Champawat – बहुत ही खूबसूरत एवं ऐतिहासिक पर्यटन स्थल
Champawat एक बहुत ही खूबसूरत एवं ऐतिहासिक पर्यटन स्थल है। यह उत्तराखंड राज्य में स्थित है तथा चम्पावत जिले का प्रशासनिक मुख्यालय भी है। चम्पावत टनकपुर से 75 किमी की दूरी पर स्थित है। यदि लखनऊ से जाएंगे तो लगभग 376 किमी की दूरी तय करके आप चम्पावत पहुँच सकते हैं। चम्पावत का ऐतिहासिक एवं पौराणिक महत्व भी है। तो आइए जानते हैं, क्या है चम्पावत का महत्व ?
Champawat – भोगौलिक स्थिति :
चम्पावत 1766 वर्ग किमी के क्षेत्र में फैला हुआ है। इसकी सीमा नेपाल, उधम सिंह नगर, नैनीताल और अल्मोड़ा से जुड़ी हुई है। समुद्र तल से यह 1615 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है।
प्रशासनिक दृष्टि से :
चम्पावत को 1997 में जिले का दर्जा मिल गया था। यह चम्पावत जिले का प्रशसनिक मुख्यालय भी है। प्रशासनिक दृष्टि से उत्तराखंड राज्य में
चम्पावत
दो मुख्य मंडल बनाये गए हैं, पहला गढ़वाल और दूसरा कुमायूं। कुमायूं के अंतर्गत पिथौड़ागढ़, नैनीताल, उधम सिंह नगर, अल्मोड़ा, बागेश्वर और चम्पावत जिले आते हैं। जबकि गढ़वाल के अंतर्गत पौड़ी गढ़वाल, टिहरी गढ़वाल, देहरादून, हरिद्वार, उत्तरकाशी, चमोली तथा रुद्रप्रयाग जिले को शामिल किया गया।
Champawat – नैसर्गिक सुंदरता :
यह एक खूबसूरत पर्यटन स्थल है। इसकी प्राकृतिक सुंदरता देखते ही बनती है। यहाँ मानेश्वर की चोटी से हिमालय की पर्वत श्रृंखलाओं का मनोहर दृश्य अद्भुद लगता है। यही नहीं पहाड़ों एवं मैदानों से बहती हुई नदियाँ बहुत ही मनोरम लगती हैं। यहाँ चारों ओर हरे-भरे मैदान, चाय के बागान भी हैं। प्राकृतिक सम्पदा से पूर्ण घने जंगल जिसमे टीक, बबूल, यूकलिप्टिस, बेल, सागौन तथा जामुन के वृक्ष भी यहाँ की सुंदरता को बढ़ाते हैं ।इसके अलावा विभिन्न वन्य जीव भी यहाँ आपको देखने को मिल जाएंगे।
चम्पावत दृश्य माउंट अब्बोट लोहाघाट से
Champawat – इतिहास :
ऐतिहासिक :
चम्पावत का इतिहास काफी प्राचीन है। यह बहुत वर्षों पहले से ही कुमाऊं पर शासन करने वाले शासकों की राजधानी रहा है। चम्पावत में चन्द वंश के राजाओं का शासन काल 800 से अधिक वर्षों तक रहा है। इन्होंने ही प्रसिद्ध बालकेश्वर मंदिर की स्थापना की थी।
चम्पावत का नाम चम्पावती से लिया गया है। चम्पावती राजा अर्जुन देव की पुत्री थी। गुरुपादुका ग्रन्थ के अनुसार नागों की बहन चम्पावती ने बालेश्वर मंदिर के निकट तप किया था। उन्हीं की याद में चम्पावती मंदिर का निर्माण बालेश्वर मंदिर के अंदर किया गया था।
पौराणिक :
स्कन्द पुराण के अनुसार चम्पावत को कुर्मांचल वर्णित किया गया है। क्योंकि इस क्षेत्र में भगवान विष्णु ने कछुए का ( कूर्म )अवतार लिया था। लेकिन बाद में कूर्मांचल शब्द कुमाऊं बोला जाने लगा।
वायु पुराण के अनुसार चम्पावत का नाम चम्पावलपुरी के नाम से जाना जाता था। यह नाग वंश के राजाओं की राजधानी थी।
द्वापर युग में पांडव अपने 14 वर्षों के निर्वासन काल के समय में इस स्थान पर आए थे।
इसके अलावा भीम और हिडिम्बा का पुत्र घटोत्कच का निवास स्थान चम्पावत को ही बताया जाता है। घटोत्कच के नाम पर ही यहाँ घटकू मंदिर बना हुआ है। इसी काल में यहाँ अनेक मंदिरों का निर्माण भी हुआ था।
