Akshay Tritiya- महत्व और विशेष फलदायिनी तिथि
जो कभी क्षय नहीं होती उसे अक्षय कहते हैं। अक्षय तृतीया को आखा तीज भी कहते हैं। यह वैशाख मास के शुक्ल पक्ष ( अमावस्या के बाद 15 दिन ) की तृतीया तिथि को कहते हैं। इस लेख में हम Akshay Tritiya– महत्व और विशेष फलदायिनी तिथि के बारे में बात करेंगे। इसे अनंत, अक्षय व अक्षुण फलदायिनी तिथि माना जाता है। वर्ष में साढ़े तीन अक्षय मुहूर्त हैं, उनमे प्रमुख स्थान अक्षय तृतीया का है। इस दिन आप कोई भी शुभ कार्य कर सकते हैं। अतः यह तिथि स्वयं सिद्ध मुहूर्तों में मानी गयी है।
Akshay Tritiya 2024 कब है शुभ मुहूर्त —
इस वर्ष 2024 में 10 मई को प्रातः 4 बजकर 17 मिनट पर (वैशाख मास) शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि का आगमन हो रहा है तथा इसका समापन 11 मई 2024 को प्रातः 2 बजकर 50 मिनट पर होगा।
शुभ मुहूर्त –
पूजा का शुभ मुहूर्त — प्रातः 5:31 से दोपहर 12:23 तक ।
खरीदारी का शुभ मुहूर्त — दोपहर 12:07 से 1:48 तक तथा शाम 5:08 से 6:49 तक ।
अक्षय तृतीया इमेज ( इमेज गूगल के सौजन्य से )
Akshay Tritiya(अक्षय तृतीया) का महत्व :
ऐसा कहा जाता है कि इस दिन जिनका परिणय संस्कार उसका सौभाग्य अखंड रहता है। इस दिन बिना पंचांग देखे कोई भी शुभ कार्य किया जा सकता है। क्योंकि शास्त्रों के अनुसार इस दिन स्वयं सिद्ध मुहूर्त माना गया है।
सभी शुभ कार्यों के अलावा शादी, स्वर्ण खरीदने, नया सामान, गृह प्रवेश, पदभार ग्रहण, वाहन क्रय, भूमि पूजन तथा नया व्यापार प्रारम्भ कर सकते हैं।
इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में जो भी गंगा जी में स्नान करता है, उसके उपरान्त लक्ष्मी नारायण की एक साथ पूजा करता है तथा अपने पापों की क्षमा याचना करता है। तो निश्चित रूप से उसके सभी पापों को भगवान क्षमा कर देते हैं।
इस दिन दान का भी बहुत महत्व है। इस दिन अन्न दान अवश्य करना चाहिए जिसमे चावल, सत्तू, फल, तिल, जल से भरा घड़ा, छाता, पंखे, खरबूजा, ककड़ी आदि गर्मियों से बचने वाला सामान आदि दिया जा सकता है। इसके अलावा जो सामर्थ्यवान हैं वो सोना चांदी, गौ, भूमि आदि का भी दान करते हैं। मान्यता है कि हम जो भी दान देते हैं उसका कई गुना फल मिलता है।
इस दिन खरीदारी का भी विशेष महत्व है। वस्त्र, स्वर्ण एवं चाँदी के आभूषण खरीदना बेहद शुभ माना गया है। ऐसा करने से घर में सुख समृद्धि एवं लक्ष्मी नारायण की कृपा बनी रहती है।
अक्षय तृतीया के दिन धन का निवेश भी बहुत फलदायी एवं शुभ माना जाता है।
इस दिन जप, तप, हवन, दान, पूजा आदि जो भी कार्य किया जाता है उसका अक्षुण फल प्राप्त होता है।
लक्ष्मी नारायण ( इमेज गूगल के सौजन्य से )
पौराणिक महत्व :
पुराणों के अनुसार सतयुग और त्रेता युग का प्रारम्भ अक्षय तृतीया के दिन ही हुआ था।
अक्षय तृतीया के ही दिन माँ गंगा श्री हरी के चरणों से निकलकर धरती पर अवतरित हुई थी।
भगवान श्री हरी के तीन अवतार नर नारायण, हयग्रीव और परशुराम जी का इसी दिन धरती पर अवतरण हुआ था। इसी कारण अक्षय तृतीया के दिन परशुराम जयंती भी मनाई जाती है।
