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विवेकानन्द जयंती 2025 उद्धरण: स्वामी विवेकानन्द के ओजस्वी विचार एवं जीवन परिचय


Swami Vivekanand

स्वामी विवेकानंद: एक प्रेरणादायक जीवन

स्वामी विवेकानंद का नाम भारत के उन महान व्यक्तियों में शुमार है, जिन्होंने न केवल भारत को बल्कि पूरी दुनिया को अपने ज्ञान, अध्यात्म और विचारों से प्रभावित किया। उनका असली नाम नरेंद्रनाथ दत्त था और उनका जन्म 12 जनवरी 1863 को कोलकाता (तत्कालीन कलकत्ता) में हुआ था। उनके पिता विश्वनाथ दत्त एक प्रतिष्ठित वकील थे और माता भुवनेश्वरी देवी धार्मिक और संस्कारी महिला थीं।

स्वामी विवेकानन्द जयंती 2025 उद्धरण :

स्वामी विवेकानन्द को एक सामाजिक कार्यकर्ता और समाज सुधारक के रूप में जाना जाता है। वे भारतीय संस्कृति, अध्यात्म और मानवता के प्रतीक थे। उनके ओजस्वी भाषण और विचार दुनिया भर में प्रेरणा का स्रोत बने। उनके विचार आज भी युवाओं में क्रांति की ज्वाला पैदा करते हैं और उन्हें आत्मनिर्भर बनने के लिए प्रेरित करते हैं।

स्वामी विवेकानन्द का जन्म 12 जनवरी 1863 को कोलकाता, बंगाल में हुआ था। प्रत्येक वर्ष 12 जनवरी को स्वामी विवेकानन्द की जयंती के रूप में मनाया जाता है। इस साल विवेकानन्द की 162वीं जयंती है। विवेकानन्द को युवाओं के लिए आदर्श और प्रेरणा का स्रोत माना जाता है। इसलिए हर साल उनकी जयंती को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। 1984 में भारत सरकार ने उनकी जयंती को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की

इस साल 2025 में स्वामी विवेकानन्द की 162वीं जयंती मनाई जा रही है। इस अवसर पर आइए जानते हैं उनके प्रसिद्ध अनमोल विचारों के बारे में जो युवाओं के रोम-रोम में जोश और उत्साह भर देते हैं और उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते हैं।

स्वामी विवेकानन्द के अनमोल विचार

    • अगर पैसा दूसरों की भलाई करने में मदद करता है तो इसका कुछ मूल्य है। अन्यथा यह सिर्फ बुराई का ढेर है। जितनी जल्दी आप इससे छुटकारा पा लें, उतना बेहतर होगा।

 

    • यह कभी मत सोचो कि आत्मा के लिए कुछ असंभव है। ऐसा सोचना ही सबसे बड़ा विधर्म है। यदि कोई पाप है तो यह कहना कि आप कमजोर हैं या दूसरे कमजोर हैं।

 

    • उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाये।

 

    • संघर्ष जितना बड़ा होगा जीत भी उतनी ही बड़ी होगी.

 

    • निरंतरता आपको ऊपर उठा सकती है और यह आपकी ऊंचाई को नष्ट भी कर सकती है।

 

    • उस व्यक्ति ने अमरत्व प्राप्त कर लिया है, जिसे किसी भी सांसारिक वस्तु से परेशानी नहीं होती।

 

    • जिस दिन आपको समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ेगा, आप निश्चिंत हो सकते हैं कि आप गलत रास्ते पर यात्रा कर रहे हैं।

 

    • जब भी दिल और दिमाग के बीच टकराव हो तो अपने दिल की सुनें।

 

    • जब तक जीवित हो तब तक सीखो। अनुभव दुनिया का सबसे अच्छा शिक्षक है।

 

    • आप जैसा सोचेंगे, वैसे ही बन जायेंगे। यदि आप अपने आप को कमजोर मानते हैं तो आप कमजोर हो जायेंगे और यदि आप अपने आप को मजबूत मानते हैं तो आप मजबूत बन जायेंगे।

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

नरेंद्रनाथ बचपन से ही जिज्ञासु और मेधावी थे। उनकी शिक्षा कोलकाता के प्रसिद्ध संस्थानों में हुई। उन्होंने दर्शन, साहित्य, और विज्ञान जैसे विषयों में गहरी रुचि दिखाई। उनका स्वभाव बचपन से ही आध्यात्मिक था, और वे ईश्वर के अस्तित्व को लेकर सवाल किया करते थे।

स्वामी रामकृष्ण परमहंस से भेंट

स्वामी विवेकानंद के जीवन में एक महत्वपूर्ण मोड़ तब आया जब वे स्वामी रामकृष्ण परमहंस के संपर्क में आए। नरेंद्रनाथ के सारे प्रश्नों का उत्तर स्वामी रामकृष्ण ने बहुत सरलता और स्पष्टता से दिया। वे रामकृष्ण परमहंस के शिष्य बन गए और उनके सानिध्य में अध्यात्म के गूढ़ रहस्यों को समझा।

सन्यास और मिशन

स्वामी विवेकानंद ने गुरु रामकृष्ण की मृत्यु के बाद उनके विचारों और शिक्षाओं को फैलाने का संकल्प लिया। उन्होंने 1893 में शिकागो में विश्व धर्म महासभा में भारत का प्रतिनिधित्व किया। वहां दिए गए उनके ऐतिहासिक भाषण ने पूरी दुनिया का ध्यान भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म की ओर आकर्षित किया। उन्होंने अपने भाषण की शुरुआत “माय ब्रदर्स एंड सिस्टर्स ऑफ अमेरिका” से की, जिसने हर किसी का दिल जीत लिया।

रामकृष्ण मिशन की स्थापना

स्वामी विवेकानंद ने 1897 में “रामकृष्ण मिशन” की स्थापना की, जिसका उद्देश्य मानव सेवा के माध्यम से आध्यात्मिक उत्थान था। यह मिशन शिक्षा, स्वास्थ्य, और सामाजिक सेवा के क्षेत्र में आज भी कार्य कर रहा है।

उनके विचार

स्वामी विवेकानंद का मानना था कि युवाओं में अपार शक्ति और ऊर्जा होती है। उनका विचार था कि यदि युवा जागरूक और शिक्षित हो जाएं, तो देश का भविष्य उज्ज्वल हो सकता है। वे कर्मयोग, ज्ञानयोग, और भक्तियोग के सिद्धांतों को जीवन में अपनाने पर जोर देते थे।

मृत्यु

स्वामी विवेकानंद ने केवल 39 वर्ष की आयु में 4 जुलाई 1902 को महासमाधि ले ली। उनकी मृत्यु के बाद भी उनके विचार और शिक्षाएं दुनिया भर में प्रेरणा का स्रोत बनी हुई हैं।

निष्कर्ष

स्वामी विवेकानंद का जीवन सादगी, सेवा, और त्याग का प्रतीक है। उन्होंने भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिकता को वैश्विक मंच पर पहुंचाया। उनका संदेश हमें सिखाता है कि कठिन परिस्थितियों में भी आत्मविश्वास और दृढ़ता बनाए रखनी चाहिए। उनके विचार आज भी युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं और हमें अपने जीवन को उद्देश्यपूर्ण बनाने की राह दिखाते हैं।


Kavita Singh

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