12 Jyotirlinga Of India | ज्योतिर्लिंग, भारत के
हमारे देश भारत के 12 ज्योतिर्लिंग विश्व प्रसिद्ध हैं। पुराणों में ज्योतिर्लिंगों का बहुत महत्व है। वास्तव में यह स्वयंभू होते हैं। इन ज्योतिर्लिंगों में भगवान शिव साक्षात् ज्योति स्वरुप में विराजमान हैं। यह 12 Jyotirlinga भारत में स्थित, भगवान शिव के शरीर के रूप में माने जाते हैं। काठमांडू का पशुपतिनाथ ज्योतिर्लिंग भगवान शिव का शीश है।ज्योतिर्लिंग का अर्थ है व्यापक प्रकाश का स्वरुप।
12 Jyotirlinga —
इन 12 ज्योतिर्लिंगों को बारह तत्वों के रूप में माना गया है–ब्रह्म, माया, जीव, मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार एवं पंचमहाभूत। ऐसा माना जाता है कि जो व्यक्ति प्रतिदिन सुबह और शाम के समय शिव के इन बारह ज्योतिर्लिंगों के नाम लेता है,उसके सात जन्मों के पाप इनके स्मरण मात्र से कट जाते हैं। यहाँ साल भर भक्त बड़ी संख्या में दर्शन के लिए पहुँचते हैं।
तो आइए जानते हैं कि ये 12 ज्योतिर्लिंग कहाँ पर स्थित हैं और उनका महत्व क्या है ?
सोमनाथ ज्योतिर्लिंग भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में ही नहीं बल्कि विश्व का पहला ज्योतिर्लिंग कहा जाता है। यह मंदिर गुजरात में काठियावाड़ जिले के प्रभास क्षेत्र में वेरावल के पास स्थित है। सोमनाथ देश के सबसे अधिक पूजे जाने वाले तीर्थ स्थानों में से एक है। प्राचीन काल से ही यह मंदिर हिन्दू धर्म के उत्थान और पतन का गवाह रहा है।
सोमनाथ ज्योतिर्लिंग की कथा –
शिव पुराण के अनुसार सोमनाथ मंदिर की स्थापना स्वयं चंद्रदेव ने की थी। चंद्र देव ने दक्षप्रजापति की 27 बेटियों से शादी की थी।लेकिन चंद्रदेव उनमे से एक पत्नी रोहिणी को सबसे ज्यादा पसंद करते थे। वे अपना सारा समय उनके साथ बिताते थे।
इस पर शेष पत्नियों ने चंद्र देव द्वारा अपनी उपेक्षा और त्याग की बात अपने पिता प्रजापति दक्ष से की। फलस्वरुप दक्ष ने चंद्र देव को क्षय रोग होने का श्राप दे दिया। इस श्राप से छुटकारा पाने और अपनी सुंदरता को वापस प्राप्त करने के लिए चंद्र देव ने, भगवान शिव की कठोर तपस्या की। अंत में श्राप से मुक्ति पाई।
विदेशी आक्रमणकारियों ने सोमनाथ मंदिर पर 17 बार आक्रमण किया। मंदिर की अमूल्य सम्पति को लूटा ही नहीं, बल्कि उन्होंने इस मंदिर को अनेको बार तोड़ा और नष्ट करने का प्रयास किया।
इन आक्रमणकारियों में महमूद गज़नी और अल्लाउदीन खिलजी का नाम शामिल है। लेकिन हमारे देश के राजाओं ने अपने-अपने काल में इसे बार-बार बनवाया। अंतिम बार जब इसे नष्ट करा गया तो सन 1974 में सरदार वल्लभ भाई पटेल ने सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण का आदेश दिया।
सोमनाथ मंदिर दर्शन का समय व मार्ग —
सोमनाथ मंदिर में भक्त प्रतिदिन प्रातः 6 बजे से रात 9 बजे तक दर्शन कर सकते हैं। यहाँ तीनो पहर सोमनाथ महादेव जी की आरती होती है। मंदिर घूमने के लिए अक्टूबर से मार्च तक का समय अति उत्तम है।
सोमनाथ मंदिर तक सीधे पहुँचने के लिए बहुत कम ट्रेने हैं। प्रायः ट्रेने वेरावल स्टेशन पर रूकती हैं, यह सोमनाथ मंदिर से 7 किमी की दूरी पर स्थित है। अहमदाबाद तक पहुँचकर यहाँ से प्राइवेट सवारी जैसे की ऑटो से मंदिर तक पहुँचा जा सकता है।
Jyotirlinga- मल्लिकार्जुन :
