Auli | औली(उत्तराखंड) – भारत का मिनी स्विट्ज़रलैंड
प्रतिदिन की दैनिक भागम-भाग के बाद अकसर लोग थोड़ा बदलाव चाहते हैं। जिसके लिए गर्मियों और सर्दियों की छुट्टियों का इंतज़ार रहता है। यदि आप भी अपनी छुट्टियों में कहीं घूमने का प्लान बना रहे हैं, तो औली हिल स्टेशन एक अच्छी वेकेशन ट्रिप बन सकती है। देखा जाए तो औली के बारे में कम ही लोग जानते हैं। Auli ( उत्तराखंड ) को भारत का मिनी स्विट्ज़रलैंड भी कहा जाता है।

औली सर्दियों मे( मिनी स्विट्ज़रलैंड )
औली उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित एक बहुत ही सुन्दर पर्यटन स्थल है। समुद्र तल से इसकी ऊंचाई 2800 मीटर है। औली को औली बुग्याल के नाम से भी पुकारते हैं। यह गढ़वाल क्षेत्र में है, जहाँ बुग्याल का अर्थ घास के मैदान के रूप में जाना जाता है।
औली जो कि भारत का मिनी स्विटज़रलेंड कहा जाता है, उसकी वजह यहाँ का प्राकृतिक सौंदर्य ही है। बर्फ से ढकी हुई पर्वत कि चोटियाँ, देवदार और ओक के वृक्षों के जंगल, मखमली घास के मैदान, साफ़ एवं स्वच्छ ठंडी हवाएं वातावरण को और सुखद बना देती हैं। यहाँ बर्फ से ढके ढलान देखते ही बनते हैं। जिनपर बहुत से एडवेंचरस गेम्स भी होते हैं जैसे स्कींग, ट्रेकिंग आदि।
Main Tourist Places Of Auli (मुख्य पर्यटन स्थल औली के)

नंदा देवी
Nanda Devi (नंदा देवी)
इस पर्वत का नाम देवी के नाम पर पड़ा है। यह हमारे देश का सबसे ऊँचा पर्वत और सबसे ऊँचा पर्वतीय पर्यटन स्थल कहा जाता है। जिसकी ऊंचाई 7,817 मीटर है। यहाँ आप नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान भी देख सकते हैं। भारत सरकार ने इसे 1982 में राष्ट्रीय उद्यान के रूप में घोषित किया। इस उद्यान को यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर और बायोस्फियर रिज़र्व के रूप में भी घोषित किया गया है।
यहाँ बहुत प्रकार के पौधे यूँ कह सकते हैं कि दुर्लभ पौधों की प्रजातियां एवं विभिन्न प्रकार के जंगली जानवर जैसे- हिमालयन भालू, तेंदुए, लंगूर, कस्तूरी मृग, गोरल, भारल आदि की प्रजातियां भी देखने को मिल जाएंगी।
लेकिन यदि आप औली घूमने का प्लान मई से अक्टूबर के महीनों में करते हैं तभी नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान भी देख पाएंगे। क्योंकि यह मई से अक्टूबर के बीच ही खुलता है तथा सिर्फ एक बार में दस लोग ही प्रवेश की अनुमति ( जोशीमठ DFO कार्यालय) से प्राप्त कर सकते हैं। ट्रैकिंग के शौकीन लोग नंदा देवी आना पसंद करते हैं।

जोशीमठ
Joshimath (जोशीमठ)
हिन्दुओं का तीर्थ स्थल कहा जाने वाला जोशीमठ, औली से 12 किमी की दूरी पर स्थित है। रोप वे निर्माण के बाद यह यात्रा काफी सुखद और रोमांचित हो गयी है। ऐसी मान्यता है कि आदि गुरु शंकराचार्य जी ने यहीं रहकर ज्ञान प्राप्त किया था। शंकराचार्य मठ उन्हीं के नाम से यहाँ स्थित है। यह शंकराचार्य द्वारा 4 केंद्रों में से एक केंद्र माना जाता है।
बद्रीनाथ जाने वाले यात्री यहीं विश्राम कर के यात्रा पुनः प्रारम्भ करते हैं। जोशीमठ में कई मंदिर भी बने हुए हैं जैसे नरसिंह मंदिर, गरुण मंदिर आदि। इसके अलावा यहाँ एक कल्प वृक्ष भी है जो 2500 वर्ष पुराना बताया जाता है।