यही नहीं द्वापर युग में जब राक्षस वाणासुर ने भगवान श्री कृष्ण के पौत्र का अपहरण किया था। तब इसी स्थान पर भगवान ने वाणासुर का वध किया था। लोहाघाट से सात किमी की दूरी पर स्थित वाणासुर का किला आज भी स्थित है।
त्रेता युग में भी भगवान श्री राम ने रावण के भाई कुम्भकर्ण को मारकर उसके सिर को कुर्मांचल में फेंक दिया।
तो इस प्रकार चम्पावत का इतिहास अभी का नहीं बल्कि युगों से महत्वपूर्ण रहा है।
Main Tourist Places – चम्पावत के प्रमुख पर्यटन स्थल :
Champawat – बालेश्वर मंदिर :
चम्पावत का मुख्य पर्यटन स्थल बालेश्वर मंदिर है। यह चम्पावत से लगभग 100 मीटर की दूरी पर स्थित है। इसका निर्माण चन्द वंश के शासकों द्वारा लगभग 10-12 शताब्दी के बीच कराया गया था। यह मंदिर 200 वर्ग मीटर में बना हुआ है।
बालेश्वर मंदिर
यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। यहाँ के मुख्य मंदिर में स्फटिक का शिवलिंग विराजमान हैं। मंदिर परिसर में दो अन्य मंदिर भी बने हुए है। पहला रत्नेश्वर और दूसरा चम्पावती दुर्गा मंदिर। यहाँ के स्थानीय लोग चम्पावती को दुर्गा देवी की तरह पूजते थे। इसलिए उनके नाम से चम्पावती दुर्गा मंदिर का निर्माण किया गया।
इसके अलावा यहाँ मंदिर परिसर में एक गणेश जी का मंदिर भी है। यहाँ एक नौले ( पानी के स्रोत) का निर्माण भी करवाया गया था।
बालेश्वर मंदिर कुमायूं क्षेत्र के सभी मंदिरों में सबसे सर्वश्रेष्ठ वास्तुकला एवं शिल्पकला का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। इसकी वास्तुकला दक्षिण भारतीय है। इस मंदिर का निर्माण ग्रेनाइट एवं बलुआ पत्थरों द्वारा हुआ है।
भगवान शिव की मूर्ती बालेश्वर मंदिर की दीवार पर
इसके गर्भ गृह तथा मंडप की छतों पर कालिया मर्दन के चित्र बने हुए हैं। जबकि बाहरी दीवारों पर ब्रह्मा, विष्णु, महेश एवं अन्य देवी- देवताओं के चित्र बने हुए है। इसके अलावा मंदिर परिसर में आपको पक्षियों एवं स्त्रियों के चित्र तथा एक जगह पर आपको भगवान बुध का भी चित्र मिल जाएगा।
बालेश्वर मंदिर को सन 1952 में राष्ट्रिय धरोहर के रूप में घोषित किया गया है। तभी से भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग इसकी देख रेख का कार्य करता है।
यहाँ मंदिर में शिवरात्रि एवं सावन के महीने में जलाभिषेक करने से मनोकामना पूर्ण होती है। इस समय विशिष्ट पूजा का आयोजन होता है। भारी संख्या में भक्त दर्शन करने के लिए पहुँचते हैं। इस समय मेले का आयोजन भी किया जाता है।
Champawat – नागनाथ मंदिर :
नागनाथ मंदिर प्राचीन मंदिरों में से एक है। जैसा कि नाम से ज्ञात होता है नागों के नाथ अर्थात भगवान शिव को यह मंदिर समर्पित है। यह चम्पावत शहर में तहसील रोड पर स्थित है।
इस मंदिर का निर्माण गुरु गोरखनाथ जी ने करवाया था। हालाँकि 18 वी सदी में गोरखा और रोहिल्ला आक्रमणकारियों ने इसे थोड़ी बहुत क्षति पहुंचाई थी। लेकिन यदि इस समय की बात की जाए तो यह मंदिर सही स्थिति में है।
यह मंदिर कुमाउनी वास्तु कला के आधार पर बना हुआ है। यह दो मंजिला लकड़ी द्वारा निर्मित है, जिसका द्वार नक्काशी दार बनाया गया है।