यह मंदिर भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में दूसरे स्थान पर आता है। श्री शैल पर्वत पर कृष्णा नदी के किनारे आंध्रप्रदेश के दक्षिणी भाग में स्थित है। इसको भारत का कैलाश भी कहा जाता है। इस मंदिर में भगवान शिव अर्जुन और पार्वती मल्लिका के रूप में पूजे जाते हैं।
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की कथा —
शिव पुराण के अनुसार शिव पार्वती के पुत्र भगवान गणेश का विवाह, भगवान कार्तिकेय से पहले हो गया। जिससे कार्तिकेय रुष्ट होकर क्रौंच पर्वत पर चले गए। बहुत से देवता उन्हें मनाने के लिए पहुँचे परन्तु वह वापस नहीं गए।
इस पर शिव पार्वती स्वयं उन्हें लेने पहुँचे, परन्तु कार्तिकेय जी ने उन्हें भी वापिस भेज दिया। अपने पुत्र की दशा से दुखी होकर भगवान शिव वहीं मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग रूप में स्थापित हो गए। माना जाता है कि जो भी व्यक्ति इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन करता है, वह सभी पापों से मुक्त हो जाता है।
मलिकार्जुन मंदिर दर्शन का समय व मार्ग —
भक्तों के लिए दर्शन का समय सुबह 6:30 बजे से दोपहर 1 बजे तक रहता है। फिर संध्या में 6:30 बजे से 9 बजे तक ज्योतिर्लिंग के दर्शन कर सकते हैं। इसके अलावा अक्टूबर से फरवरी एक का समय यात्रा के लिए सही है।
श्री शैलम के लिए कोई सीधी ट्रेन नहीं है, यहाँ तक पहुँचने के लिए सर्व प्रथम मरकापुर रेलवे स्टेशन जाना होगा।
फ्लाइट से जाने के लिए सबसे निकटतम एयरपोर्ट बेगमपेट है। हैदराबाद से भी श्री शैलम तक फ्लाइट के द्वारा जाया जा सकता है। इसकी दूरी लगभग 5 घंटे है।
महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग
Jyotirlinga- महाकालेश्वर :
महाकालेश्वर मंदिर मध्यप्रदेश के उज्जैन में महाकाल के घने जंगलो में शिप्रा नदी के किनारे स्थित है। यह भारत के लोकप्रिय 12 ज्योतिर्लिंग में से एक है। यह एकमात्र दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग है।
महकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की कथा —
ऐसा कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण 5 साल के लड़के श्रीकर ने कराया था। श्रीकर उज्जैन के राजा चन्द्रसेन की भक्ति, जो कि एक शिव भक्त थे उनसे बहुत प्रभाविय हुए। फिर क्या था श्रीकर ने महाकाल के जंगलो में एक पत्थर को रखकर उन्हें शिव का स्वरुप समझकर पूजा प्रारम्भ कर दी।
लोगो द्वारा उन्हें बहुत समझाया गया पर वह हटी बालक था। वह शिव की भक्ति और पूजन से विमुख नहीं हुए। उनकी लग्न, निष्ठा से प्रसन्न होकर महादेव जी वहाँ ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हो गए।
महाकालेश्वर मंदिर दर्शन का समय और मार्ग —
महाकाल मंदिर भक्तो के लिए प्रातः 8 बजे से 10 बजे तक, फिर 10:30 से शाम 5 बजे तक खुला रहता है। फिर संध्या में शाम 6 बजे से 7 बजे तक और रात में 8 बजे से 11 बजे तक जा सकते हैं। महाकालेश्वर की भस्म आरती यहाँ की प्रमुख विशेषता है। जो कि प्रातः 4 बजे शुरू होती है। महाकाल के दर्शन करने के लिए सबसे उपयुक्त समय सर्दियों का है,फरवरी से मार्च का महीना।
महाकालेश्वर पहुँचने के लिए भारत के मुख्य शहरों से ट्रेन मिल जाती है। फ्लाइट से जाने के लिए इंदौर के देवी अहिल्याबाई एयरपोर्ट पर पहुँचकर वहाँ से उज्जैन के लिए सवारी ले सकते हैं। यह दूरी 60 किमी की है।