त्रिशूल पीक
Trishool Peak (त्रिशूल पीक)
त्रिशूल पर्वत, नंदा देवी पर्वत से पश्चिम दक्षिण-पश्चिम दिशा में 15 किमी दूर है। इस पर्वत पर पहली बार चढ़ाई सन 1907 में की गयी थी। त्रिशूल पर्वत की ऊंचाई 7,120 मीटर (23,360 फीट) है। पश्चिम कुमायूं की यह तीन चोटियां भगवान शिव के त्रिशूल के आकार जैसी लगती हैं इसलिए यह त्रिशूल पीक के नाम से जानी जाती है। यहां जीप सफारी द्वारा जाया जा सकता है।
Chinab Lake (चिनाब झील)
यह एक बहुत सुन्दर झील है, जो कि जोशीमठ के आखिरी गाँव डांग में स्थित है। यह झील काफी अधिक ऊंचाई पर स्थित है। यहाँ चढ़ाई चढ़ कर ही पहुंचा जा सकता है। परन्तु यहाँ का दृश्य बहुत ही अदभुद है, जो चारो ओर से पहाड़ियों, हरे भरे देवदार और ओक के जंगलों से घिरी हुई बड़ी शांत से दिखती है।

हिमालय पर्वत रुद्रप्रयाग से
Rudra Pryag (रूद्र प्रयाग)
पौराणिक मान्यताओं के आधार पर ऐसा कहा जाता है कि नारद मुनि ने कई वर्षों तक एक पाँव पर खड़े रहकर भगवान शिव की अराधना इसी स्थान पर की थी। उनकी अराधना से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें रौद्र रूप में दर्शन दिए थे। तभी से इसका नाम रुद्रप्रयाग कहा जाने लगा।
इसके अलावा अलकनंदा नदी के पांच प्रयाग हैं, जिनमे से एक रुद्रप्रयाग है। यहाँ अलकनंदा और मन्दाकिनी नदी का मिलन होता है। केदारनाथ और बद्रीनाथ की यात्रा के दौरान यह रास्ते में पड़ता है। यहाँ यात्री विश्राम करते हैं और कई मंदिरों के दर्शन करते हैं जैसे रुद्रनाथ मंदिर, चामुंडा देवी मंदिर और अन्य मंदिर।
Nand Pryag (नन्द प्रयाग)
यह उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित है। यहाँ अलकनंदा और नन्दकिनी नदियों का संगम होता है इसलिए इसे नन्द प्रयाग कहते हैं। नन्द प्रयाग से ही केदारनाथ और बद्रीनाथ जाने का रास्ता शुरू होता है। प्राचीन समय में यह यदुवंश की राजधानी हुआ करती थी। यहाँ अलकनंदा नदी के किनारे प्रसिद्ध गोपाल जी मंदिर है, जहाँ भक्तों की भीड़ लगी रहती है। नन्द प्रयाग बर्फ से ढका हुआ बहुत ही सुन्दर लगता है।
Vishnu Pryag (विष्णु प्रयाग)
विष्णु प्रयाग भी चमोली जिले में स्थित है। यह पांच प्रयागों में से एक है, जहाँ धौली गंगा( विष्णु गंगा ) और अलकनंदा नदी का संगम होता है। समुद्र तल से इसकी ऊंचाई 1372 मीटर है। यह जोशीमठ- बद्रीनाथ मार्ग पर स्थित है। जोशीमठ से वाहन द्वारा यह दूरी 12 किमी की तथा पैदल मार्ग द्वारा 3 किमी चलकर विष्णुप्रयाग पहुंचा जा सकता है।
यहाँ संगम पर विष्णु भगवान का प्राचीन मंदिर है। इस मंदिर का निर्माण 1889 में इंदौर की महारानी अहिल्याबाई ने करवाया था। पौराणिक कथाओं के अनुसार इसी स्थान पर देवऋषि नारद जी ने भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए पंचाक्षरी मन्त्र का जप किया था। इसके अलावा विष्णु प्रयाग में दायीं और बायीं ओर दो पर्वत हैं जिन्हें क्रमशः जय और विजय के नाम से जाना जाता है।