नागनाथ मंदिर मनोकामना पूर्ति मंदिर है। यहाँ भक्त संतान सुख की प्राप्ति तथा शत्रुओं पर विजय प्राप्ति की लिए भगवान शिव से प्रार्थना
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नागनाथ मंदिर
करने आते हैं। यहाँ आकर उनकी सभी मनोकामना भी पूरी होती है। इस मंदिर में नागनाथ की धूनी के साथ कालभैरव जी का मंदिर भी बना हुआ है।
श्यामलताल :
प्राकृतिक झील श्यामलताल जैसा कि नाम से वर्णित है गहरे रंग की या श्याम वर्ण झील है। इस झील का श्याम वर्ण, वहां का मटियाला पानी और चारों ओर की पहाड़ियों की वजह से है।
यह टनकपुर से लगभग 22 तथा चम्पावत से 56 किमी की दूरी पर स्थित है। यह झील 1.5 वर्ग किमी क्षेत्रफल में फैली हुई है। यहाँ स्वामी विवेकानंद जी का प्रसिद्ध आश्रम भी है जो कि इस झील से थोड़ा आगे एक पहाड़ी के शीर्ष पर बना हुआ है। यहाँ बर्फ से ढकी हिमालय की चोटियां आप आराम से देख सकते हैं।
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श्यामलताल
स्वामी विवेकानंद आश्रम में निःशुल्क चिकित्सालय, आराधना स्थल, ऑपरेशन थिएटर की सुविधा तथा एक पुस्तकालय भी है। यह आश्रम कई वर्षों से यहाँ के स्थानीय लोगों की विभिन्न प्रकार से मदद करता आ रहा है। इलाज़ से लेकर, बच्चों की स्कूली शिक्षा के बाद व्यक्तित्व विकास आदि।
इस आश्रम में यहाँ के ग्रामीण वासियों को लघु उद्योग, फल, सब्ज़ियां, आचार, जैम आदि के बारे में भी ज्ञान दिया और उन्हें आत्म निर्भर बनाने में मदद की। यह कार्य कई वर्षों पूर्ण स्वामी विवेकानंद जी के परम शिष्य स्वामी विराजनंद जी के अथक प्रयासों से संभव हुआ था और अभी तक निरंतर चल रहा है।
Champawat – पूर्णागिरि मंदिर :
पूर्णागिरि मंदिर एक प्रमुख शक्ति पीठ है। पौराणिक मान्यताओं के आधार पर यहाँ देवी का अंग नाभि गिरी थी।
पौराणिक कथा :
कथा कुछ इस प्रकार है कि जब देवी सती के पिता राजा दक्ष ने यज्ञ करने का विचार किया। उन्होंने सभी देवताओं को निमंत्रण दिया लेकिन भगवान शिव को नहीं दिया। इस बात का जब देवी सती को पता चला तो उन्होंने भगवान शिव से अपने पिता के यहाँ जाने की इच्छा प्रकट की। भगवान शिव ने बहुत समझाया कि बिना निमंत्रण नहीं जाना चाहिए परन्तु वह नहीं मानी।
जब देवी सती यज्ञ में अपने पिता के घर पहुंची तो, उन्होंने वहां सभी देवताओं के आसन देखे। परन्तु भगवान शिव का आसन कहीं नहीं था। इस बात पर वह क्रोधित हो गयीं और यज्ञ कुंड की अग्नि में कूद गयीं।
जब इस बात का पता भोलेनाथ को चला, तो क्रोध से वह देवी सती के जले शरीर को उठाकर तांडव करने लगे। जिससे सृष्टि में हाहाकार मच गया। इस अवस्था में जब विष्णु जी ने भगवान शिव को देखा, तो उन्होंने देवी सती के शरीर को चक्र से काट दिया।
देवी के अंग जहाँ-जहाँ गिरे वह शक्तिपीठ के रूप में विद्यमान हो गए।
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पूर्णागिरि मंदिर
प्रसिद्ध मनोकामना पूर्ति मंदिर :
पूर्णागिरि प्रसिद्ध मनोकामना पूर्ति मंदिर है । यह उत्तराखंड राज्य के चम्पावत में काली नदी (शारदा) के दाहिनी ओर तथा अन्नपूर्णा चोटी के शिखर पर लगभग 3000 फ़ीट की ऊंचाई पर स्थित है। टनकपुर से पूर्णागिरि की दूरी 19 किमी है।