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग
Jyotirlinga- ओंकारेश्वर :
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मध्य प्रदेश में इंदौर के पास नर्मदा नदी के किनारे स्थित है। यह ज्योतिर्लिंग ओम का आकार लिए हुए है। इसलिए इसे ओंकारेश्वर नाम से जाना जाता है। यह भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में चौथे स्थान पर आता है।
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग की कथा —
हमारे पौराणिक ग्रंथों के अनुसार एक बार दैत्यों और देवताओं में भयानक युद्ध छिड़ गया जिसमे दानव जीत गए। यह देवताओं के लिए एक बहुत बड़ा संकट था। उन्होंने भगवान शिव से प्रार्थना की। तब देवताओं की प्रार्थना से प्रसन्न होकर भगवान शिव ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए और दानवों को हराया।
ओंकारेश्वर मंदिर दर्शन का समय और मार्ग —
ओंकारेश्वर में भक्तों के लिए दर्शन का समय सुबह 5:30 बजे से दोपहर 12:30 बजे तक और शाम के दर्शन 4 बजे से रात 8:30 बजे तक कर सकते हैं। ओंकारेश्वर जाने का सबसे अच्छा समय अक्टूबर से मार्च का है।
ओंकारेश्वर जाने के लिए सर्वप्रथम इंदौर जाना होगा, फिर वहाँ से मंदिर मात्र 80 किमी की दूरी पर है। इंदौर से बसे मिल जाती हैं मंदिर जाने के लिए। ट्रेन से जाने पर स्टेशन पर उतरकर मात्र 13 किमी की दूरी पर मंदिर स्थित है।जहाँ आप कोई भी प्राइवेट साधन लेकर जा सकते हैं।
वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग
Jyotirlinga- वैद्यनाथ :
वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग झारखण्ड के देवघर में स्थित है। ऐसा माना जाता है कि जो भी यहाँ श्रद्धा से पूजा अर्चना करते हैं उनके सभी दुःख परेशानियाँ भगवान शिव दूर करते हैं। यह भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में पाँचवे स्थान पर आता है।
वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग की कथा —
ऐसा कहा जाता है कि रावण ने कई वर्षों तक शिव की आराधना की थी। वह उन्हें लंका में चलने के लिए हठ करने लगा। भगवान शिव उसकी आराधना के फलस्वरूप शिवलिंग के रूप में आ गए। उन्होंने रावण से कहा कि किसी भी परिस्थिति में शिवलिंग को कहीं और मत रखना वरना यह वहीँ स्थापित हो जायेगा।
रावण शिवलिंग लेकर चल दिया। रस्ते में उसे लघु शंका का अहसास हुआ और उसने एक लड़के को शिवलिंग पकड़ा दिया। लेकिन उसने वह शिवलिंग वहीं स्थापित कर दिया। इस प्रकार भगवान शिव वैद्यनाथ के रूप में स्थापित हो गए।
वैद्यनाथ मंदिर दर्शन का समय और मार्ग —
वैद्यनाथ मंदिर सुबह 4 बजे से दोपहर 3:30 बजे तक दर्शन के लिए खुले रहते हैं। फिर संध्या में शाम 6 बजे से रात 9 बजे तक खुले रहते हैं। सर्दियों में अक्टूबर से मार्च के बीच का समय सबसे सर्वोत्तम है वैद्यनाथ धाम जाने के लिए।
ट्रेन द्वारा यात्रा करने पर देवघर से नज़दीक रेलवे स्टेशन वैद्यनाथ धाम है जो शहर से मात्र 7 किमी दूर है। फ्लाइट से जाने के लिए पहले पटना पहुँचना होगा फिर वहाँ से 252 किमी की दूरी बस, टैक्सी या कार द्वारा तय करके वैद्यनाथ धाम पहुँचा जा सकता है।
भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग
Jyotirlinga- भीमाशंकर :
पुणे से 110 किमी उत्तर पश्चिम की सह्याद्रि पर्वत माला में भीमा शंकर मंदिर, भीमा नदी के किनारे स्थित है। यह मंदिर काफी प्राचीन और कलात्मक है। यहाँ की मूर्तियों से निरंतर पानी गिरता रहता है। यह भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में छठे स्थान पर आता है।
भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग की कथा —
शिव पुराण के अनुसार कुम्भकर्ण का पुत्र भीमा उसकी मृत्यु के उपरांत पैदा हुआ था। जब उसको पता चला कि भगवान राम ने उसके पिता का वध किया था तब ही से वह श्री राम जी से बदला लेने का प्रण करता है। इसके लिए उसने ब्रह्मा जी की तपस्या की, उन्हें प्रसन्न कर वरदान माँगा।
उसने अपनी शक्तियों का दुरपयोग कर मानव और देवताओं पर अत्याचार करना शुरू कर दिया। तब देवताओं से भगवान शिव ने मदद की गुहार लगायी और भगवान शिव ने स्वयं उसका वध किया। जिस स्थान पर वध हुआ वहीँ भगवान देवताओं के प्रार्थना करने पर ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थापित हो गए।
भीमाशंकर मंदिर दर्शन का समय और मार्ग —
भीमाशंकर मंदिर हर रोज़ सुबह 5 बजे से दोपहर 12 बजे और शाम 4 बजे से रात 9:30 तक दर्शन के लिए खुला रहता है। यहाँ की यात्रा करने के लिए सर्वोत्तम समय नवंबर से फरवरी तक का सबसे उत्तम समय है।
आप ट्रेन द्वारा पुणे स्टेशन तक जा सकते हैं, वहाँ से भीमाशंकर मंदिर की दूरी 110 किमी है। पुणे तक फ्लाइट से भी जा सकते हैं। फिर पुणे से किसी प्राइवेट वाहन द्वारा या टैक्सी द्वारा पहुँचा जा सकता है।
रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग
Jyotirlinga- रामेश्वरम :
यह ज्योतिर्लिंग तमिलनाडु राज्य के रामनाथपुरम नामक स्थान में स्थित है। रामेश्वरम में हर साल लाखो श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुँचते है। शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने के लिए यहाँ पूजा अर्चना करना बेहद शुभ मन जाता है। यह भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में सातवे स्थान पर आता है।
रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग की कथा —
इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना स्वयं भगवान श्री राम ने अपने हाथों से की थी। जब श्री राम लंका पर चढ़ाई करने जा रहे थे, तब इसी स्थान पर उन्होंने समुद्र की बालू से शिवलिंग का निर्माण किया और पूजन किया। तत्पश्चात भगवान शिव से रावण पर विजय प्राप्त करने का वर माँगा और लोक कल्याण के लिए वहाँ ज्योतिर्लिंग रूप में निवास करने की प्रार्थना की। तभी से यह ज्योतिर्लिंग यहाँ विराजमान है।
रामेश्वरम मंदिर दर्शन का समय और मार्ग —
मंदिर में दर्शन का समय सुबह 5 बजे से दोपहर 1 बजे तक होता है और रात्रि में 8 बजे तक दर्शन किये जा सकते हैं। अक्टूबर से अप्रैल तक का समय रामेश्वरम जाने के लिए अच्छा माना जाता है।
ट्रेन से यात्रा करने के लिए रामेश्वरम स्टेशन जाना होगा। विभिन्न शहरों से रामेश्वरम के लिए ट्रेन आसानी से मिल जाती है। यदि फ्लाइट से जाना हो तो मदुरई एयरपोर्ट जाना होगा। फिर 149 किमी की दूरी प्राइवेट वाहनों द्वारा तय करके रामेश्वरम पहुँचा जा सकता है।