Soldhar Tapovan (सोलधार तपोवन)
यह औली के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है। सोलधार तपोवन औली से लगभग 15 किमी की दूरी पर स्थित एक छोटा सा गाँव है। यहाँ गर्म पानी के प्राकृतिक फव्वारे हैं जो देखने योग्य हैं। इसके अलावा यहाँ एक मंदिर भी है। यहाँ की प्राकृतिक छटा देखते ही बनती है। लेकिन यहाँ की यात्रा करते समय शारीरिक और मानसिक दृष्टि से मजबूत होना बेहद जरूरी है।
Bhavya Badri (भव्य बद्री)
यह स्थान घने जंगलों के बीच, समुद्र तल से लगभग 2744 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यहाँ से सोलधार तपोवन की दूरी पैदल तय की जा सकती है। भव्य बद्री, पांच बद्री मंदिरों ( बद्रीनाथ, योग ध्यान बद्री, आदि बद्री, वृद्धा बद्री ) में से एक है। ऐसा कहा जाता है कि भविष्य काल में इसी को बद्रीनाथ मंदिर के रूप में पूजा जाएगा। क्योंकि मुख्य बद्रीनाथ मंदिर में मौसम की विषमताओं को देखते हुए दर्शन करना दुर्लभ होगा। यहाँ भगवान नरसिंह का मंदिर है।
Vanshi Narayan Mandir (वंशी नारायण मंदिर)
इस मंदिर तक पहुंचने के लिए औली से 12 किमी दूर जोशीमठ , फिर जोशीमठ से हेलंगचट्टी आना पड़ेगा। यहाँ से 10 किमी कल्पेश्वर की घाटी पैदल चलकर, तत्पश्चात 2 किमी दूर और पद यात्रा करते हुए उर्गम घाटी में वंशी नारायण मंदिर तक पहुंचा जा सकता है। यह मंदिर साल के 364 दिन बंद रहता है। सिर्फ रक्षाबंधन वाले दिन खुलता है।
इस दिन बड़ी संख्या में श्रद्धालु विशेषकर महिलाएं, भगवान विष्णु की प्रतिमा के दर्शन करते हैं और उन्हें रक्षा सूत्र बांधते हैं। पौराणिक मान्यताओं के आधार पर इस मंदिर का निर्माण पांडव काल में हुआ था। इसके अलावा ऐसा कहा जाता है कि इस स्थान पर नारद ऋषि ने भगवान की 364 दिनों तक पूजा अर्चना की थी। लेकिन यहाँ वही जा सकता है जो पद यात्रा करने में सक्ष्म हो।

बुग्याल
Kwani Bugyal (क्वानी बुग्याल)
यदि औली के प्रसिद्ध ट्रेकिंग स्थान की बात की जाए तो क्वानी बुग्याल का नाम सर्वप्रथम आता है। यह गुरसों बुग्याल से लगभग 12 किमी की दूरी पर स्थित है। समुद्र तल से इसकी ऊंचाई 3380 मीटर की है। यदि आप सर्दियों में आते हैं तो यहाँ स्नो फॉल का आनंद ले सकते हैं।
नंदा देवी और दूनागिरि पहाड़ियों से घिरा हुआ यह स्थान, सर्दियों में बर्फ से ढकी हुई यह चोटियां अत्याधिक मनोरम लगती है। यदि आपको बर्फ पसंद है तो सर्दियों में ही आना चाहिए। वैसे ट्रैकर्स के लिए जून से सितम्बर का समय उत्तम माना जाता है।