यहाँ प्रतिवर्ष लाखों की संख्या में भक्त माँ पूर्णागिरि के दर्शन करने आते हैं। ऐसी मान्यता है कि यहाँ पर मांगी हुई हर इच्छा पूर्ण होती है। इच्छापूर्ति के पश्चात भक्त पुनः मंदिर में दर्शन करने आते हैं।
माता के दर्शन के उपरान्त भक्त सिद्ध बाबा के मंदिर अवश्य जाते हैं। तभी उनकी यात्रा पूर्ण समझी जाती है।
सबसे ज्यादा भीड़ यहाँ चैत्र नवरात्र में मिलती है। इस समय यहाँ मेले का आयोजन भी किया जाता है।
गुरुद्वारा मीठा रीठा साहब :
यह एक प्रसिद्ध गुरुद्वारा है जो चम्पावत से लगभग 72 किमी की दूरी पर लोहाघाट क्षेत्र में डयूरी ग्राम में स्थित है। इस पवित्र गुरूद्वारे को सन 1960 में गुरु साहिबान ने बनवाया था। इस गुरूद्वारे के निकट ही लोदिया और रतिया नदी का संगम होता है।
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मीठा रीठा साहब गुरुद्वारा
ऐसी मान्यता है कि स्वयं गुरुनानक देव जी इस स्थान पर गुरु गोरखनाथ के चेले ढेरनाथ के साथ आध्यात्मिक एवं धार्मिक विषयों पर बात करने आये थे। उस समय गुरुनानक जी के शिष्य को भूख लगने लगी, तब गुरुदेव ने पास खड़े वृक्ष से रीठे खाने के लिए कहा। गुरु जी की कृपा से कड़वे रीठे का स्वाद मीठे में बदल गया। तभी से गुरूद्वारे का नाम मीठा रीठा साहब पड़ गया।
आज भी वह वृक्ष गुरूद्वारे में उपस्थित है और उसके फल मीठे हैं। बैसाख मास की पूर्णिमा के दिन यहाँ मेला लगता है। ऐसी मान्यता है कि भक्तों की यात्रा तभी सफल मानी जाती है, जब वह गुरुद्वारा साहिब में मत्था टेकने के बाद ढ़ेरनाथ मंदिर में दर्शन करने जाते हैं।
Champawat – पंचेश्वर महादेव मंदिर :
पंचेश्वर महादेव जी का पवित्र मंदिर पिथौड़ागढ़ में स्थित है। यह लोहाघाट से लगभग 35 किमी की दूरी पर स्थित है। यहाँ मंदिर के समीप ही काली एवं सरयू नदी का संगम होता है। यहाँ मंदिर के चारों ओर ऊँचे-ऊँचे पहाड़ एवं बड़े-बड़े वृक्ष, जंगल आदि हैं।
स्थानीय लोग इस मंदिर को चैमू देवता का मंदिर भी बोलते हैं और अपना ईष्ट देव भी मानते हैं। उनका मानना है कि महादेव जी ने आस पास के गाँवों के पशुओं की रक्षा की है। इसलिए भक्त मंदिर में दूध एवं घंटियां चढ़ाते हैं।
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पंचेश्वर महादेव मंदिर
चैत्र माह के नवरात्रों में यहाँ भक्तों की संख्या बढ़ जाती है। इसके अलावा मकर संक्रांति के दिन यहाँ मेले का आयोजन भी किया जाता है। यहाँ यात्रा का सर्वोत्तम समय मार्च से अक्टूबर के बीच का है।
आप भी यदि कोई ट्रिप प्लान कर रहे हैं तो चम्पावत घूमने का विचार कर सकते हैं। क्योंकि चम्पावत खूबसूरत होने के साथ साथ एक ऐतिहासिक पर्यटन स्थल भी है।
Weather In Champawat —
चम्पावत के मौसम की बात की जाए तो अप्रैल से जून यहाँ गर्मी के दिन रहते हैं जबकि सर्दियों में बर्फ पड़ती है और न्यूनतम तापमान 4 डिग्री सेल्सियस तक पहुँच जाता है। मानसून के महीनों में यहाँ खूब बारिश होती है। अतः मानसून में यहाँ जाने से बचना चाहिए।
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