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग
Jyotirlinga- नागेश्वर :
यह गुजरात के द्वारका धाम से 17 किमी बाहरी क्षेत्र की ओर स्थित है। भगवान शिव नागों के देवता हैं। इसलिए इसे नागनाथ भी कहते हैं। यहाँ जो भी व्यक्ति श्रद्धा और विश्वास के साथ दर्शन करने आता है उसकी सभी मनोकामनाएँ पूरी होती हैं। यह ज्योतिर्लिंग सबसे शक्तिशाली माना गया है, यहाँ सभी प्रकार के जहरों से संरक्षण प्राप्त होता है। यह भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में आठवे स्थान पर आता है।
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग की कथा —
पौराणिक ग्रंथों के अनुसार सुप्रिय नाम का एक वैश्य था। वह बहुत बड़ा शिव भक्त था। उसकी भक्ति से दारुक नामक दैत्य बहुत चिढ़ता था। एक बार उसने सुप्रिय और उसके साथियों को बंदी बना लिया और कारागार में डाल दिया। परन्तु सुप्रिय विचलित नहीं हुआ।
वह निरंतर शिव भक्ति में लीन रहा और अपने साथियों को भी शिव भक्ति करते रहने को कहा। यह देख कर दारुक क्रोध में आकर सुप्रिय को मारने लगा, तभी भगवान शिव प्रकट होकर दारुक का अंत कर देते हैं और ज्योतिर्लिंग के रूप में वहाँ स्थापित हो जाते हैं।
नागेश्वर मंदिर दर्शन का समय और मार्ग —
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग में भक्त सुबह 6 बजे से दोपहर 12:30 बजे तक और संध्या में 5 से रात 9 बजे तक दर्शन कर सकते हैं। दर्शन के लिए सबसे उपयुक्त समय अक्टूबर से फरवरी के बीच का है।
ट्रेन से यात्रा करने के लिए द्वारका स्टेशन तक जाना होगा। फिर वहाँ से आसानी से प्राइवेट वाहन लेकर नागेश्वर मंदिर तक पहुँच सकते हैं। यदि फ्लाइट से जाना हो तो जामनगर हवाई अड्डा जाना होगा। यहाँ से द्वारका पास ही है।
विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग
Jyotirlinga- विश्वनाथ :
प्रसिद्ध काशी विश्वनाथ मंदिर गंगा नदी के तट पर वाराणासी में स्थित है। यहाँ वाम रूप में बाबा विश्वनाथ और दाहिने भाग में शक्ति की देवी माँ पार्वती के साथ विराजते हैं। ऐसा कहा जाता है कि पवित्र गंगा में स्नान करके और काशी विश्वनाथ के दर्शन करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में से नौवे स्थान पर आता है।
विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग की कथा —
भगवान शिव माता पार्वती के साथ विवाह करके स्वयं कैलाश रहने लगे और देवी पार्वती अपने पिता के यहाँ रहती थीं। एक बार माता पार्वती ने भगवान शिव से कहा कि सभी लड़कियाँ शादी के बाद अपने पति के घर रहतीं हैं और मुझे अपने पिता के घर रहना पड़ रहा है, आप मुझे अपने घर ले चलिए। तब भगवान शिव उन्हें काशी ले आये।
तभी से काशी में भगवान शिव, माता पार्वती के साथ ज्योतिर्लिंग के रूप में विराजमान हो गए। काशी शिव की नगरी कही जाती है। कहते हैं प्रलय काल में भी, काशी ही एक मात्र ऐसा स्थान है जो कभी नहीं डूबती। शिव सदा इसकी रक्षा करते हैं।
विश्वनाथ मंदिर दर्शन का समय और मार्ग —
विश्वनाथ मंदिर के पट सुबह 2:30 बजे से रात 11 बजे तक खुले रहते हैं। यहाँ आने के लिए सर्दियों का मौसम सर्वोत्तम है।
वाराणासी तक ट्रेन द्वारा पहुँचा जा सकता है। फिर स्टेशन से मंदिर तक पहुँचने के लिए सार्वजानिक परिवहन ले सकते हैं। जबकि फ्लाइट से जाने के लिए बाबतपुरा में लाल बहादुर शास्त्री एयरपोर्ट पहुँचना पड़ेगा। यहाँ से मंदिर की दूरी मात्र 20-25 किमी है।