गुरसों बुग्याल
Gorson Bugyal (गुरसों बुग्याल)
औली से तीन किमी ट्रैक किया जाए तो गुरसों बुग्याल आता है। समुद्र तल से इसकी ऊंचाई 3056 मीटर है। यह बहुत ही सुन्दर स्थान है। जहाँ गर्मियों में यदि आप जाएंगे तो चारो ओर हरियाली ही हरियाली पाएंगे।
गुरसों बुग्याल में देवदार, ओक के जंगल भी आपको देखने को मिल जाएंगे। यहाँ आप छत्रा कुंड भी देख सकते हैं, यह गुरसों बुग्याल से 1 किमी की दूरी पर स्थित है। छत्रा कुंड, मीठे पानी की एक छोटी सी झील है। गुरसों बुग्याल से नंदा देवी, द्रोण एवं त्रिशूल पर्वत श्रृंखलाएं दिखाई देती हैं।

औली लेक
Artificial Lake (कृत्रिम झील)
औली में सन 2010 में सबसे बड़ी कृत्रिम झील का निर्माण किया गया था। इस आर्टिफिशयल लेक का पानी, कृत्रिम बर्फ बनाने में किया जाता है। जिस समय कम बर्फ पड़ती है, तब इसी कृत्रिम बर्फ का उपयोग स्कींग आदि रोमांचक खेलों के लिए किया जाता है।
Exciting Activities In Auli (कौन सी रोमांचक गतिविधियों का आनंद ले सकते हैं औली में)
Sking (स्कींग)
औली में आप स्कींग का भी आनंद ले सकते हैं। यहाँ सर्दियों में जब चारो ओर बर्फ ही बर्फ जमी होती है, तब स्कींग के शौक़ीन लोग यहाँ आ कर इस रोमांचक खेल का आनंद लेते हैं। यहाँ पर सरकारी और प्राइवेट दोनों संस्थानों द्वारा स्कींग सिखाने की व्यवस्था है।

स्कींग रिसोर्ट औली
इन संस्थानों में 7 व 14 दिन का सर्टिफिकेट एवं नॉन सर्टिफिकेट दोनों तरह से स्कींग सिखाने की सुविधा उपलब्ध है। इसके लिए कुछ फीस देकर आप सामान और ट्रेनिंग दोनों ले सकते हैं। औली के बर्फ से ढके ढलान विश्व के सबसे अच्छे स्कींग ग्राउंड माने जाते हैं।
Treking (ट्रैकिंग)
जिन लोगों को ट्रैकिंग पसंद है, वह औली आकर ट्रैकिंग का आनंद ले सकते हैं। यहाँ के ढलान ट्रैकर्स को काफी पसंद आते हैं। यहाँ ट्रैकिंग के लिए ऊँची और छोटी दोनों तरह की रेंज आप को मिल जाएंगी।

