ऐसा कहा जाता है, कि मानसरोवर में डुबकी लगाने वाला व्यक्ति मृत्यु लोक के बाद रूद्र लोक को प्राप्त करता है। यहाँ स्नान करने का सबसे ठीक समय सुबह 3 बजे से 5 बजे का माना जाता है। कहते हैं इस समय देवता भी स्नान करने के लिए आते हैं।
जबकि राक्षस झील नमकीन पानी का सबसे बड़ा सरोवर है। यह 225 वर्ग किमी क्षेत्र में फैली है। इसका आकार आधे चन्द्रमा की तरह है।इसे नकारात्मक ऊर्जा और राक्षसों का प्रतीक माना जाता है। इसी झील के किनारे रावण ने घोर तपस्या करके भगवान शिव को प्रसन्न किया था।

मानसरोवर झील
Strange Experiences Of Climbing Kailash Parvat (कैलाश पर्वत पर चढ़ने के विचित्र अनुभव)
रूस के वैज्ञानिको ने रिसर्च किया कि यह एक विशाल पिरामिड है और बहुत से छोटे छोटे पिरामिडो से घिरा हुआ है। जब रिसर्च टीम माउंट कैलाश के नीचे कैंप लगाकर रिसर्च कर रही थी। तब रात में उन्हें बहुत तेज़ हवा चलने की आवाज आई। लेकिन यह आवाज बाहर से नहीं भीतर से आ रही थी, जैसे कैलाश साँस ले रहा हो। ऐसे ही उनके अनुभव के अनुसार एक बार उन्हें बहुत बड़े पत्थर के गिरने की आवाज आई उन्होंने कैंप से बाहर आकर देखा सब ठीक था, फिर उन्होंने महसूस किया की यह आवाज कैलाश के अंदर से आ रही थी।
बहुत से पर्वतारोहियों ने कैलाश पर चढ़ने की कोशिश की लेकिन वह सभी असफल रहे। कभी तो अचानक बर्फीला तूफ़ान आ गया, कभी कुछ पर्वतारोहियों को ह्रदय में बेचैनी सी अनुभव हुई और उन्होंने लौटने का फैसला कर लिया। किसी को चढ़ते-चढ़ते दिशा भ्र्म हो गया और कितने ही रास्ते में ही मर गए।
Time On Kailash Parvat (कैलाश पर्वत पर समय)
कैलाश पर्वत पर समय बहुत जल्दी-जल्दी व्यतीत होता है। कोई भी पर्वतारोही यदि कैलाश के शिखर पर चढ़ने की कोशिश कर रहा है तो उसके बाल और नाखून तेजी से बढ़ने लगते हैं। ऐसा समय की रफ़्तार बढ़ने से होता है।
कैलाश पर्वत पर बिताए हुए 12 घंटे पृथ्वी पर बिताये 2 हफ्तों के बराबर हैं। 19 व 20 वी शताब्दी में बहुत से रुसी वैज्ञानिक कैलाश पर्वत पर चढ़ने गए थे पर उनका पता नहीं चला। किसी का कोई निशान नहीं मिला।
साइबेरिया के पर्वतारोही बताते हैं की उनके पहचान के माउंटेनियरिंग ग्रुप के कुछ लोग कैलाश पर चढ़े थे। तब विशेष सीमा को पार करने के बाद जब उन्होंने एक दूसरे को देखा, तो उनकी उम्र कई दशक बढ़ गई थी और वो कुछ समय बाद ही मर गए उम्र बढ़ने की वजह से।
6666 किमी —
कैलाश पर्वत, नार्थ पोल, इंग्लैंड का स्टोन हेंज, एजीप्ट के गीज़ा के पिरामिड, अमेरिका के डेविल्स टावर, नार्थ अटलांटिक के बर्मुदास ट्रायंगल, ईस्टर आइलैंड की अति मानव मूर्तियां और सेंट्रल अमेरिका में एल सल्वाडोर के तजुमल रूइंस इन सभी का 6666 किमी से एक विचित्र संयोग है।
कैलाश पर्वत से नार्थ पोल की दूरी 6666 किमी।
कैलाश पर्वत से स्टोन हेंज की दूरी 6666 किमी।
गीज़ा के पिरामिड से नार्थ पोल की दूरी 6666 किमी।
स्टोन हेंज से डेविल्स टावर की दूरी 6666 किमी।
स्टोन हेंज से बर्मुदास ट्रायंगल की दूरी 6666 किमी।
बर्मुदास ट्रायंगल से ईस्टर आइलैंड की अति मानव मूर्तियों की दूरी 6666 किमी।
ईस्टर आइलैंड की अति मानव मूर्तियों से तजुमल रूइंस की दूरी 6666 किमी।
Origin Of The Great Four Rivers (चार महा नदियों का उद्गम)
कैलाश पर्वत से चार महा नदियों का उद्गम होता है। यह नदियां हैं सिंधु, सतलुज, ब्रह्मपुत्र और घाघरा। यह चारों नदियां इस क्षेत्र को चार अलग अलग भागो में बांटती है।
Centre Of Earth (धरती का केंद्र बिंदु)
कैलाश पर्वत को धरती का केंद्र बिंदु माना जाता है। कैलाश चौमुखी आकार का पर्वत है, दिशा बताने वाली कंपास (COMPASS) के चार बिंदुओं जैसा माना जाता है। यहाँ कंपास दिशा सूचक भी काम नहीं करता है क्योंकि यहाँ चारो दिशाएं आकर मिलती है।
Sound Of Damroo On Kailash Parvat (डमरू के बजने की आवाज)
इस जगह पर प्रकाश तरंगे और ध्वनि तरंगे मिलती हैं। जिससे ॐ की ध्वनि प्रकट होती है। गर्मियों में जब मानसरोवर की बर्फ पिघलती है तब डमरू के बजने की आवाज सुनाई देती है।
Conclusion (निष्कर्ष)
Kailash Parvat के विषय में वास्तव में यही कहना उचित होगा कि यह रहस्यों से भरा एक अजय पर्वत है। यहाँ आस्था विज्ञान से सदैव ऊँची है इस बात का कैलाश पर्वत साक्षात् प्रमाण है और हो भी क्यों न आखिर कार यह भगवान शिव का धाम है।
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