त्रियंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग
ज्योतिर्लिंग- त्रियंबकेश्वर :
यह ज्योतिर्लिंग गोदावरी नदी के करीब, महाराष्ट्र राज्य के नासिक जिले में करीब 25 किमी की दूरी पर स्थित है।इस ज्योतिर्लिंग के करीब ब्रह्मगिरि पर्वत है। ब्रह्मगिरि पर्वत को गोदावरी नदी का उद्गम स्थान माना जाता है। यह भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में से दसवे स्थान पर आता है।
त्रियंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग की कथा —
यह एक मात्र ऐसा ज्योतिर्लिंग है, जहाँ ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनो साथ विराजते है। ऐसा कहा जाता है कि कई वर्षो तक वर्ष न होने के कारण लोग व पशु पक्षी सभी इस स्थान को छोड़कर जाने लगे।
तब महर्षि गौतम ने वरुण देव की तपस्या की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर वरुण देव ने ऋषि को उस स्थान पर एक गड्ढा खोदने को कहा और फिर उसे जल से भर दिया।
फिर क्या था देखते ही देखते चारों ओर हरियाली छा गई। सभी लोग वहाँ वापस आकर रहने लगे। कुछ समय पश्चात पानी पर विवाद हुआ कि हम जल पहले लेंगे। सभी ऋषि पत्नियाँ गौतम ऋषि के शिष्यों से विवाद करने लगीं। इसी बात को लेकर अन्य ऋषि भी आरोप लगाने लगे।
इन ऋषियों ने गौतम ऋषि के साथ छल किया और एक गाय की हत्या का पाप उनके सिर मढ़ दिया। इतना ही नहीं वह सभी उन्हें इस स्थान को छोड़कर जाने के लिए कहने लगे व तरह तरह से गौतम ऋषि को परेशान करने लगे।
तब गौतम ऋषि ने इस पाप से मुक्ति के लिए कठोर दण्ड का पालन किया जो उन सभी ऋषियों ने सुझाया था। इस पर भगवान शिव वहाँ प्रकट होकर बोले आप मनचाहा वर माँगो। गौतम ऋषि ने माँ गंगा को फिर से धरती पर अवतरित होने के लिए कहा।
माँ गंगा ने शिव जी से कहा कि मैं यहाँ तभी निवास करूंगी, जब आप अपने परिवार सहित यहाँ ज्योतिर्लिंग के रूप में वास करेंगे। तब शिवजी ने कहा ऐसा ही होगा।
त्रियंबकेश्वर मंदिर दर्शन का समय और मार्ग —
यहाँ भक्त लोग प्रातः 5:30 बजे से रात्रि 9 बजे तक दर्शन कर सकते हैं। शिवरात्रि व सावन के महीने में यहाँ काफी भीड़ होती है। त्रियंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने का उपयुक्त समय अक्टूबर से मार्च का है।
ट्रेन द्वारा त्रियंबकेश्वर जाने के लिए नासिक स्टेशन जाना होगा। वहाँ से कोई भी प्राइवेट वाहन आसानी से मिल जाता है। यदि फ्लाइट से जा रहे हैं तो पहले मुंबई एयरपोर्ट तक जाना होगा। मुंबई से त्रियंकेश्वर की दूरी 200 किमी है जो आप बस या टैक्सी से तय कर सकते हैं।
केदारनाथ ज्योतिर्लिंग
Jyotirlinga- केदारनाथ :
केदारनाथ मंदिर, रूद्र हिमालयन रेंज पर 12000 फीट की ऊंचाई पर केदार नामक पर्वत पर स्थित है। यह हरिद्वार से लगभग 150 किमी की दूरी पर है। केदारनाथ तीर्थ स्थान चारों धामों में से एक है। तीर्थयात्री गंगोत्री व यमुनोत्री से पवित्र जल लेकर केदारनाथ शिवलिंग पर चढ़ाते हैं। भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में इसका ग्यारवे स्थान पर नाम आता है।
केदारनाथ ज्योतिर्लिंग की कथा —