केबल कार( रोप वे )
Cabel Car (केबल कार)
औली आएं और केबल कार की सवारी न की जाए तो वास्तव में आपके रोमांच में कुछ कमी रह जाएगी। आप केबल कार की सवारी जो कि लगभग 4 किमी की है, जोशीमठ से औली तक कर सकते हैं।
इसके लिए आपको पहले से ही tickets बुक करनी होगी, पीक सीजन में काफी भीड़ होने की वजह से बुकिंग के लिए लाइन रात से ही लग जाती है। रोपवे की सवारी करते हुए आप घाटियों, पहाड़ो की चोटियां और चारो ओर के प्राकृतिक नज़ारे देख कर निश्चित रूप से रोमांचित हो जाएंगे।
Best Time To Visit Auli (कौन सा समय औली जाने के लिए सही है)
वैसे तो औली कभी भी जाया जा सकता है। वर्ष भर यहाँ का मौसम ठंडा रहता है। लेकिन यदि आपको स्नो फॉल और स्कींग के मजे लेना है तो दिसंबर से फरवरी का समय उत्तम रहेगा। क्योंकि इसी समय बर्फ़बारी होती है। इस समय औली भारत का मिनी स्विट्ज़रलैंड सा प्रतीत होता है।
इसके अलावा यदि आप ट्रैकिंग करना चाहते हैं तो जून से सितम्बर के महीने सबसे ठीक रहते हैं। वहीं यदि आप नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान देखना चाहते है, तो मई से अक्टूबर के समय सही होगा।
How To Reach Auli (किस तरह पहुँच सकते हैं औली)
सड़क मार्ग द्वारा :
सड़क मार्ग से औली की यात्रा करना सबसे उत्तम रहेगा क्योंकि आप प्राकृतिक नजारों का आनंद ले सकेंगे। इसके लिए आपको ऋषिकेश तक बस लेनी होगी। फिर ऋषिकेश से औली (253 किमी दूर) बस द्वारा लगभग 9 घंटों का समय लगेगा, आप टैक्सी द्वारा भी जा सकते हैं। लेकिन यदि आप रोप वे का आनंद लेना चाहते हैं, तो ऋषिकेश से जोशीमठ पहुंचना होगा। जोशीमठ पहुँच कर आप रोप वे के लिए बुकिंग करवा सकते हैं।
रेल मार्ग द्वारा :
औली तक रेल मार्ग उपलब्ध नहीं है। औली का निकटतम रेलवे स्टेशन देहरादून और ऋषिकेश है। ऋषिकेश से आप औली या जोशीमठ जाने के लिए टैक्सी या बस ले सकते हैं।
हवाई मार्ग द्वारा :
औली का सबसे नज़दीक हवाई अड्डा देहरादून का जॉली ग्रांट हवाई अड्डा है। फिर देहरादून से आपको औली या जोशीमठ सड़क मार्ग द्वारा जाना पड़ेगा। इसके लिए बस और टैक्सी दोनों कि सुविधाएँ हैं।
Precautions To Be Taken While Travelling To Auli (सावधनियां रखे औली यात्रा के दौरान)
मानसिक और शारीरिक स्वास्थ :
औली बहुत अधिक ऊंचाई पर स्थित है, जिसकी वजह से यहाँ काफी ठंडा रहता है। अतः मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति को ही औली घूमने के लिए आना चाहिए।
गर्म कपडे एवं जूते :
औली घूमने के लिए आपको गर्म कपड़े रखना बहुत जरूरी है जिनमे गर्म जैकेट या कोट, गर्म इनर, गर्म जुराबें, गर्म कैप, दस्ताने, मफलर, गर्म पेंट, स्वेटर, शॉल इत्यादि। इसके साथ अच्छे किस्म के जूते होना अत्याधिक आवश्यक है।
कान एवं सिर ढकना :
औली घूमते समय इस बात का विशेष ध्यान रखें कि कानों और सिर को ढकें जिससे ठण्ड से आपको परेशानी नहीं होगी और आप घूमने का पूरा आनंद ले पाएंगे।
धूप का चश्मा एवं सनस्क्रीन :
इसके अतिरिक्त पहाड़ो पर तेज़ धूप होती है। इसके लिए जरूरी है कि आँखों के लिए धूप का चश्मा हो। जिससे सूरज की अल्ट्रा वॉइलेट किरणें आँखों को नुकसान न पहुंचा सके। इसके अलावा फेस के लिए SPF युक्त लोशन एवं क्रीम भी होना जरूरी है। जिससे आपकी त्वचा सूरज की रोशनी से बच सके।
दवाइयां :
ऐसी ठंडी जगह जाते हुए हमेशा कुछ जरूरी दवाइयां अपने पास अवश्य रखनी चाहिए। जिनमे ठण्ड, बुखार, दर्द निवारक, एंटीबायोटिक्स एवं एलर्जी की दवाइयां तो होनी ही चाहिए। आप दवाइयों के विषय में अपने डॉक्टर से भी राय ले सकते हैं।
पानी का सेवन :
औली घूमते समय आपको अपने शरीर को (dehydration) पानी की कमी से बचाना चाहिए। क्योंकि ठंडे इलाके में अकसर पानी की कमी हो जाती है। इसके लिए आपको चाहिए कि पानी का सेवन करते रहें और अपने पास पानी की बोतल रखें। कहने का अभिप्राय यह है कि तरल पदार्थ लेते रहें जैसे जूस आदि।
तो इस प्रकार थोड़ी सी सावधानी रखकर आप औली जो कि भारत का मिनी स्विट्ज़रलैंड है, उसकी यात्रा का भरपूर आनंद ले सकते हैं। आपको यह लेख कैसा लगा ? कृपया कमेंट जरूर करें।
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