अक्षय तृतीया के ही दिन वृन्दावन में श्री बाँके बिहारी जी मंदिर में भगवान के चरणों के दर्शन भक्तगणों के लिए सुलभ हो पाते हैं। वरना पूरे वर्ष श्री विग्रह के दर्शन दुर्लभ होते हैं। क्योंकि वस्त्रों से भली भांति चरणों को छुपा दिया जाता है।
इस शुभ दिन ही श्री बद्रीनाथ धाम के कपाट भक्तजनों के लिए खोले जाते हैं। भक्तगण भगवान के दर्शनों की प्रतीक्षा में अक्षय तृतीया के दिन का इंतज़ार बेसब्री से करते हैं।
महाभारत ग्रन्थ की रचना वेद व्यास जी एवं भगवान गणेश द्वारा की गयी थी। ऐसा कहा जाता है कि वह अक्षय तृतीया का शुभ दिन था जब महाभारत ग्रन्थ की रचना प्रारम्भ हुई।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार द्वापर युग का समापन भी इसी दिन हुआ था।
ब्रह्मा जी के पुत्र अक्षय कुमार का अवतरण भी अक्षय तृतीया के दिन ही हुआ था।
अक्षय तृतीया के दिन कुबेर जी को धन का भण्डार मिला था।
इसी दिन सुदामा जी भगवान कृष्ण से मिलने द्वारका नगरी पहुंचे थे।
देवी लक्ष्मी ( इमेज गूगल के सौजन्य से )
Akshay Tritiya की पौराणिक कथा :
अक्षय तृतीया के बारे में अनेक कथाओं का उल्लेख पुराणों में वर्णित है। जिनमे से एक कथा धर्मदास नामक वैश्य की है। जीवन पर्यन्त वह धर्मनिष्ठ, पूजा पाठ एवं ब्राह्मणों का आदर सत्कार किया करता था।
एक बार उसने अक्षय तृतीया व्रत का माहात्म्य क्या है इसके बारे में कथा सुनी। उस दिन से ही उसने निश्चय किया कि वह भी इस व्रत को विधि विधान से संपन्न करेगा। हालाँकि वह उस समय वृद्ध था और बीमार था, फिर भी उसके मन में भगवान के प्रति श्रद्धा एवं विश्वास बहुत था।
अगले वर्ष जब अक्षय तृतीया के दिन उसने प्रातः काल ब्रह्म मुहूर्त में उठकर गंगा स्नान के उपरान्त, विधिवत देवी देवताओं का पूजन किया। तत्पश्चात ब्राह्मणों को वस्त्र, अन्न, स्वर्ण आभूषणों का दान दिया।
अक्षय तृतीया के दिन किये गए धर्म कार्य एवं दान पुण्य के कारण वह वैश्य अगले जन्म में कुशावती के धनी प्रतापी राजा बनें। वैभवशाली, प्रतापी और धनी होने के बावजूद भी वह धर्मनिष्ठ और अहंकार रहित थे।
ऐसी मान्यता है कि आगे के जन्म में यही महान राजा चंद्र गुप्त बने। वास्तव में अक्षय तृतीया का पुण्य अक्षुण होता है।
सोने के आभूषण खरीदते हुए अक्षय तृतीया पर ( इमेज गूगल के सौजन्य से )
Akshay Tritiya – विशेष फलदायिनी तिथि क्यों है ?
अक्षय तृतीया के दिन सूर्य एवं चंद्र अपनी उच्च राशि में रहते हैं। इस दिन स्वयं सिद्ध मुहूर्त होता है। आप कोई भी शुभ कार्य का आरम्भ इस दिन बिना पंचांग देखे कर सकते हैं। विवाह कार्य, ग्रह प्रवेश, नया व्यापार, वाहन खरीदना, आभूषण खरीदना आदि कोई भी शुभ कार्य करने से उसका अक्षुण फल मिलता है।
इस दिन सोने चाँदी के बने आभूषण एवं वस्त्र खरीदने की परंपरा है। ऐसी मान्यता है कि ऐसा करने से घर में सुख समृद्धि आती है।
अक्षय तृतीया के दिन धर्म कर्म, पूजा पाठ, दान देना विशेष फलदायी माना जाता है। क्योंकि इस दिन किये गए दान पुण्य का विशेष फल आगे के जन्मों में भी मिलता है।
इस दिन जहाँ अच्छे कार्य का विशेष महत्व है, वही बुरे कार्य करने वाले को कई जन्मों तक उन कर्मों का फल भुगतना पड़ता है। अतः इस दिन का सदुपयोग हमारे हाथ में है कि हम अक्षय तृतीया के महत्व को समझें और इसे विशेष फलदायिनी तिथि बना दे।
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