ब्रह्मा जी के पुत्र, धर्म के दो पुत्र हुए थे। जिनका नाम नर और नारायण था। ये दोनों पुत्र बद्रीवन में पार्थिव शिवलिंग बनाकर उनके सम्मुख घोर तप किया करते थे। शिवजी उन दोनों बालक की घोर तपस्या से प्रसन्न होकर वहाँ प्रकट हुए।
तब उन बालको ने लोक कल्याण के लिए शिवजी को वहाँ ज्योतिर्लिंगं के रूप में विराजमान होने का वर माँगा। वहाँ पर दो पहाड़ नर और नारायण भी हैं। संत शंकराचार्य की समाधि केदारनाथ मंदिर के ठीक पीछे स्थित है।
केदारनाथ मंदिर दर्शन का समय और मार्ग —
यहाँ भक्त सुबह 4 बजे से दोपहर 12 बजे तक और फिर दोपहर 3 बजे से 9 बजे तक दर्शन कर सकते हैं। केदारनाथ अधिकांश वर्ष ठंडा ही रहता है। मई से जून और सितंबर अक्टूबर का महीना सबसे उत्तम समय है दर्शन करने के लिए।
केदारनाथ आप ट्रेन से जा सकते हैं। ऋषिकेश केदारनाथ के सबसे पास का रेलवे स्टेशन है। जिसकी दूरी 216 किमी है। यहाँ से गौरीकुंड पहुँचने के लिए टैक्सी या बस ले सकते हैं।
घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग
Jyotirlinga- घृष्णेश्वर :
यह ज्योतिर्लिंग औरंगाबाद के अजंता और एलोरा की गुफाओं के पास वेरुल गाँव में स्थित है। इस मंदिर का निर्माण अहिल्याबाई होल्कर ने करवाया था।घृष्णेश्वर मंदिर को कई नामों से पुकारते हैं जैसे कि– कुसुमेश्वर, घुश्मेश्वर। इस ज्योतिर्लिंग का स्थान भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में बारहवे स्थान पर आता है।
घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग की कथा —
शिवपुराण के अनुसार सुधर्म नामक ब्राह्मण और उसकी पत्नी सुदेह देवगिरि पर्वत पर रहते थे। वह बहुत बड़े शिव भक्त थे। लेकिन उनके कोई संतान नहीं थी। तब सुदेह ने अपनी छोटी बहन घुश्मा का विवाह अपने पति से करवा दिया।
अपनी बड़ी बहन के कहे अनुसार घुश्मा प्रतिदिन 101 पार्थिव शिवलिंग बनाकर पूजा किया करती थी और फिर उनका विसर्जन तालाब में करती थी। तब शिवजी की कृपा से उसे पुत्र प्राप्त हुआ।
दिन प्रतिदिन घुश्मा का सम्मान बढ़ता गया। यह देखकर सुदेह ईष्या करने लगी। कुछ समय पश्चात उसने घुश्मा के पुत्र की हत्या कर दी।लेकिन घुश्मा और उसका पति सुधर्म पूजा करते रहे।
भगवान शिव ने पुनः उसके पुत्र को जीवित कर दिया। तब घुश्मा और सुधर्म के आग्रह पर भगवान शिव वहाँ ज्योतिर्लिंग के रूप में विराजमान हो गए।
घृष्णेश्वर मंदिर दर्शन का समय और मार्ग —
भक्त दर्शन के लिए सुबह 5:30 बजे से रात 9 बजे तक आ सकते हैं। सावन के महीने में यहाँ ज्यादा भीड़ रहती है। यहाँ आने का उचित समय मौसम के अनुसार जनवरी से मार्च और फिर अक्टूबर से दिसम्बर के बीच का है।
ट्रेन से यात्रा करने के लिए औरंगाबाद रेलवे स्टेशन तक पहुँचना होगा। फिर वहां से घृष्णेश्वर की दूरी मात्र 29 किमी है। जो टैक्सी या कार के द्वारा तय कर सकते हैं। फ्लाइट से जाने के लिए औरंगाबाद एयरपोर्ट सबसे नज़दीक है।
निष्कर्ष —
इस प्रकार से हमारी 12 ज्योतिर्लिंग भारत के, की यात्रा और वर्णन यहीं समाप्त होता है। हम सभी को यह प्रयास करना चाहिए कि अपने जीवन काल में इन 12 ज्योतिर्लिंग में से किसी न किसी ज्योतिर्लिंग के दर्शन अवश्य करें। कहते है वो बहुत कम भाग्यशाली लोग हैं जो इन सभी 12 ज्योतिर्लिंगों के दर्शन अपने जीवन काल में कर पाते हैं।
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